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________________ २०० श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे शतक १०.-उद्देशक ५. सन्निक्खित्ताओ चिटुंति; जाओ णं चमरस्स असुरिंदस्स असुरकुमाररनो अग्नेसिं च बहूणं असुरकुमाराणं देवाण र अश्वणिजाओ, वंदणिजाओ, नमंसणिजाओ, पूयणिजाओ, सकारणिज्जाओ, सम्माणणिज्जाओ, कल्लाणं, मंगलं, देवयं, चेयं पजुवासणिजाओ भवंति, तेसि पणिहाए नो पभू, से तेणद्वेणं अजो! एवं पुश्चइ-'नो पभू चमरे असुरिंदे जाव चमरचंचाए जाव विहरित्तए' । [प्र०] पभू णं अजो! चमरे असुरिंदे असुरकुमारराया चमरचंचाए रायहाणीए, सभाए सुहम्माए, चमरंसि सीहासणंसि चउसट्ठीए सामाणियसाहस्सीहि, तायत्तीसाए जाव अन्नेसि च बहूणं असुरकुमारेहिं देवेहि य, देवीहि य सद्धि संपरिखुडे महयाहय- जाव भुंजमाणे विहरित्तए ? [उ०] केवलं परियारिडीए, नो चेव णं मेहुणवत्तियं । ५. [प्र०] चमरस्स णं भंते। असुरिंदस्स असुरकुमाररनो सोमस्स महारनो कति अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ? [उ.] अजो! चत्तारि अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ, तं जहा-१ कणगा, २ कणगलता, ३ चित्तगुत्ता, ४ वसुंधरा । तत्थ णं एगमेगाए देवीए एगमेगंसि. देवीसहस्सं परिवार पण्णत्ते [प्र०] पभू णं ताओ एगामेगाए देवीए अन्नं एगमेगं देवीसहस्सं परियार विउवित्तए। उ०] एवामेव सपुधावरेणं चत्तारि देवीसहस्सा। सेत्तं तुडिए। ६. प्र०] पभू णं भंते ! चमरस्स असुरिंदस्स असुरकुमाररन्नो सोमे महाराया सोमाए रायहाणीए, सभाए सुहम्माए, सोमंसि सीहासणंसि तुडिएणं? [उ०] अवसेसं जहा चमरस्स, नवरं परिवारो जहा सूरियाभस्स, सेसं तं चेव, जाव णो चेवणं मेहुणवत्तियं । ७. [प्र०] चमरस्स णं भंते ! जाव रनो जमस्स महारनो कति अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ? [उ०] एवं चेव, नवरं जमाए रायहाणीए, सेसं जहा सोमस्स, एवं वरुणस्स वि, नवरं वरुणाए रायहाणीए; एवं वेसमणस्स वि, नवरं वेसमणाए रायहाणीए, सेसं तं चेव, जाव मेहुणवत्तियं । नामे सभामां माणवक चैत्यस्तंभने विषे वज्रमय अने गोल-वृत्त डाबडामा नांखेलां जिनना घणां अस्थिओ (हाडकांओ) छे, जे असुरेंद्र अने असुरकुमारना राजा चमरने तथा बीजा घणा असुरकुमार देवोने अने देवीओने अर्चनीय, वंदनीय, नमस्कार करवा योग्य, पूजवायोग्य, सत्कार करवा योग्य अने संमान करवा योग्य छे, तथा कल्याण अने मंगलरूप देव चैत्यनी पेठे उपासना करवा योग्य छे, माटे ते जिनना अस्थिओना.प्रणिधानमा [ संनिधानमा ] ते असुरेंद्र पोतानी राजधानीमां यावत् [ भोगो भोगववा] समर्थ नथी. तेथी हे आर्यो ! एम कहेवाय छे के चमर असुरेंद्र यावत् चमरचंचा राजधानीमां यावत् [ते देवीओ साथे दिव्य भोगो] भोगववा समर्थ नथी. पण हे आर्यो ! ते असुरेंद्र असुरकुमारराजा चमर चमरचंचा नामे राजधानीमां, सुधर्मा सभामा, चमरनामे सिंहासनमा बेसी चोसठ हजार सामानिक देवो, त्रायस्त्रिंशक देवो, अने बीजा घणा असुरकुमार देवो तथा देवीओ साथे परिवृत थइ मोटा अने निरन्तर थता नाट्य, गीत, अने वादित्रोना शब्दो वडे केवल परिवारनी ऋद्धिथी भोगो भोगववा समर्थ छे, परन्तु मैथुननिमित्तक भोगो भोगववा समर्थ नथी. चमरेन्द्रना सोम ५. [प्र०] हे भगवन् ! असुरकुमारना इंद्र अने असुरकुमारना राजा चमरना [लोकपाल ] सोम महाराजाने केटली पट्टराणीओ लोकपालने पट्टरा- कही छे? [उ०] हे आर्यो! तेने चार पट्टराणीओ कही छे, ते आ प्रमाणे-कनका, कनकलता, चित्रगुप्ता अने वसुंधरा. त्यां एक एक जीओ. देवीने एक एक हजार देवीनो परिवार छे. तेओमांनी एक एक देवी एक एक हजार हजार देवीना परिवारने विकुर्वी शके छे. ए प्रमाणे पूर्वापर बधी मळीने चार हजार देवीओ थाय छे. ते त्रटिक (देवीओनो वर्ग) कहेवाय छे. सोम लोकपाल पो- ६. [प्र०] हे भगवन् ! असुरकुमारना इंद्र अने असुरकुमारना राजा चमरना [लोकपाल ] सोम नामे महाराजा पोतानी सोमा नामे तानी सभामा देवीओ राजधानीमा सुधर्मा सभामा सोमनामे सिंहासनमा बेसी ते त्रुटिक (देवीओना वर्ग) साथे भोग भोगववा समर्थ छे ! [उ०] चमरना संबन्धे साये भोग भोगववा समर्थ । कयुं छे ते सर्व अहीं पण जाणवू. परन्तु तेनो परीवार *सूर्याभनी पेठे जाणवो. अने बाकीनुं सर्व पूर्व प्रमाणे कहे, यावत् ते देवीओ साथे पोतानी सोमा राजधानीमा मैथुननिमित्तक भोग भोगववा समर्थ नथी. यमने भयमहिषीओ.. ७. [प्र०] हे भगवन् ! ते चमरना [ लोकपाल ] यम नामे महाराजाने केटली पट्टराणीओ कही छे ! [उ०] हे आर्यो ! पूर्व प्रमाणे वकीन्द्रने अग्रमही जाणवू. विशेष ए छे के [यम लोकपालने] यमा नामे राजधानी छे. बाकी बधुं सोमनी पेठे जाणवू. तथा ए प्रमाणे वरुणना संबन्धे पण पीओ. जाणवू, परन्तु तेने वरुणा राजधानी छे. ते प्रमाणे वैश्रमणने पण जाणवं. परन्तु तेने वैश्रमणा राजधानी छे. बाकी सर्व पूर्व प्रमाणे जाणा, यावत् 'तेओ मैथुननिमित्ते भोग भोगववा समर्थ नथी.' ६. " जुओ राजप्र. प. १४-१. Jain Education International www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only
SR No.004642
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherDadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
Publication Year
Total Pages422
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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