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यपुदलपरिवर्त.-नरयिकोने पुद्गलपरिवर्त.-एक नैरयिकने नरयिकपणामां औदारिकपुद्गलपरिवर्त.-एक नैरयिकने असुरपणामा औदारिकपुद्गलपरिवर्त.एक नैरयिकने पृथिवीकायपणामां औदारिकपुद्गलपरिवतों.-एक असुरकुमारने नैरयिकपणामां औदारिकपुद्गलपरिवर्त.-एक नैरयिकने नैरयिकपणामां वैक्रियपुद्गलपरिवर्त. नैरयिकने पृथिवीकायिकपणामां वैक्रियपुद्गलपरिवर्त. नैरयिकोने नैरयिकपणामा केटला औदारिकपुद्गलपरिवर्त व्यतीत थया छ ? -नैरयिकोने पृथिवीकायिकपणामां औदारिकपुद्गलपरिवर्त.-औदारिकपुद्गलपरिवर्त शा हेतुथी कहेवाय?-औदारिकपुद्गलपरिवर्तनो निष्पत्तिकाळ.-औदारिकादिपुरलपरिवर्तकाळy अल्पवहुत्व.-पुद्गलपरिवर्तनुं अल्पबहुत्व.
शतक १२ उद्देशक ५. पृ. २७५-२७८. प्राणातिपात वगेरे केटला वर्णादियुक्त छे?-क्रोधादि केटला वर्णादिसहित छे ?-मान वगेरे केटला वर्णादियुक्त छ ? -माया.-लोभ.-राग द्वेष वगेरे केटला वर्णादियुक्त छे?-प्राणातिपातविरमणादि केटला वर्णादियुक्त छे ?-चार प्रकारनी मति.-अवग्रहादि.-उत्थानादि केटला वर्णादियुक्त छ?सप्तम अवकाशान्तर.-सप्तम तनुवात.-नैरयिकोने वर्णादि.-पृथिवीकायिको.-मनुष्यो. वाणव्यन्तरादि.-धर्मास्तिकायादि.-ज्ञानावरणादि.-कृष्णलेश्यादि.-सम्यग्दृष्ट्यादि.-औदारिकादि शरीर.-साकारोपयोग अने अनाकारोपयोग.-सर्वद्रव्यो.-गर्भमां उत्पन्न यतो जीव.-जीव अने जगत् कर्मथी 'विविधरूपे परिणमे छे!
शतक १२ उद्देशक ६. पृ. २७९-२८१. राहु चन्द्रने ग्रसे छे ?-राहु देवर्नु वर्णन.-राहुना नामो.-राहुना विमानो.-राहु आवतो के जतो चन्द्रना प्रकाशने आवरे छे.--राहुना प्रकार.राहु चन्द्रने अने सूर्यने क्यारे ढांके ?-शा हेतुथी चंद्रने सश्री-शोभायुक्त कहेवाय छे ?-शा हेतुथी सूर्यने आदित्य कहेवाय छे?-चन्द्रने अपमहिपिओ.-सूर्य भने चन्द्र केवा प्रकारना कामभोगो भोगवे छे! .
शतक १२ उद्देशक ७. पृ. २८२-२८५ लोकनुं महत्त.-नरकपृथिवी.-आ जीव रत्नप्रभाना एक एक नरकावासमा पृथिवीकायिकादिपणे उत्पन्न थयो छे?-सर्व जीयो,-शर्कराप्रभामा नरकावासमां पृथिवीकायिकादिपणे उत्पन थयो छे ?-तमा पृथिवी.-सप्तम पृथिवीमा पूर्व उत्पन्न थयो छे?-असुरकुमार.-पृथिवीकायिकावासमा पूर्व उत्पन्न थयो छ?-बेइन्द्रियावासमा पूर्व उत्पन थयो, छे ? -सनत्कुमार कल्पमा.-प्रेवेयकविमानावासमां.-अनुत्तर विमानावासमां.-आ जीव सर्व जीवोना मातापिता इत्यादि संबन्धरूपे उत्पन्न थयो छ?-सर्व जीवो आ जीवना माता इत्यादि संबन्धरूपे उत्पन्न थया छे?-आ जीव सर्व जीवना शत्रुरूपे उत्पन्न थयो छै?-सर्व जीयो.-आ जीव सर्व जीवना राजा तरीके उत्पन्न थयेल छे ?-आ जीव सर्व जीवोना दासरूपे उत्पन्न थयेल छे । -सर्व जीवो.
शतक १२ उद्देशक ८. पृ. २८६-२८७. ___महाऋद्धिवाळो देव मरीने मात्र बे शरीरवाळा नागोमां उपजे ?-नागना जन्ममा अचिंत-पूजित थाय?-बे शरीरवाळा मणिमा उत्पन्न थाय!बे शरीरवाळा वृक्षा उत्पन्न थाय?-वानर वगेरे जीवो रत्नप्रभामा उत्पक्ष थाय?-सिंह वगेरे पण नैरयिकपणे उपजे!-काक वगेरे.
शतक १२ उद्देशक ९. पृ० २८८-२९३. देवोना भव्यदेवादिप्रकार. भव्यद्रव्यदेवादि कहेवार्नु कारण.-नरदेव.-धर्मदेव.-देवाधिदेव.-भावदेव.-भव्यद्रव्यदेवो क्याथी आवीने उपजे?नरदेवो क्याथी आवीने उपजे !-रन्नग्रभादिमांथी कइ नरकपृथिवीथी आवी उपजे?-शु भवनवासीआदि देवोमांथी क्या देवोथी आवी उपजे?-धर्मदेव क्यांधी भावी उपजे!-देवाधिदेव क्याथी उपजे ?-रत्नप्रभादि नरकपृथिवीमाथी कह नरकपृथिवीथी आवी उपजे?-देवोमा सर्व वैमानिक देवोथी मावीने उपजे?-भावदेवो क्याथी आवी उपजे?-भव्यद्रव्यदेवनी स्थिति.-नरदेवनी स्थिति.-धर्मदेवनी स्थिति. देवाधिदेवनी स्थिति.-भावदेवनी स्थिति.भव्यद्रव्यदेवनी विकुर्वणाशक्ति.-देवाधिदेवनी विकुर्वणाशक्ति-भावदेवनी विकुर्वणाशक्ति.-भव्यद्रव्यदेवो मरण पामी क्यां जाय !-नरदेव मरण पामी क्या उपजे ?-धर्मदेव मरण पामी क्या जाय !-धर्मदेवो क्या देवोमां उत्पन्न थाय ?-देवाधिदेवो मरण पामी क्या जाय ?-भावदेव मरण पामी क्यां जाय?-भव्यद्रव्यदेवोनी स्थिति.-भव्यद्रव्यदेवने केटला काळचें अंतर होय?-नरदेवने परस्पर केटलं अन्तर होय!-धर्मदेवने परस्पर केटलं अन्तर होय?-देवाधिदेवर्नु अन्तर--भावदेवतुं अन्तर.-भव्यद्रव्यदेवादिनु परस्पर अल्पबहुत्व.
शतक १२ उद्देशक १०. पृ० २९४-३००. आत्माना प्रकार.-द्रव्यात्मा अने कपायात्मानो संबन्ध,-द्रव्यात्मा अने योगात्मानो संबन्ध.-द्रव्यात्मा अने उपयोगात्मानो संबन्ध.-द्रव्यात्मानो ज्ञानात्मानी साथे संबन्ध.-दर्शनात्मा साथे संबन्ध.-चारित्रात्मा साथे संबन्ध.-वीर्यात्मा.-कपायात्मा अने योगात्मानो संबन्ध.-कषायात्मा अने दशनात्मानो संबन्ध-द्रव्यात्मा वगेरेनुं अल्पबहुत्व.-आत्मा ज्ञानस्वरूप छे के अन्यस्वरूप छ?-नैरयिकोनो आत्मा.-पृथिवीकायिकोनो आत्मा.-आत्मा दर्शनरूप छे के तेथी अन्य छे?-नैरयिकोनो आत्मा.-रत्नप्रभा पृथिवी सदुरूप छे के असदुरूप छे?-शर्कराप्रभा.-सौधर्मदेवलोक.-वेयकविमान.एक परमाणु सद्रूप छे के असद्रूप छे ?-द्विप्रदेशिक स्कन्ध-शा हेतुथी सद्प छे इत्यादि.-त्रिप्रदेशिक स्कन्धना आत्मा-आदि तेर भांगा.-शा हेतुथी त्रिप्रदेशिकस्कन्धना 'आत्मा' इत्यादि भांगा थाय छे?-चतुष्प्रदेशिकस्कन्धना १९ भांगाओ.-शा हेतुथी 'आत्मा' इत्यादि रूप छे.-पंचप्रदेशिकस्कन्धना २२ भांगाओ.-शा हेतुथी आत्मा इत्यादिरूप छे ?
___ शतक १३ उद्देशक १. पृ. ३०१-३०६. नरकपृथिवी.-रत्नप्रभाने विषे नरकावासो.---संख्याता योजन विस्तारवाळा नरकावासोमा एक समये नारकादिनो उत्पाद.-एक समये नारकादिनी उद्वर्तना.--रत्नप्रभामां नारक जीवोनी सत्ता.--असंख्ययोजनवाळा नरकायासोमा नारकादिनो उत्पाद.-शर्कराप्रभामां नरकावासो.-यालुकाप्रभामा नरकावासो.-पंकप्रभामां नरकावासो.-धूमप्रभामा नरकावासो.-तमःप्रभामां नरंकावासो.-सप्तम नरकमां नरकायासो.-रत्नप्रभामा संख्यात योजनविस्तारवाळा नरकावासोमा सम्यष्टि वगेरेनो उत्पाद.-सम्यग्दृष्टि वगेरेनी उद्वर्तना.-सम्यग्दृष्टि वगेरेथी अविरहित होय.-सप्तम नरकमां सम्यग्दृष्टि
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