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१०२ श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे
शतक ८.-उद्देशक ९. ६. [प्र०] सादीयवीससाबंधे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? [उ०] गोयमा! तिविहे पण्णत्ते, तं जहा-बंधणपश्चइए, भायणपञ्चइए, परिणामपञ्चइए।
७. प्र०] से किं तं बंधणपच्चइए ? [उ०] बंधणपञ्चइए जणं परमाणुपुग्गलादुप्पएसिया-तिप्पएसिया-जाव दसपएसिया-संखेजपएसिया-असंखेजपएसिया-अणंतपएसियाणं खंधाणं वेमायनिद्धयाए, वेमायलुक्खयाए, वेमायनिद्धलुक्खयाए बंधणपञ्चइए णं बंधे समुप्पजइ, जहन्नेणं एक समयं, उक्कोसेणं असंखेजं कालं । सेत्तं बंधणपञ्चइए ।
८. [प्र०] से किं तं भायणपञ्चइए? [उ.] भायणपञ्चइए जंणं जुन्नसुरा-जुन्नगुल-जुन्नतंदुलाणं भायणपच्चइए णं बंधे समुप्पजइ, जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं संखेजं कालं । सेत्तं भायणपश्चाए ।
९. [प्र०] से किं तं परिणामपञ्चइए ? [उ०] परिणामपञ्चइए जं णं अम्भाणं, अब्भरुक्खाणं जहा ततियसए जाव अमोहाणं परिणामपञ्चइए णं बंधे समुप्पजइ, जहन्नेणं एकं समयं उक्कोसेणं छम्मासा । सेत्तं परिणामपञ्चइए । सेत्तं सादीयवीससाबंधे । सेत्तं वीससावंधे ।
१०. [प्र०] से किं तं पयोगबंधे ? [उ०] पयोगबंधे तिविहे पन्नत्ते, तं जहा-अणाईए वा अपजवसिए, साईए वा अपज्जवसिए, साईर वा सपजवसिए । तत्थ णं जे से अणाईए अपजवसिए से णं अटण्हं जीवमज्झपएसाणं, तत्थ वि णं तिण्हं तिण्हं अणाईए अपजवसिए, सेसाणं साईए । तत्थ णं जे से साइए अपजवसिए से णं सिद्धाणं । तत्थ णं जे से साईए सपजवसिए से णं चउविहे पण्णत्ते, तं जहा-आलावणबंधे, अल्लियावणबंधे, सरीरबंधे, सरीरप्पओगबंधे। ,
सादि विस्रसाबन्ध.
बन्धनप्रत्ययिक
बन्ध.
भाजनप्रत्यायिक
बन्ध.
६. [प्र०] हे भगवन् ! सादिविस्रसाबन्ध केटला प्रकारनो कह्यो छे ! [उ०] हे गौतम ! त्रण प्रकारनो कह्यो छे; ते आ प्रमाणे१ *बंधनप्रत्ययिक, २ भाजनप्रत्ययिक अने ३ परिणामप्रत्ययिक.
७. प्र०] हे भगवन् ! बंधनप्रत्ययिक [सादि बन्ध] केवा प्रकारे छे! [उ०] द्विप्रदेशिक, त्रिप्रदेशिक, यावद् दशप्रदेशिक, संख्यातप्रदेशिक, असंख्यातादेशिक अने अनंतप्रदेशिक परमाणु पुद्गलस्कंधोनो विषम स्निग्धता (चिकाश) वडे, विषम रूक्षता वडे अने विषम स्निग्ध-रूक्षता वडे बन्धनप्रत्ययिक बन्ध थाय छे. ते जघन्यथी एक समय, अने उत्कृष्टथी असंख्य काल सुधी रहे छे. ए प्रमाणे बंधनप्रत्ययिक बन्ध कह्यो.
८. [अ०] हे भगवन् ! भाजनप्रत्ययिक बन्ध केवा प्रकारे होय ! [उ०] जूिनी मदिरानो, जूना गोळनो अने जुना चोखानो भाजन प्रत्ययिक बन्ध थाय छे. ते जघन्यथी अन्तर्मुहूर्त अने उत्कृष्ट संख्यात काल सुधी रहे छे. ए प्रमाणे भाजनप्रत्ययिक बन्ध कह्यो.
९. प्र०] हे भगवन् ! परिणामप्रत्ययिक बन्ध केवा प्रकारे छे ? [उ०] वादळाओनो, अभ्रवृक्षोनो जेम तृतीय शतकमा कह्यं छे तेम यावद अमोघोनो परिणामप्रत्ययिक बन्ध उत्पन्न थाय छे. ते जघन्यथी एक समय अने उत्कृष्टथी छ मास सुधी रहे छे, ए प्रमाणे परिणामप्रत्ययिकबन्ध, सादि विस्रसाबन्ध अने विस्रसाबन्ध कह्यो.
१०. [प्र०] हे भगवन् ! प्रयोगबन्ध केवा प्रकारे छे ? [उ०] प्रयोगबन्ध त्रण प्रकारनो कह्यो छे, ते आ प्रमाणे- १ अनादि अपर्यवसित, २. सादि अपर्यवसित अने ३ सादि सपर्यवसित प्रयोगबन्ध. तेमा जे अनादि अपर्यवसितबन्ध छे ते जीवना आठ मध्यप्रदेशोनो होय छे, ते आठ प्रदेशोमां पण त्रण त्रण प्रदेशोनो जे बन्ध ते अनादि अपर्यवसित बन्ध छे. बाकीना सर्वप्रदेशोनो सादि सपर्यवसित (सान्त ) बन्ध छे. तेमां सादि अपर्यवसित बन्ध सिद्धना जीव प्रदेशोनो छे. सादिक सपर्यवसित बन्ध चार प्रकारनो कह्यो छे, ते आ प्रमाणे- १ आलापनबन्ध, २ आलीनबन्ध, ३ शरीरबन्ध अने ४ शरीरप्रयोगबन्ध.
परिणामप्रत्ययिक
बन्ध.
प्रयोगान्ध.
६.*१ स्निग्धत्वादि गुणद्वारा द्विप्रदेशिक, यावत् अनन्तप्रदेशिक परमाणुओनो बन्ध थाय ते बन्धनप्रत्ययिक. २ भाजन एटले आधार, ते निमित्ते जे बन्ध थाय ते भाजनप्रत्यायिक. ३ परिणाम एटले रूपान्तर, ते निमित्ते जे बन्ध थाय ते परिणामप्रत्ययिक.
८.1 एक भाजनमा रहेली जूनी मदिरा घट्ट थाय छे अने जूना गोळ तथा जूना चोखानो पिंड थाय छे ते भाजनप्रत्ययिक बन्ध जाणवो-टीका. ९. भग. द्वि. सं. श. ३ उ. ७ पृ. ११२ सू. ३.
१०. ॥ प्रयोगबन्ध एटले जीवना व्यापार वडे जीव प्रदेशोनो अने औदारिकादि शरीरना पुद्गलोनो जे बन्ध थाय ते. तेना चार भांगा थाय छे. तेमा मही बीजा भांगाने छोडीने त्रण भांगा लागु पडे छे. तेमा असंख्यातप्रदेशिक जीवना जे मध्य प्रदेशो छे तेनो अनादि अपर्यवसित बन्ध छे. कारण के ज्यारे जीव केवलि समुद्घात वखते समग्र लोकने व्यापीने रहे छे त्यारे पण ते तेवीज स्थितिमा रहे छे, पण वीजा जीव प्रदेशोमा विपरिवर्तन थतुं होवाथी तेभोनो अनादि अनन्त बन्ध नथी. तेनी स्थापनाः-: चार प्रदेशोनी उपर बीजा चार प्रदेशो आवेला छे. एवी रीते समुदायथी आठ प्रदेशोनो बन्ध कहेलो छे. ते आठ प्रदेशोमां पण कोइ पण एक प्रदेशनो तेनी पासे रहेला बे प्रदेशो अने उपर के नीचे रहेला एक प्रदेश साथे एम त्रण त्रण प्रदेश साथे अनादि अपर्यवसित बन्ध छे-टीका.
१ रज्जु वगेरेथी तृणादिनो बन्ध ते आलापन बन्ध. २ एक पदार्थनो बीजा पदार्थनी साथे लाख वगेरेथी बन्ध धवो ते आलीनबन्ध, ३ समुद्घात करवामां विस्तारत अने संकोचित जीवप्रदेशोना संबन्धथी तैजसादि शरीर प्रदेशोनो संबन्ध ते शरीरबन्ध. अथवा समुद्घात करवामां 'संकुचित थयेला आत्मप्रदेशोनो संवन्ध ते शरीरबन्ध' एम अन्य आचार्य माने छे. ४ औदारिकादि शरीरना व्यापारथी शरीरना पुद्गलोने ग्रहण करवारूप बन्ध ते शरीरप्रयोगबन्ध-टीका.
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