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शतक ८.-उद्देशक ९. भगवसुधर्मस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र.
११७ १०३. [प्र०] जस्स णं भंते ! आहारगसरीरस्स देसबंधे से णं भंते! ओरालियसरीरस्स? [उ.1 एवं जहा आहारगस्स सबंधेणं भणियं तहा देसबंधण वि भाणियवं, जाव कम्मगस्स ।
१०४. [प्र० जस्स गं भंते! तेयासरीरस्स देसबंधे से णं भंते ! ओरालियसरीरस्स किं बंधए, अबंधए? [उ.1 गोयमा ! बंधए वा, अबंधए वा।
१०५. [प्र०] जइ बंधए किं देसबंधए, सवबंधए ? [उ०] गोयमा! देसवंधए वा सवबंधए वा। १०६. [प्र०] वेउधियसरीरस्स किं बंधए, अबंधए ? [उ०] एवं चैव, एवं आहारगसरीरस्स वि । १०७. [प्र०] कम्मगसरीरस्स किं बंधए, अबंधए ? [उ०] गोयमा! बंधए, नो अबंधए। १०८. [प्र०] जइ बंधए किं देसवंधए, सबबंधए ? [उ०] गोयमा! देसबंधए, नो सबंधए ।
१०९. [प्र०] जस्स णं भंते ! कम्मासरीरस्स देसबंधे से णं भंते ! ओरालियस्स.? [उ०] जहा तेयगस्स बत्तवया मणिया तहा कम्मगस्स वि भाणियधा, जाव तेयासरीरस्स जाव देसबंधए, नो सष्पबंधए ।
११०. [प्र०] एएसिणं भंते! सध्वजीवाणं ओरालिय-वेउविय-आहारग-तेया-कम्मासरीरगाणं देसबंधगाणं सवबंधगाणं अबंधगाण य कयरे कयरोहिंतो जाव विसेसाहिया वा ? [उ०] गोयमा ! सव्वत्थोवा जीवा आहारगसरीरस्स सबंधगा, तस्स चेव देसबंधगा संखेजगुणा । वेउवियसरीरस्स सबंधगा असंखेजगुणा, तस्स चेव देतबंधगा असंखेजगुणा । तेया-कम्मगाणं अबंधगा अणंतगुणा दोण्ह वि तुल्ला । ओरालियसरीरस्स सबंधगा अणंतगुणा, तस्स चेव अबंधगा विसेसाहिया, तस्स चेव देसबंधगा असंखेजगुणा । तेया-कम्मगाणं देसवंधगा विसेसाहिया; वेउवियसरीरस्स अबंधगा विसेसाहिया, आहारगसरीरस्स अबंधगा विसेसाहिया । सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति ।
अट्ठमसए नवमो उद्देसो समचो।
१०३. [प्र०] हे भगवन् ! जे जीवने आहारक शरीरनो देशबन्ध छे ते जीव शुं औदारिक शरीरनो बन्धक छे के अबन्धक छे! आहारक शरीरना
देशबन्ध साथे बौदा [उ०] हे गौतम! जेम आहारक शरीरना सर्वबन्ध साथे कयुं छे तेम देशबन्धनी साथे पण यावत् कार्मणशरीर सुधी कहे.
रिक शरीरनो संबन्ध १०१. (प्र०] हे भगवन् ! जे जीवने तैजसशरीरनो देशबन्ध छे ते जीव शुं औदारिक शरीरनो बन्धक छे के अबन्धक छे! तैजस शरीरना देश
पन्धक साये सौदा[उ०] हे गौतम ! बन्धक पण छे अने अबन्धक पण छे.
रिक शरीरनो संवन्ध १०५. प्रि०] जो ते जीव [औदारिक शरीरनो] बन्धक छे तो शुं देशबन्धक छे के सर्वबन्धक छे! उ० हे गौतम! ते बौदारिक शरीरनो देशबन्धक पण छे अने सर्वबन्धक पण छे.
देशवन्धक के सर्वक
न्धको ... १०६. [प्र०] ते जीव शुं वैक्रियशरीरनो बन्धक छे के अबन्धक छे ! [उ०] पूर्वनी पेठे जाणवू, ए प्रमाणे आहारक शरीर माटे क्रियशरीरनो प
न्धक के अबन्धको पण जाणवं. . १०७. [प्र०] ते जीव शुं कार्मण शरीरनो बन्धक छे के अबन्धक छे ! [उ०] हे गौतम ! बन्धक छे, पण अबन्धक नथी. कार्मण शरीरनो
भक के अबन्धक १०८. [प्र०] जो [ कार्मण शरीरनो] बन्धक छे तो शुं देशबन्धक छे के सर्वबन्धक छे ? [उ०] हे गौतम ! देशबन्धक छे, देशवन्धक के सर्वपण सर्वबन्धक नथी.
वन्धक! १०९. [प्र०] हे भगवन् ! जे जीवने कार्मणशरीरनो देशबन्ध छे ते जीव शुं औदारिकनो बन्धक छे के अबन्धक छे! [उ०] कामण शरीरना देश
बन्धक साये औदाजेम तैजसशरीरनी वक्तव्यता कही, तेम कार्मण शरीरनी पण वक्तव्यता कहेवी, यावत् तैजसशरीरनो देशबन्धक छे, पण सर्वबन्धक नथी.'
संवन्ध ११०. प्र०] हे भगवन् ! औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तैजस अने कार्मणशरीरना देशबन्धक, सर्वबन्धक अने अबन्धक एवा सर्व शरीरना देशबन्धक, जीवोमां कया जीवो कया जीवोथी यावद् विशेषाधिक छे ? [उ०] हे गौतम! १ सौथी थोडा जीवो आहारक शरीरना सर्वबन्धक छे, २ तेथी व
न्यकर्नु अल्पबहुल. तेना देशबन्धक संख्यातगुणा छे, ३ तेथी वैक्रियशरीरना सर्वबन्धक असंख्यातगुणा छे, ४ तेथी तेना देशबन्धक जीवो असंख्यातगुणा छे, ५ तेथी तैजस अने कार्मण शरीरना अबन्धक जीवो अनंतगुण अने परस्पर तुल्य छे. ६ तेथी औदारिक शरीरना सर्वबन्धक जीवो अनंत गुण छे, ७ तेथी तेना अबन्धक जीवो विशेषाधिक छे, ८ तेथी तेना देशबन्धक जीवो असंख्येयगुणा छे, ९ तेथी तैजस अने कार्मण शरीरना देशबन्धक जीवो विशेषाधिक छे, १० तेथी वैक्रिय शरीरना अबन्धक जीवो विशेषाधिक छे, ११ तेथी आहारक शरीरना अबन्धक जीवो विशेषाधिक छे. हे भगवन् ! ते एम ज छे, हे भगवन् ! ते एम ज छे [ एम कही भगवान् गौतम! यावद् विहरे छे. ]
___ अष्टम शतके नवम उद्देशक समाप्त. १ कम्मगस-घ। २ दुह वि तुल्ला अयंधगा अणंतगुणा छ ।
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