________________
पंचमओ उद्देसो.
१.प्र० तेणं कालेणं, तेणं समएणं रायगिहे णामं नयरे । गुणसिलए चेइए । जाव परिसा पडिगया। तेणं कालेणं. तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स बहवे अंतेवासी थेरा भगवंतो जाइसंपन्ना, कुलसंपन्ना, जहा अट्टमे सए सत्तमहेसए जाव विहरति । तए णं ते थेरा भगवंतो जायसड़ा, जायसंसया, जहा गोयमसामी, जाव पजुवासमाणा एवं वयासी
२. [प्र०] चमरस्स णं भंते ! असुरिंदस्स असुरकुमाररनो कति अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ? [उ०] अजो! पंच अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ, तं जहा-१ काली, २ रायी, ३ रयणी, ४ विजु, ५ मेहा । तत्थ णं एगमेगाए देवीए अट्ठ-४ देवीसहस्स परिवारो पन्नत्तो।
३. [प्र०] पभू णं भंते ! ताओ एगमेगा देवी अन्नाई अट्ट-ट्ट देवीसहस्साई परिवार विउवित्तए ? [उ०] एवामेव सपुधावरेणं चत्तालीसं देवीसहस्सा, सेत्तं तुडिए।
४. [प्र०] पभू णं भंते ! चमरे असुरिंदे असुरकुमारराया चमरचंचाए रायहाणीए, सभाए सुहम्माए, चमरंसि सीहासणंसि तुडिएणं सद्धिं दिखाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरित्तए ? [उ०] णो इणटे समढे। [प्र०] से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ'नो पभू चमरे असुरिंदे चमरचंचाए रायहाणीए जाव विहरित्तए'१ [उ०] अजो! चमरस्स णं असुरिंदस्स असुरकुमाररनो चमरचंचाए रायहाणीए, सभाए सुहम्माए, माणवए चेइयखंभे वइरामएसु गोल-बट्ट-समुग्गएसु बहूओ जिणसकहाओ
पंचम उद्देशक. १. ते काले-ते समये राजगृह नामे नगर हतुं, अने त्यां गुणसिल नामे चैत्य हतुं. [श्रमण भगवान् महावीर समोसा . ] यावत् राजगृह नगर. गुणसभा धर्मश्रवण करीने] पाछी गइ. ते काले-ते समये श्रमण भगवान् महावीरना धणा शिष्यो पूज्य स्थविरो जातिसंपन्न-इत्यादि जेम शालवल्या आठमां शतकना सातमा *उद्देशकमां कयुं छे तेम यावत् विहरे छे, त्यार पछी ते स्थविर भगवंतो जाणवानी श्रद्धावाला यावत् संशयवाळा थईने गौतमस्वामीनी पेठे पर्युपासना करता आ प्रमाणे बोल्या.
२. प्रि० हे भगवन् ! असुरेंद्र असुरकुमारना राजा चमरने केटली अग्रमहिषीओ (पट्टराणीओ.) कही छे ! [उ०] हे आर्यो ! चम- चमरेन्द्रने अनमहिरेन्द्रने पांच पट्टराणीओ कही छे, ते आ प्रमाणे-काली रायी, रजनी, विद्युत् अने मेधा. तेमांनी एक एक देवीने आठ आठ हजार देवीओनो परिवार कह्यो छे.
३. प्र०] हे भगवन् ! शुं ते एक एक देवी आठ आठ हजार देवीओना परिवारने विकुवा समर्थ छे[उ०] हे आर्यो ! हा, ए मममहिषीमोनो प्रमाणे पूर्वापर बधी मळीने [पांच पट्टराणीओनो परिवार ] चालीश हजार देवीओ छे अने ते त्रुटिक (वर्ग) कहेवाय छे.
परिवार. ४. प्र०] हे भगवन् ! असुरेंद्र अने असुरकुमारोनो राजा चमर पोतानी चमरचंचा नामनी राजधानीमां सुधर्मा सभामां चमर नामे चमरेन्द्र पोतानी ससिंहासनमा बेसी ते त्रुटिक (स्त्रीओना परीवार) साथे भोगववा लायक दिव्यभोगोने भोगववाने समर्थ छे! [उ०] हे आर्यो! ए अर्थ
. भामा देवीओ साये योग्य नथी. [प्र०] हे भगवन् ! ए प्रमाणे आप शा हेतुथी कहो छो के चमरचंचा राजधानीमां ते असुरेंद्र अने असुरकुमारनो राजा चमर
मर्थ छ। दिव्य भोगोने भोगववा समर्थ नथी ? [उ०] हे आर्यो! असुरेंद्र अने असुरकुमारना राजा चमरनी चमरचंचा नामनी राजधानीमा सुधर्मा
1. *भग० तृ. खं. श. ८ उ. ७ पृ. ८९.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org