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बगेरे उपजे?-कृष्णादिलेश्यावाळो यईने कृष्णलेश्यावाळा नारकोमा उत्पन्न थाय?-नीललेश्यावाळा नारकोमा उत्पन्न थाय!-तेनो हेतु. कापोतळेश्यावाळा नारकोमा उपजे?
शतक १३ उद्देशक २. पृ. ३०७-३१०. देवोना प्रकार.-भवनवासी देवोना प्रकार.-असुरकुमारना आषासो.-असुरकुमारमा उत्पाद.-उद्वर्तना.-नागकुमारादिना भावासो.-बानध्यतर देवोना आवास.-एकसमये वानव्यंतर देवोनो उत्पाद.-ज्योतिषिक देवोना विमानावास.-सौधर्म देवलोकमा विमानावास.-एफसमये सौधर्मथी मांधीने सहस्रार सुधी देवोनो उत्पाद.-आनत अने प्राणत देवलोकमां विमानावास.-प्रेयक.-अनुत्तर विमानो.-पांच अनुत्तरमा एक समये देवोना उत्पादादि.-असुरकुमारावासमा सम्यग्दृष्ट्यादि उपजे?-कृष्णादिलेश्यावाळा थइने कृष्णलेश्यावाळा देवोमा उत्पन्न थाय?
शतक १३ उद्देशक ३. पृ० ३११. नारको अनन्तराहारी होय अने त्यार बाद अनुक्रमे परिचारणा करे?
शतक १३ उद्देशक ४. पृ० ३१२-३२३. नरकपृथिवी. नैरयिकद्वार.-पर्शद्वार.-प्रणिधिद्वार.–निरयान्तद्वार.-लोकमध्यद्वार.-अधोलोकमध्य.-ऊर्ध्वलोकमध्य.-तिर्यग्लोकमध्य.दिशा-विदिशाप्रवहद्वार.-ऐन्द्री दिशा क्याथी नीकळे छे?-आग्नेयी.--याम्या-दक्षिण.-नैऋती.-ऊर्ध्वदिशा.-तमादिशा. लोक.--अस्तिकायप्रवतनद्वार.-धर्मास्तिकायवडे जीवोन प्रवर्तन.-अधर्मास्तिकायवडे प्रवर्तन.-आकाशास्तिकायवडे प्रवर्तन.-जीवास्तिकायवडे प्रवर्तन.-पुद्गलास्तिकायवडे प्रवर्तन.-अस्तिकायप्रदेशस्पर्शनाद्वार.-~-धर्मास्तिकायनो एक प्रदेश धर्मास्तिकायादि द्रव्यना केटला प्रदेशोवडे स्पर्शाय? -अधर्मास्तिकायनो एक प्रदेश.आकाशास्तिकायनो एक प्रदेश.-जीवास्तिकायनो एक प्रदेश.-पुद्गलास्तिकायनो एक प्रदेश.-पुद्गलास्तिकायना बे प्रदेशो.-पद्लास्तिकायना प्रण प्रदेशो.पुद्लास्तिकायना संख्याता प्रदेशो.-पुद्गलास्तिकायना असंख्य प्रदेशो,-पुद्गलास्तिकायना अनन्त प्रदेशो.-कालनो एक समय.-धर्मास्तिकाय द्रव्य.---अघ
स्तिकाय.-अवगाढद्वार.-ज्या धर्मास्तिकायनो एक प्रदेश अवगाढ होय त्यां बीजा धर्मास्तिकायादिना केटला प्रदेश अवगाढ होय?-अधर्मास्तिकायनो एक प्रदेश.-आकाशास्तिकायनो एक प्रदेश.-जीवास्तिकायनो एक प्रदेश.-पुद्गलास्तिकायनो एक प्रदेश.-पुद्गलास्तिकायना बे प्रदेशो.-पुद्गलास्तिकायना त्रण प्रदेशो.-एक अद्धासमय.-एक धर्मास्तिकाय.-एक अधर्मास्तिकाय.-पृथिवीकायिक.-अप्कायिक.-अस्तिकायनिषदनद्वार.-धर्मास्तिकायादि श्रण द्रव्यमा बेसवाने समर्थ थाय? बहुसमद्वार.-लोकनो वक्रभाग.--संस्थानद्वार.
शतकं १३ उद्देशक ५. पृ. ३२४. नैरयिको शुं सचित्ताहारी छे, अचित्ताहारी छे के मिश्राहारी छे ?
__शतक १३ उद्देशक ६. पृ. ३२४-३२९, नारको सांतर के निरन्तर उपजे!-असुरकुमारना चमरेन्द्रनो चमरचंच नामे आवास.-चमरेन्द्र चमरचंच नामे आवासमा रहे छे?-चंपानगरी.पूर्णभद्र चैत्य.-सिन्धुसौवीर देश.-वीतभय.-उदायन राजा.-प्रभावती देवी.-पोताना भाणेज केशीकुमारने राज्याभिषेक करवानो उदायननो संकल्प. केशीकुमारनो राज्याभिषेक.-उदायननी दीक्षा अने मुक्ति.-अभिचिकुमारनो उदायनने विषे वैरानुबन्ध भने तेनुं वीतभय नगरथी नीकळी जवं.-अभिचिनो असुरकुमारमा उत्पाद,
शतक १३ उद्देशक ७. पृ. ३३०-३३४. भाषा.-भाषा आत्मस्वरूप छे के तेथी अन्य छे?-रूपी के अरूपी? –सचित्त के अचित्त-जीवखरूप के अजीवखरूप?-जीवोने भाषा के अजीवोने भाषा होय?-भाषा क्यारे कहेबाय?-भाषा क्यारे भेदाय?-भाषाना प्रकार.-मन.-मन आत्मा छे के तेथी अन्य छ?-मन क्यारे होय!-मन क्यारे मेदाय!-मनना प्रकार.-काय आत्मा छे के तेथी अन्य!-रूपी के अरूपी-काय क्यारे होय?-काय क्यारे मेदाय? कायना प्रकार.-मरणना प्रकार,-आवीचिक मरणना प्रकार.-द्रव्यावीचिक मरणना प्रकार.-नैरयिक द्रव्यावीचिक मरण.-क्षेत्राचीचिक मरण,-नारक क्षेत्रावीचिक मरण.-अवधि मरण.-द्रव्यावधि मरण.-नैरयिक द्रव्यावधि मरण शा हेतुथी कहेवाय छे?-आत्यन्तिक मरण, द्रव्यात्यन्तिक मरण.-नैरयिक द्रव्यात्यन्तिक मरण शाथी कहेवाय छे ? -बालमरणना प्रकार.-पंडितमरण.-पादपोपगमन.-भकप्रत्याख्यान,
शतक १३ उद्देशक ८. पृ. ३३५. कर्मप्रकृति.
शतक १३. उद्देशक ९. पृ० ३३५-३३७. वैक्रिय शक्तियी कोई दोरडाथी बांधली घटीका लेइने एवारूपे गमन करे! केटला रूपो विकुर्वी शके ?-हिरण्यनी पेटी लेइने गमन करे?-बड.. बागुलीनी पेठे गमन करे?-जलौकानी पेठे गमन करे? चीजबीजक पक्षीनी पेठे गमन करे?--बिडालक पक्षीनी पेठे गमन करे?--जीवंजीवक पक्षीनी जेम गमन करे-हंस पेठे गति करे.-समुद्रवायसना आकारे ग.ते करे?-चक्रहस्त पुरुषनी जेम गति करे?-नहस्त पुरुषनी पेठे गमन करे!-बिस. -मृणालिका.-वनखंड.-पुष्करिणीना आकारे आकाशमा गमन करे ? केटला रूपो विकु ?-मायासहित के मायारहित विकुर्वे ?
- शतक १३ उद्देशक १०. पृ. ३३८. समुद्धात.
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