________________
शतक ८.-उद्देशक ९. भगवन्सुंधर्मस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र,
१०३ ११. [प्र०] से किं तं आलावणबंधे? [उ.] आलावणबंधे जंणं तणभाराण वा, कट्ठभाराण वा, पत्तभासण वा, पलालभाराण वा, वेल्लभाराण वा वेत्तलता-बाग-वरत्त-रज्जु-वल्लि-कुस-दभमादीपहिं आलावणयंधे समुप्पज्जा जहणं मंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं संखेनं कालं, सेत्तं आलावणबंधे।
१२. [प्र०] से किं तं अलियावणबंधे ? [उ०] अल्लियावणबंधे चउधिहे पन्नत्ते, तं जहा-लेसणाबंधे, उयययंधे, समुस्वयबंधे, साहणणाबंधे।
१३. [प्र०] से किं तं लेसणाबंधे ? [उ०] लेसणाबंधे जंणं कुट्टाणं, कोट्टिमाणं, खंभाणं, पासायाणं, कट्ठाणं, चम्माणं, घडाणं, पडाणं, कडाणं छुरा-चिखल्ल-सिलेस-लक्ख-महुसित्थमाईपहिं लेसणएहिं बंधे समुप्पज्जइ, जहन्नेणं अंतोमपुर उकोसेणं संखेजं कालं । सेत्तं लेसणाबंधे।।
१४. [प्र०] से किं तं उच्चयबंधे ? [उ०] उच्चयबंधे जं णं तणरासीण वा, कट्टरासीण वा, पत्तरासीण वा, तुसरासीण वा, भुसरासीण वा, गोमयरासीण वा, अवगररासीण वा उच्चत्तेणं बंधे समुप्पजइ, जहन्नेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं संखेज कालं, सेत्तं उच्चयबंधे।
१५. [प्र०] से किं तं समुच्चयबंधे? [उ०] समुच्चयबंधे जंणं अगड-तडाग-नदी-दह-वावी-पुक्खरिणी-दीहियाणं गुंजालियाणं, सराणं, सरपंतियाणं सरसरपंतियाणं, बिलपंतियाण, देवकुल-सभ-प्पव-थूभ-खाइयाणं, परिहाणं, पागार-हालग-चरिय दार-गोपुर-तोरणाणं, पासाय घर-सरण-लेण-आवणाणं, सिंघाडग-तिय-चउक-चच्चर-चउमुह-महापहमादीणं, छुहा-चिपखल्ल-सिलेस-समुच्चएणं बंधे समुप्पजइ, जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं संखेजं कालं । सेत्तं समुच्चयबंधे।
१६. [प्र०] से किं तं साहणणाबंधे ? [उ०] साहणणाबंधे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा-देससाहणणाबंधे य सवसाहणणाबंधे य।
पालापनदन्ध.
आलीनदय.
११. [प्र०] आलापन बन्ध केवा प्रकारनो छे! [उ०] आलापन बन्ध घासना भाराओनो, लाकडाना भाराओनो, पांदडाना भारा- ओनो, पलालना भाराओनो अने वेलाना भाराओनो नेतरनी वेल, छाल, वाधरी, दोरडा, वेल, कुश अने डाभ आदिथी आलापनबन्ध थाय छे. ते जघन्यथी अन्तर्मुहूर्त अने उत्कृष्टथी संख्यात काल सुधी रहे छे. ए प्रमाणे आलापनबन्ध कह्यो.
१२. [प्र०] आलीनबन्ध केवा प्रकारनो कह्यो छे ? [उ०] आलीनबन्ध चार प्रकारनो कह्यो छे, ते आ प्रमाणे-१ श्लेषणाबन्ध, २ उच्चयबन्ध, ३ समुच्चयबन्ध अने ४ संहननबन्ध,
१३. [प्र०] श्लेषणाबन्ध केवा प्रकारनो होय ? [उ०] शिखरोनो, कुट्टिमोनो (फरस बंधीनो) स्तंभोनो, प्रासादोनो, लाकडाओनो, चामडानो, घडाओनो, कपडाओनो अने सादडीओनो चूनावडे, कचरावडे, श्लेष-वज्रलेप-वडे, लाखवडे, मीण-इत्यादि श्लेषण द्रव्योवडे श्लेषणाबन्ध थाय छे. ते जघन्यथी अन्तर्मुहूर्त, अने उत्कृष्टथी संख्यातकाल सुधी रहे छे. ए प्रमाणे श्लेषणाबन्ध कह्यो.
१४. [प्र०] उच्चयबन्ध केवा प्रकारनो कह्यो छे ? [उ०] तृणराशिनो, काष्ठराशिनो, पत्रराशिनो, तुषराशिनो, भुसानी राशिनो, छाणना ढगलानो अने कचराना ढगलानो उच्चपणे जे बन्ध थाय छे ते उच्चयबन्ध छे. ते जघन्यथी अन्तर्मुहूर्त, अने उत्कृष्टथी संख्येयकाल सुधी रहे छे. ए प्रमाणे उच्चयबन्ध कह्यो.
केषणाबन्ध
उच्चयवन्ध
समुचपकन्ध,
१५. [प्र०] समुच्चयबन्ध केवा प्रकारनो कह्यो छे ! [उ०] कुवा, तळाव, नदी, दह, वापी, पुष्करिणी, दीर्घिका, गुंजालिका, सरोवरो, सरोवरनी श्रेणि, मोटा सरोवरनी पंक्ति, बिलनी श्रेणि, देवकुल, सभा, परब, स्तूप, खाइओ, परिघो, किल्लाओ, कांगराओ, चरिको, द्वार, गोपुर, तोरण, प्रासाद, घर, शरण, लेण (गृहविशेष ) हाटो, शृंगाटकाकारमार्ग, त्रिकमार्ग, चतुष्कमार्ग, चत्वरमार्ग, चतुर्मुखमार्ग अने राजमार्गादिनो चुनाद्वारा, कचराद्वारा अने श्लेषना (वज्रलेपना) समुच्चय वडे जे बंध थाय छे ते समुच्चयबन्ध. ते जघन्यथी अन्तर्मुहर्त, अने उत्कृष्टथी संख्येयकाल सुधी रहे छे. ए प्रमाणे समुच्चयबन्ध कह्यो.
१६. [प्र०] संहननबन्ध केवा प्रकारनो कह्यो छे ? [उ०] संहननबन्ध बे प्रकारनो कह्यो छे; ते आ प्रमाणे-'देश संहनन बन्ध अने सर्वसंहनन बन्ध.
संहननयन्ध
१ सभा-पम्व-थू-ग, सभा-पवय-थू-ङ ।
१६.* १ कोइ वस्तुना देशथी-अंशथी कोइ वस्तुना देशनो-अंशनो शकटादिना अवयवोनी पेठे संहनन एटले परस्पर संबन्धरूप बन्ध ते देशसहननबन्ध, २.क्षीरनीरादिनी पेठे सर्वात्मसंबन्धरूप बंध ते सर्वसंहननबंध-टीका.
For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org.