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शतक ८.-उद्देशक ९.
भगवत्सुधर्मस्खामिप्रणीत भगवतीसूत्र. ८६. [प्र०] उच्चागोयकम्मासरीर-पुच्छा । [उ०] गोयमा ! जातिअमदेणं, कुलअमदेणं, बलअमदेणं, रूवामदेणं, तपामदेणं, सुयअमदेणं, लाभअमदेणं, इस्सरियअमदेणं उच्चागोयकम्मासरीर० जाव पयोगबंधे।
८७. [प्र०] नीयागोयकम्मासरीर-पुच्छा । [उ०] गोयमा ! जातिमदेणं, कुलमदेणं, घलमदेणं, जाव इस्सरियमदेणं नीयागोयकम्मासरीर० जाव पयोगबंधे।
८८. [प्र०] अंतराइयकम्मासरीर-पुच्छा । [उ०] गोयमा! दाणंतरापणं, लाभंतरापणं, भोगंतराएणं, उपभोगंतराएणं, वीरियंतरापणं अंतराइयकम्मासरीरप्पयोगनामाए कम्मस्स उदएणं अंतराइयकम्मासरीरप्पयोगधंधे।
८९. [प्र०] णाणावरणिजकम्मासरीरप्पयोगबंधे णं भंते ! किं देसबंधे, सपबंधे ? [उ०] गोयमा! देसवंधे, णो सबबंधे, एवं जाव अंतराइयं ।
९०. [प्र०] णाणावरणिजकम्मासरीरप्पयोगबंधे णं भंते ! कालओ केवश्चिरं होइ ? [उ०] गोयमा! दुविहे पण, तं जहा-अणादीए एवं जहा तेयगस्स संचिटणा तहेव, एवं जाव अंतराइयस्स । . ९१. [प्र०] णाणावरणिजकम्मासरीरप्पयोगधंतरं णं भंते ! कालओ केवञ्चिरं होइ ! [उ०] गोयमा ! अणाइयस्स, एवं जहा तेयगसरीरस्स अंतरं तहेव, एवं जाव अंतराइयस्स ।
९२. [प्र०] एएसि णं भंते ! जीवाणं णाणावरणिजस्स कम्मस्स देसबंधगाणं, अबंधगाण य कयरे कयरे जाव ? [उ०] अप्पाबहुगं जहा तेयगस्स, एवं आउयवजं जाव अंतराइयस्स । - ९३. [प्र०] आउयस्स पुच्छा। [उ०] गोयमा! सवत्थोवा जीवा आउयस्स कम्मस्स देसबंधगा, अबंधगा संखेजगुणा।
८६. [प्र०] उच्चगोत्रकार्मणशरीरप्रयोगबन्ध संबन्धे प्रश्न. [उ०] हे गौतम ! जातिमद न करवाथी, कुलमद न करवायी उसगोष बलमद न करवाथी, रूपमद न करवाथी, तपमद न करवाथी, श्रुतमद न करवाधी, लाभमद न करवायी अने ऐश्वर्यमद न करवाथी, तथा उच्चगोत्रकार्मणशरीरप्रयोगनामकर्मना उदयथी उच्चगोत्रकार्मणशरीरप्रयोगबन्ध थाय छे.
८७. [प्र०] नीचगोत्रकार्मणशरीरप्रयोगबन्ध संबन्धे प्रश्न. [उ०] हे गौतम ! जातिमद करवाथी, कुलमद करवाथी, बलमद नौबगोक करवाथी, यावद् ऐश्वर्यमद करवाथी तथा नीचगोत्रकार्मणशरीरप्रयोगनामकर्मना उदयथी नीचगोत्रकार्मणशरीरप्रयोगबन्ध थाय छे.
८८. [प्र०] अंतरायकार्मणशरीरप्रयोगबन्ध संबन्धे प्रश्न. [उ०] हे गौतम ! दाननो अन्तराय करवायी, लाभनो अन्तराय करवायी, भोगनो अन्तराय करवाथी, उपभोगनो अन्तराय करवाथी अने वीर्यनो अन्तराय करवाथी तथा अन्तरायकार्मणशरीरप्रयोगनामकर्मना उदयथी अंतरायकार्मणशरीरप्रयोगबन्ध थाय छे.
८९. [प्र०] हे भगवन् ! ज्ञानावरणीयकार्मणशरीरप्रयोगबन्ध शुं देशबन्ध छे के सर्वबन्ध छे ! [उ०] हे गौतम ! देशबन्ध छे, पानावरणीयनो पण सर्वबन्ध नथी. ए प्रमाणे यावद् अन्तरायकार्मणशरीरप्रयोगबन्ध सुधी जाणवू.
देशवन्द
सर्वबन्दी ९०. [प्र०] हे भगवन् ! ज्ञानावरणीयकार्मणशरीरप्रयोगबन्ध कालथी क्या संधी होय ! [उ०] हे गौतम! ज्ञानावरणीयकार्मण- पानावरणीयकामक शरीरप्रयोगबन्ध बे प्रकारनो कह्यो छे; ते आ प्रमाणे-अनादि सपर्यवसित (सान्त) अने अनादि अपर्यवसित (अनन्त). ए प्रमाणे : यावत् जेम तैजस शरीरनो स्थितिकाल कह्यो छे तेम अहीं पण कहेवो, ए प्रमाणे यावद् अन्तराय कर्मनो स्थितिकाल जाणवो.
९१. [प्र०] हे भगवन् ! ज्ञानावरणीयकार्मणशरीरप्रयोगबन्धनुं अन्तर कालथी क्या सुधी होय ! [उ०] हे गौतम ! अनादि पानावरणीयकामण अनंत अने अनादि सांत छे. जे प्रमाणे तैजसशरीरप्रयोगबन्धन अन्तर कह्यु (सू. ७२.) ते प्रमाणे अहीं पण कहे,. ए प्रमाणे यावद्
शरीर प्रयोगवन्धर्नु अंतरायकार्मणशरीरप्रयोगबन्धनुं अन्तर जाणवू.
९२. [प्र०] हे भगवन् ! ज्ञानावरणीय कर्मना देशबन्धक अने अबन्धक जीवोमां कया जीवो कया जीवोथी यावद् विशेषाधिक छे? देशबन्धक भने मा [उ०] जेम तैजस शरीरनुं अल्पबहुत्व कयु (सू. ७३.) तेम अहीं पण जाणवू. ए प्रमाणे आयुषकर्म शिवाय यावत् अन्तराय कर्म सुधी जाणq. '
मर्नु मपमहत्व ९३. [प्र०] आयुषकर्म संबन्धे प्रश्न. [उ० ] हे गौतम ! आयुषकर्मना देशबन्धक जीवो सौथी थोडा छे, अने तेनाथी अबंधक आयु कमैना पैटजीवो संख्यातगुण छे.
एन्धक बनेगबन्धक बीबोर्नु मस्परहुल.
भणाइए सपजवसिए, अणाइए अपज्जवसिए वा एवं -ग-ध। २ जहेव छ। ३-यक्रम्मस्स ग-छ। ४-सरे गंक विनाऽन्यत्र । ५'बाउयपु-क।
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