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________________ खारक शरीरवन्धनो संबन्ध. तैजसशरीरनो संवन्ध. देशवन्धक के सर्व बन्धक कार्मणशरीरनो संबन्ध. बौदारिक शरीरना देशबन्ध साथै वैक्रिय शरीरनो संबन्ध. श्रीरायचन्द्र - जिनागमसंग्रहे शतक ८. - उद्देशक ९. ९४. [०] जस्सणं भंते ओरालियसरीरस्स सङ्घबंधे से णं भंते ! वेउधियसरीरस्स कि बंधए, अबंधप ! [उं०] गोयमा ! नो बंधए, अबंधए । ११६ ९५. [प्र०] आहारगसरीरस्स किं बंधए अबंधर ? [30] गोयभा ! नो बंघए अबंधप । ९६. [प्र० ] तेयासरीररस कि बंधप, अबंध‍ [30] गोयमा ! बंध, नो अधर । शरीरबन्धनो परस्पर संबन्ध. चौदारिक शरीरना ९४. [प्र० ] हे भगवन् ! जे जीवने औदारिकशरीरनो सर्वबन्ध छे ते जीव शुं वैक्रियशरीरनो बन्धक छे के अबन्धक छे ! [उ०] सर्वयन्ध साथै वै- हे गौतम ! ते बन्धक नथी; पण अबन्धक छे. क्रिपशरीरबन्धनो संवन्ध. ९७. [प्र० ] जर बंध किं देसबंध सङ्घबंध‍ ? [अ०] गोयमा ! देसबंधप, नो सङ्घबंधर । ९८. [२०] कम्मासरीरस्स कि बंधर, अबंध [30] अहेव तेयगस्स, जाव देसबंध जो Jain Education International ९९. [२०] जस्स णं भंते! ओराहियसरीरस्स देसबंधे से णं भंते! वेडधिवसरीरस्स किं पंधर, अयंचर [४०] गोयमा ! नो बंध, अबंधर । एवं जहेव संबंधणं भणियं तहेव देसबंधेण वि भाणियां जाव कम्मगस्स । १००. [प्र० ] जस्स णं भंते ! वेउब्वियसरीरस्स सङ्घबंधे से णं भंते ! ओरालियसरीरस्स किं बंधप, अबंधर ? [अ०] गोयमा ! नो बंध, अबंधप । आहारगसरीरस्स एवं चेव, तेयगस्स कम्मगस्स य जहेव ओरालिएणं समं मणियं तद्वेष भाणियवं 'जाव देसबंधर, नो सङ्घबंघए । १०१. [प्र० ] जस्स णं भंते! वेउधियसरीरस्स देसवंधे से णं भंते ! ओरालियसरीरस्स किं बंधए, अबंधर ? [30] गोयमा ! नो बंधए, अबंधर । एवं जहेव सङ्घबंधणं भणियं तहेव देसबंधेण वि भाणियष्वं जाव कम्मगस्स । १०२. [अ०] जस्स भंते! आहारगसरीरस्स सङ्घयंधे से णं भंते! ओराडियसरीरस्स कि बंपर, अधर [30] गोषमा ! नो बंध, अवंधर एवं येउधियस्स वि, तेया कम्माणं जहेब ओरालिएणं समं भणियं तदेव माणियां | ९५. [प्र०] औदारिकशरीरनो सर्वबन्धक शुं आहारकशरीरनो बन्धक छे के अबन्धक छे ? [उ०] है गौतम ! बन्धक नयी, पण अबन्धक छे. ९६. [प्र०] तैजसशरीरनो बन्धक छे के अबन्धक छे ? [उ०] हे गौतम! ते तैजसशरीरनो बन्धक छे पण अबन्धक नथी. ९७. [प्र०] हे भगवन् ! जो ते ( तैजस शरीरनो) बन्धक छे तो शुं देशबन्धक छे के सर्वबन्धक छे ! [उ०] हे गौतम ! देशबन्धक छे, पण सर्वबन्धक नथी. ९८. [ प्र० ] कार्मणशरीरनो बंधक के अबंधक छे ! [30] हे गौतम 1 तैजस शरीरनी पेढे यावत् कार्मणशरीरनो देशबन्धक हे पण सर्वबन्धक नथी. ९९. [प्र०] हे भगवन् ! जेने औदारिकशरीरनो देशबन्ध छे ते जीव शुं वैक्रियशरीरनो बन्धक छे के अबन्धक छे ! [उ०] हे गौतम! बन्धक नथी, पण अबन्धक छे. ए प्रमाणे जेम सर्वबन्धना प्रसंगे कयुं, तेम अहीं देशबन्धना प्रसंगे पण यावत् कार्मण शरीर सुधी कहे. वैक्रिय शरीरना १००. [प्र०] हे भगवन् ! जे जीवने वैक्रियशरीरनो सर्वबन्ध छे ते जीव शुं औदारिकशरीरनो बन्धक छे के अबन्धक छे ? सर्वबन्ध साथै औदा- [उ०] हे गौतम! बन्धक नथीं, पण अबन्धक छे. ए प्रमाणे आहारकशरीर माटे पण जाणवुं, तैजस अने कार्मण शरीरने जेम औदारिक शरीरनी साधे कां तेम बैक्रिपशरीरनी साधे पण कहेतुं यावद् देशबन्धक छे पण सर्वबन्धक नवी रिक शरीरनो संबन्ध. देशबन्ध साये चौदा १०१. [प्र०] हे भगवन् ! जे जीवने वैक्रियशरीरनो देशबन्ध छे ते जीव शुं औदारिक शरीरनो बन्धक छे के अबन्धक छे ! रिक शरीरबन्धन [30] हे गौतम! बन्धक नथी, पण अबन्धक छे. ए प्रमाणे जेम [ वैक्रियशरीरना ] सर्वबंधना प्रसंगे कयुं तेम अहीं देशबन्धना प्रसंगे पण यावत् कार्मणशरीर सुधी कहेवुं. संवन्ध आहारक शरीरना १०२. [प्र० ] हे भगवन् ! जे जीवने आहारकशरीरनो सर्वबन्ध होय ते जीव शुं औदारिकशरीरनो बन्धक छे के अबन्धक छे ! सर्वबन्ध साथै बौदा [30] हे गौतम ! बन्धक नथी, पण अबन्धक छे. ए प्रमाणे वैक्रियशरीरने पण जाणवुं. अने जेम तैजस अने कार्मण शरीरने औदारिक मिक शरीरबन्धनो For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004642
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherDadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
Publication Year
Total Pages422
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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