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शतक १४ उद्देशक १. पृ० ३३९ - ३४२.
भावितात्मा अनगार, जेणे श्वरम देवावासनुं उल्लंघन कर्यु छे अने परम देवावासने प्राप्त थयो नथी ते मरीने क्यों उपजे ? — असुरकुमारावास. - नार· कोनी शीघ्र गति. –नारको अनन्तरोपपन्न, परंपरोपपन्न के अनन्तरपरंपरानुपपन्न छे ? - अनन्तरोपपश्च नारको आश्रयी आयुषनो बन्ध. - परंपरोपपन नैर-सिंकोने आयी सानो बन्थ अनन्तरपरंपरा नैरयिको अन्तरनितादि नैरयिको धारको अनन्तर निर्गतादि फेम कद्देवाय - परंपरा अनम्सरपरंपरा निर्गत अमन्सर दोपपत्र वगेरे.
तर नितादिनेाजवी आयु
शतक १४ उद्देशक २. पृ० ३४३ - ३४४.
उन्मादना प्रकार. – नारकोनो उन्माद - नारकोने शा हेतुथी उन्माद होय ? -- असुरकुमारोनो उन्माद - इन्द्र दृष्टि करे ? इन्द्र वृष्टि केवी रीते करे ? –शुं असुरकुमार देवो वृष्टि करे छे ? - ईशानेन्द्रादि तमस्काय करे ? – असुरकुमार तमस्काय करे ? –शा हेतुथी तमस्काय करे ?
शतक १४ उद्देशक ३. पृ० ३४५-३४६.
महाकाय देव भावितात्मा अनगारनी बच्चे थईने जाय ? — महाकाय असुरकुमार भावितात्मा अनगारनी बचे थईने जाय ? - नारकोमां सत्कारादि विनय होय असुर कुमारोमा सत्कारादि विनय पंचेन्द्रिय तिर्ययोमा सत्कारादि विनय होय !-अप महाऋषिदेवली वचे पहने जाय - समानऋद्धिवालो देव समानऋद्धिवाळा देवनी बच्चे थईने जाय ? - बच्चे थईने जनार देव शस्त्र प्रहार करीने जाय के कर्या शिवाय जाय ? - प्रथम शत्र प्रहार कर्या पंछी जाय के गया पछी शस्त्र प्रहार करे ? –नारको केवा प्रकारमा पुगलपरिणामने अनुभवे छे !
शतक १४ उद्देशक ४. पृ० ३४७-३४८.
पुद्गल परिणाम. अतीत कालने विषे एक समयमा पुद्गलनो परिणाम वर्तमान काले पुद्गलपरिणाम - अनागत काल. - पुद्गलस्कन्ध. - अतीत वर्तमान अने अनागतकाळे जीवपरिणाम. - परमाणुपुद्गल शाश्वत के अशाश्वत ? - परमाणु चरम के अचरम ? -- सामान्य परिणाम.
शतक १४ उद्देशक ५. पृ० ३४८-३५१.
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नारक अनिकायमा मध्य भागमां गमन करे ?- अरकुमारो. एकेन्द्रियो देहन्द्रिय पंचेन्द्रियविय अधि बचे पहने जाय ? नारको द स्थानोगो] अनुभव करे छे. असुरकुमारोपृथिवीकविको नेन्द्रियो तेइन्द्रियो चेन्द्रियवियो महार्दिक देवबहा
जीनो
पुद्गलोने ग्रहण कर्या शिवाय पर्वतादिने उल्लंघी शके ? --बहारना पुद्गलोने ग्रहण करी पर्वता दिने उल्लंघवा समर्थं छे.
शतक १४ उद्देशक ६. पृ० ३५२ - ३५३.
नारको बहार, परिणाम, योगि, स्थिति बगेरेनारको वीचि भने अवीचिव्यनो आहार करे छे.यारे इंद्र भोग भोगना इच्छे खारे करे ! -- ईशानेन्द्र भोग भोगववा इच्छे त्यारे ते केवी रीते भोगवे ?
शतक १४ उद्देशक ७. पृ० ३५४-३५७.
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केवलज्ञाननी अप्राप्तियी खिन्न थयेला गौतमखामिने आश्वासन. - अनुत्तरौपपातिक देवो जाणे छे अने जुए छे ! - तुल्यता. द्रव्यतुल्य — क्षेत्रतुल्य. - कालतुल्य.—भवतुल्य.~~भावतुल्य. - औदायिकादिभाववडे तुल्य — संस्थान तुल्य. - आहारनो त्यागी अनगार मूर्छित थई आहार करे अने पछी मरण-समुद्घात करी अनासक्त थई आहार करे ? - शा हेतुथी एम कद्देवाय छे ? – लवसत्तम देवो. अनुत्तरोपपातिक देवो. — फेटलं कर्म बाकी रहेवाथी अनुत्तर देवपणे उत्पन्न थाय !
शतक १४ उद्देशक ८. पृ० ३५८-३६१.
अन्तर
शत्रमा अने शर्कराभानुं अन्तर प्रभा भने बाइकमा सन्तराम मरकथियो भने अलोचनं प्रमाने ज्योि पितुं अन्तर यो भने सोधर्म-ईशान अन्तराल ने कुमार माहेन्द्रनुं अन्तर सनकुमार माहेन्द्र ने देवलोकनुं अन्तर. - ब्रह्मलोक अने लान्तकनुं अन्तर —लान्तक अने महाशुक्रनुं अन्तर - अनुत्तरविमान अने ईपत्प्राग्भारा पृथिवीनुं अन्तर. - ईषत्प्राग्भारा अने अलोकनुं अन्तर. - शालवृक्ष मरीने क्यां जशे ? - शालयष्टिका. उंबरयष्टिका मरण पामी क्यां जशे ? अंबड परिव्राजक अव्याबाध देव - इन्द्रफोइना मायाने सरवारथी कापी कलम नांवें तो पथ देने जरा दुःख न देवोभक देवो शाथी कहेवाब :- देवना प्रकार देवोनी स्थिति
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देवपरहे छे!
शतक १४ उद्देशक ९ पृ० ३६२ - २६४.
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जे भावितात्मा अनगार पोतानी कर्मलेश्याने जाणतो नथी ते सशरीर जीवने जाणे छे ? – रूपी पुद्गल स्कन्धो प्रकाशित थाय छे ? — जे पुत्रो प्रका ति यावते फेला छे नैरविकोने आत मुखोपादकलो होता मधी अनुरकुमारने भारत पुगलो. पृथिवीकायिकोने आत धने अनाव पुद्गलो. -- नारकोने इष्ट के अनिष्ट पुद्रलो होय छे ? महर्द्धिक देवनुं हजार रूपो विकुर्वीने हजार भाषा बोलवानुं सामर्थ्य. --- एक भाषा के हजार भाषा ? --- सूर्यनो अर्थ. - सूर्यनी प्रभा ए शुं छे ? — श्रमणोना सुखनी तुल्यता.
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