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________________ २९१ शतक १२.-उद्देशक ९. भगवत्सुधर्मस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र. . १९. [प्र०] देवाधिदेवाणं पुच्छा । [उ०] गोयमा ! जहन्नेणं बावत्तरि वासाई, उक्कोसेणं चउरासीदं पुषसयसहस्साई । २०. [प्र०] भावदेवाणं पुच्छा । [उ०] गोयमा! जहन्नेणं दस वाससहस्साई, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई। २१. प्र. भवियदधदेवा णं भंते ! किं एगत्तं पभू विउवित्तए, पुहुत्तं पभू विउवित्तए ? [उ०] गोयमा! एगत्तं पभू विउवित्तए, पुहुत्तं पि पभू विउवित्तए, एगत्तं विउच्चमाणे एगिदियरूवं वा जाव-पंचिंदियरूवं वा, पुहुत्तं विउच्चमाणे एगिदियरूवाणि वा जाव-पंचिंदियरूवाणि वा, ताई संखेजाणि वा असंखेजाणि वा, संवद्धाणि वा असंबद्धाणि वा. सरिसाणि वा असरिसाणि वा विउचंति, विउवित्ता तओ पच्छा अप्पणो जहिच्छियाई कजाई करेंति, एवं नरदेवा वि, एवं धम्मदेवा वि । २२. [प्र०] देवाधिदेवाणं पुच्छा, [उ०] गोयमा ! एगत्तं पि पभू विउवित्तए, पुहुत्तं पि पभू विउवित्तए, नो चेव णं संपत्तीए विउविसु वा, विउविंति वा, विउविस्संति वा । २३. [प्र०] भावदेवाणं पुच्छा [उ०] जहां भवियदधदेवा । २४. प्र०ा भवियदधदेवा णं भंते ! अणंतरं उच्चट्टित्ता कहिं गच्छंति ? कहिं उववजंति ? कि नेरइएसु उववजंति ? जाव-देवेसु उववजंति ? [उ०] गोयमा! नो नेरइएसु उववजंति, नो तिरि०, नो मणु०, देवेसु उववजंति, जर देवेसु -उधवजंति सधदेवेसु उववजंति जाव-सट्ठसिद्धत्ति । ____२५. [प्र०] नरदेवा णं भंते ! अणंतरं उच्चट्टित्ता-पुच्छा । [उ०] गोयमा ! नेरइएसु उववजंति, नो तिरि०, नो मणु०, णो देवेसु उववजंति, जइ नेरइएसु उववजंति०, सत्तसु वि पुढवीसु उववजंति । २६. [प्र०] धम्मदेवा णं भंते ! अणंतरं-पुच्छा । [उ०] गोयमा ! नो नेरइएसु उववजेजा, नो तिरि०, नो मणु०, देवेसु उववजंति। १९. [प्र०] देवाधिदेव संबन्धे प्रश्न. [उ०] हे गौतम ! तेओनी जघन्य स्थिति बहोंतर वर्षनी, अने उत्कृष्ट स्थिति चोरा- देवाधिदेवनी स्थिति. शीलाख पूर्वनी कही छे. २०. [प्र०] भावदेवोनी स्थिति संबन्धे प्रश्न. [उ०] हे गौतम ! तेओनी जघन्य स्थिति दशहजार वर्षनी, अने उत्कृष्ट स्थिति तेत्रीश भावदेवनी स्थिति. सागरोपमनी कही छे. २१. [प्र०] हे भगवन् ! भव्यद्रव्यदेवो एक रूप विकुर्ववाने समर्थ छे के अनेकरूपो विकुर्ववाने समर्थ छे ! [उ०] हे गौतम। भव्यद्रव्यदेवनी [भव्यद्रव्यदेव वैक्रियलब्धिसंपन्न मनुष्य के तिर्यच एक रूप विकुर्ववाने पण समर्थ छे अने अनेकरूपो पण विकुर्ववाने समर्थ छे. एक विकुषणा रूपने विकुर्वतो एक एकेंद्रियरूपने यावत्-एक पंचेन्द्रियरूपने विकुर्वे छे, अथवा अनेक रूपोने विकुर्वतो अनेक एकेंद्रियरूपोने के अनेक पंचेन्द्रियरूपोने विकुर्वे छे, ते रूपो संख्याता के असंख्याता, संबद्ध के असंबद्ध, समान के असमान विकुर्वे छे, विकुळ पछी पोताना यथेष्ट कार्यों करे छे. ए प्रमाणे नरदेव अने धर्मदेव संबंधे पण जाणवू. २२. [प्र०] देवाधिदेवो संबन्धे प्रश्न. [उ०] हे गौतम ! तेओ एक रूप विकुर्ववाने पण समर्थ छे, अने अनेक रूप विकुर्ववाने पण देवाधिदेवनी विकुसमर्थ छे. पण तेणे औत्सुक्यना अभावधी शक्ति छता] संप्राप्तिवडे (करवावडे ) वैक्रियरूप विकुयु नथी, विकुर्वता नधी अने विकुर्वशे . पण नहि. २३. [प्र०] भावदेवसंबन्धे प्रश्न. [उ०] जेम भव्यद्रव्यदेवो संबन्धे ( सू० २१) कयुं तेम भावदेवसंबन्धे पण जाणवू. भावदेवनी विकुर्वणा शक्ति. २४. [प्र०] हे भगवन् ! भव्यद्रव्यदेवो तुरतज मरण पामी क्या जाय-क्यां उत्पन्न थाय ! शुं नैरयिकोमा उपजे, यावद्-देवोमा भव्यद्रव्यदेवो मरण उत्पन्न थाय ! [उ०] हे गौतम ! तेओ नैरयिकोमां, तिथंचोमां के मनुष्योमा उत्पन्न थता नथी, पण देवोमा उत्पन्न थाय छे. जो देवोमां पामी क्या जाय । उत्पन्न थाय तो ते सर्वदेवोमा उत्पन्न थाय, यावत् सर्वार्थसिद्धमा उत्पन्न थाय. २५. [प्र०] हे भगवन् ! नरदेवो अन्तररहित-तुरतज मरण पामी क्या उत्पन्न थाय-ए प्रश्न. [उ०] हे गौतम ! नैरयिकोमा उत्पन्न नरदेव मरण पामी थाय, पण तिर्यच, मनुष्य के देवमा उत्पन्न न थाय, जो नैरयिकोमा उत्पन्न थाय तो साते नरकपृथिवीमा उत्पन्न थाय. क्या उपजे? - २६. [प्र०] हे भगवन्! धर्मदेवो तुरतज मरण पामी क्या उत्पन्न थाय-ए प्रश्न. [उ०] हे गौतम! तेओ नैरयिकोमा, तियेचोमां के धर्मदेव मरण पामी मनुष्योमा उत्पन्न थता नथी, पण देवोमा उत्पन्न थाय छे. क्या जाय। ___२५ * यद्यपि कोईक चक्रवर्तिओ देवमा उत्पन्न थाय छे, परन्तु ते नरदेवपणु छोडी भने धर्मदेवपणुं पामीने उपजे छ, कामभोगोनो त्याग कर्या शिवाय नरदेव अवस्थामा तो ते नैरयिकमांज उपजे छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004642
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherDadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
Publication Year
Total Pages422
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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