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१९८ श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे
शतक १०.-उद्देशक ४. ६. [प्र०] अस्थि णं भंते ! धरणस्स णागकुमारिंदस्स णागकुमाररण्णोतायत्तीसगा देवा २१ [उ०] हंता अत्थि । [प्र०] से केणट्टेणं जाव तायत्तीसगा देवा २१ [उ०] गोयमा ! धरणस्स नागकुमारिंदस्स नागकुमाररन्नो तायत्तीसगाणं देवाणं सासए नामधेजे पण्णत्ते, जं न कयाई नासी, जाव अन्ने चयंति, अन्ने उववजंति। एवं भूयाणंदस्स वि, एवं जाव महाघोसस्स ।
७. [प्र०] अत्थि णं भंते ! सक्कस्स देविंदस्स, देवरन्नो पुच्छा। [उ०] हंता अत्थि । [प्र०] से केणटेणं जाव तायत्तीसगा देवा २१ [उ०] एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं, तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे पलासए नामं सन्निवेसे होत्था । वन्नओ। तत्थ णं पलासए सन्निवेसे तायत्तीसं सहाया गाहावई समणोवासया जहा चमरस्स जाव विहरंति । तए णं ते तायत्तीसं सहाया गाहावई समणोवासया पुछि पि पच्छा वि उग्गा, उग्गविहारी, संविग्गा, संविग्गविहारी बहूई वासाई समणोवासगपरियागं पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसेंति, झूसित्ता सहि भत्ताई अणसणाए छेदंति, छेदित्ता आलोइय-पडिकंता, समाहिपत्ता कालमासे कालं किच्चा जाव उववना । जप्पमिदं च णं भंते! पालासिगा तायत्तीसं सहाया गाहावई समणोवासगा, सेसं जहा चमरस्स जाव अन्ने उववजंति ।।
८. प्र०] अस्थि णं भंते! ईसाणस्स० [उ०] एवं जहा सकस्स, नवरं चंपाए णयरीए जाव उववन्ना । जप्पभिहं च णं भंते | चंपिज्जा तायत्तीसं सहाया, सेसं तं चेव, जाव अन्ने उववजंति ।
९. [प्र०] अस्थि णं भंते! सणंकुमारस्स देविंदस्स देवरनो पुच्छा । [उ०] हंता अत्थि । [प्र०] से केणटेणं! [उन जहा धरणस्स तहेव, एवं जाव पाणयस्स, एवं अच्चुयस्स, जाव अन्ने उववजंति । सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति ।
दसमसए चउत्थो उद्देसो समत्तो।
धरणेन्द्रने त्रायविं
शक देवो.
शकेन्द्रने बायनि
शक देवो.
६.प्र०] हे भगवन् ! नागकुमारना इंद्र अने नागकुमारना राजा धरणने त्रायस्त्रिंशक देवो छे! [उ०] हे गौतम! हा, छे. [प्र०] हे भगवन् ! ए प्रमाणे आप शा हेतुथी कहो छो के धरणेन्द्रने त्रायस्त्रिंशक देवो छ ? उ० हे गौतम ! नागकुमारना इंद्र अने नागकमारना राजा धरणना त्रायस्त्रिंशक देवोना नामो शाश्वत कन्या छे, जेथी तेओ कदापि न हता एम नथी, कदापि नथी एम नथी, अने कदापि न हशे एम पण नथी. यावत् अन्य च्यवे छे अने अन्य उपजे छे. ए प्रमाणे भूतानंद अने यावत् महाघोष इन्दना त्रायस्त्रिंशक देवो संबन्धे पण जाणवू.
७. [प्र०] हे भगवन् ! देवेंद्र देवराज शक्रने त्रायस्त्रिंशक देवो छ ? [उ०] हा गौतम ! छे. [प्र०] हे भगवन् ! ए प्रमाणे आप शा हेतुथी कहो छो के देवेंद्र देवराज शक्रने त्रायस्त्रिंशक देवो छे ? [उ०] हे गौतम! शक्रना त्रायस्त्रिंशक देवोनो संबन्ध आ प्रमाणे छे-ते काले-ते समये आ जंबूद्वीपना भारतवर्षमां पलाशक नामे संनिवेश हतो. वर्णन. ते पलाशक नामे संनिवेशमा परस्पर सहाय करनारा तेत्रीश श्रमणोपासको रहेता हता-इत्यादि जेम चमर संबन्धे कयुं ते प्रमाणे यावत् तेओ विचरे छे. त्यारपछी परस्पर सहाय करनारा तेत्रीश गृहपति श्रमणोपासको पहेला अने पछी उग्र, उपविहारी, संविग्न अने संविग्नविहारी थइने घणा वर्ष सुधी श्रमणोपासकपर्यायने पालीने मासिक संलेखनावडे आत्माने सेवे छे, सेवीने साठ भक्तो अनशन वडे व्यतीत करीने आलोचन, प्रतिक्रमण करीने समाधिने प्राप्त थाय छे, अने मरणसमये काळ करी यावत् त्रायस्त्रिंशकदेवपणे उत्पन्न थाय छे. ज्यारथी आरंभीने पलाशक संनिवेशना निवासी परस्पर सहाय करनारा तेत्रीश गृहपतिओ श्रमणोपासको शकना त्रायस्त्रिंशकपणे उत्पन्न थया इत्यादि सर्व वृत्तान्त चमरेन्द्रना प्रमाणे यावत् 'अन्य छे च्यवे छे अने अन्य उत्पन्न थाय छे' त्यांसुधी जाणवो.
८. [प्र०] हे भगवन् ! ईशान इंद्रने त्रायस्त्रिंशक देवो छे! [उ०] शक्रनी पेठे ईशानेन्द्रने पण जाणवू; परन्तु विशेष ए छे के ते गृहपतिओ श्रमणोपासको पलाशक संनिवेशने बदले चंपानगरीमा उत्पन्न ययेला छे. 'ज्यारथी चंपाना निवासी त्रायस्त्रिंशकपणे उत्पन्न थया'इत्यादि पूर्वोक्त सर्व वृत्तान्त यावत् 'अन्य उपजे छे' त्यांसुधी जाणवो.
९. [प्र०] हे भगवन् ! देवोना राजा देवेंद्र सनत्कुमारने त्रायस्त्रिंशक देवो छे! [उ०] हा, गौतम ! छे. [प्र०] हे भगवन् ! आप ए प्रमाणे शा हेतुथी कहो छो के सनत्कुमार देवेंद्रने त्रायस्त्रिंशक देवो छे! [उ०] हे गौतम! जेम धरणेन्द्र संबन्धे कयुं ते प्रमाणे अहीं जाणवू. ए रीते यावत् प्राणतथी मांडीने अच्युतपर्यन्त यावत् 'बीजा उत्पन्न थाय छे' त्यांसुधी कहेवू. हे भगवन् ! ते एमज छे, हे भगवन् ! ते एमज छे. [एम कही भगवान् गौतम विहरे छे.]
ईशानेन्द्रने पाय•विंशक देवो.
सनत्कुमारने त्रायखिशक देवो.
दशमशते चतुर्थ उद्देशक समाप्त.
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