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________________ २३० श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंप्रहे-- शतक ११.-उद्देशक १०. १५. [प्र०] अहेलोगखेत्तलोगस्स णं भंते। एगंमि आगासपएसे किं जीवा, जीवदेसा, जीवप्पएसा, अजीवा, अजीवदेसा, अजीबपएसा ? [उ०] गोयमा! नो जीवा, जीवदेसा वि, जीवपएसा वि, अजीवा वि, अजीवदेसा वि, अजीवपएसा वि । जे जीवदेसा ते नियमा १ एगिदियदेसा, २ अहवा एगिदियदेसा य बेइंदियस्स देसे, ३ अहवा एगिदियदेसा य बेईदियाण य देसा । एवं मझिल्लविरहिओ जाव-अणिदिएसु, जाव-अहवा एगिदियदेसा य अणिदियदेसा य । जें जीवपएसा ते नियमा १ एगिदियपएसा, २ अहवा पगिदियपएसा य बेंदियस्स पएसा, ३ अहवा एगिदियपएसा य बेइंदियाण य पएसा, एवं आइल्लविरहिओ जाव पंचिदिएसु, अणिदिपसु तियभंगो। जे अजीवा ते दुविहा पन्नत्ता, तंजहा-रुवी अजीवा य अरूवी अजीवा य । रुवी तहेव, जे अरूवी अजीवा ते पंचविहा पण्णत्ता, तंजहा-१ नोधम्मत्थिकाए धम्मत्थिकायस्स देखें, २ धम्मत्थिकायस्स पएसे, एवं ४ अहम्मत्थिकायस्स वि, ५ अद्धासमए । १६. [प्र०] तिरियलोगखेत्तलोगस्स णं भंते ! एगंमि आगासपएसे किं जीवा० १ [उ.] एवं जहा अहोलोगखेत्तलो. गस्स तहेव, एवं उड्ढलोगखेत्तलोगस्स वि, नवरं अद्धासमओ नत्थि, अरूवी चउबिहा । लोगस्स जहा अहेलोगखेत्तलोगस्स एगंमि आगासपएसे। १७. [प्र०] अलोगस्स णं भंते ! एगंमि आगासपएसे पुच्छा [उ०] गोयमा ! नो जीवा, नो जीवदेसा, तं चेव जाव अणंतहि अगुरुयलहुयगुणेहिं संजुत्ते सवागासस्स अणंतभागणे । १८. दवओ गं अहेलोगखेत्तलोए अणंताई जीवदयाई, अगंताई अजीवदधाई, अणंता जीवाजीवदया । एवं तिरियलोयखेत्तलोए वि, एवं उडलोयखेत्तलोए वि । दखओ णं अलोए णेवत्थि जीवद्या, नेवत्थि अजीवदया, नेवत्थि जीवाजीवदया, एगे अधोलोकना एक १५. [प्र०] हे भगवन् ! अधोलोकक्षेत्रलोकना एक आकाशप्रदेशमा शुं १ जीवो, २ जीवना देशो, ३ अजीवो. ४ अजीवोनः आकाशप्रदेशमा शं देशो अने ५ अजीवना प्रदेशो छे ! [उ०] हे गौतम ! जीवो नथी, पण जीवोना देशो, जीवोना प्रदेशो, अजीवो, अजीवना देशो अने जीवो छे इत्यादि. अजीवना प्रदेशो छे. तेमां त्यां जे जीवोना देशो छे ते अवश्य १ एकेन्द्रियजीवोना देशो छे २ अथवा एकेन्द्रिय जीवोना देशो अने वे.. इन्द्रिय जीवनो देश छे, ३ अथवा एकेन्द्रिय जीवोना देशो अने बेइन्द्रियोना देशो छे. ए प्रमाणे *मध्यम भंगरहित बाकीना विकल्पा यावद् अनिन्द्रियो-सिद्धो संबन्धे जाणवा. यावद् 'एकेन्द्रियोना देशो अने अनिन्द्रियोना देशो' छे, तथा त्यां जे जीवना प्रदेशो छे ते अवश्य एकेन्द्रिय जीवोना प्रदेशो छे, १ अथवा एकेन्द्रिय जीवोना प्रदेशो अने एक बेइन्द्रिय जीवना प्रदेशो छे, २ अथवा एकेन्द्रिय जीवोना प्रदेशो अने बेइन्द्रियोना प्रदेशो छे. ए प्रमाणे यावत् पंचेन्द्रिय अने अनिन्द्रियो संबन्धे प्रथम भंग शिवाय त्रण भांगा जाणवा. तथा त्यां जे अजीवो छे ते बे प्रकारना कह्या छे. ते आ प्रमाणे-रूपिअजीव अने अरूपिअजीव. तेमां रूपिअजीवो पूर्व प्रमाणे जाणवा.. अने जे अरूपिअजीवो छे ते पांच प्रकारना कह्या छे, ते आ प्रमाणे-१ नोधर्मास्तिकाय धर्मास्तिकायनो देश, २ धर्मास्तिकायनो प्रदेश, ए प्रमाणे ४ अधर्मास्तिकाय संबन्धे पण जाणवू. अने ५ अद्धा समय. तिर्यग्लोकना पक . १६. [प्र०] हे भगवन् ! तिर्यग्लोकक्षेत्रलोकना एक आकाश प्रदेशमा शुं जीवो छे ! इत्यादि [उ०] जेम अधोलोकक्षेत्रलोकना संबन्धे कर्तुं तेम अहीं बधुं जाणवू. ए प्रमाणे ऊर्ध्वलोकक्षेत्रलोकना एक आकाश प्रदेशने विषे पण जाणवं, परन्तु विशेष ए छे के, त्यां जीवो के इत्यादि. लोकना एक आकाश अद्धासमय नथी, माटे अरूपी चार प्रकारना छे, लोकना एक आकाश प्रदेशमा अधोलोकक्षेत्रलोकना एक आकाश प्रदेशमा जेम का ठे प्रदेशमा शुं जीव तेम जाणवू. होय। भलोकना एक १७. [प्र०] हे भगवन् ! अलोकना एक आकाश प्रदेश संबन्धे प्रश्न. [उ०] हे गौतम ! त्यां 'जीवो नथी, जीव देशो नथी'आकाशप्रदेशमा " इत्यादि पूर्वनी पेठे [सू. १४] कहे, यावत् अलोक अनन्त अगुरुलघुगुणोथी संयुक्त छे अने सर्वाकाशना अनंतमा भागे न्यून छे. दव्यादिथी अपोलो- १८. [प्र०] हे भगवन् ! द्रव्यथी अधोलोकक्षेत्रलोकमां अनन्त जीव द्रव्यो छे, अनंत अजीव द्रव्यो छे अने अनंत जीवाजीव कादिनो विचार. द्रव्यो छे. ए प्रमाणे तिर्यग्लोकक्षेत्रलोकमां तथा ऊर्ध्वलोकक्षेत्रलोकमां पण जाणवू. द्रव्यथी अलोकमां जीव द्रव्यो नथी, अजीव द्रव्यो नथी अने जीवाजीव द्रव्यो नथी, पण एक अजीवद्रव्यनो देश छे, यावत् सर्वाकाशना अनंतमा भागे न्यून छे. कालथी अधोलोकक्षेत्रलोक कोइ १५ श. १० उ०१प्रदर्शित एकेन्द्रिय जीवोना देशो अने बेइन्द्रिय जीवना देशो-ए मध्यम भांगो होतो नथी, कारणके एक आकाशप्रदेशमा एक बेइन्द्रिय जीवना घणा देशो संभवित नथी. नोधर्मास्तिकाय-अधोलोकना एक आकाशप्रदेशमा संपूर्ण धर्मास्तिकाय नथी. पण तेनो देश भने प्रदेश होय छे तेथी तेने नोधर्मास्तिकावरूप कहेल छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004642
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherDadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
Publication Year
Total Pages422
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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