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auranजीवो.-सयोगी जवाननो विषय--श्रुतनी ज्ञानीपणे क्या सुधी
ब्धिक-दानादिलब्धिक अने अलन्धिक.-बालवीय, पंडितवीर्य अने बालपंडितवीर्यलन्धिक अने अलन्धिक.-इन्द्रियलन्धिक भने अलब्धिक.-श्रोत्रन्द्रियादिलब्धिक अने अलब्धिक-साकारउपयोगवाळा.-आभिनिवोधिकादिसाकारउपयोगवाळा.-मतिअज्ञानादिसाकारोपयोगवाळा जीयो.-अनाकारोपयोगवाळा जीवो.-सयोगी जीवो.-सळेश्य जीवो.-कृष्णादिलेश्यावाळा.-सकषायी जीवो.-अकषायी जीवो.-वेदसहित अने वेदरहित जीवो.-आहारक जीवो.-अनाहारक.-आभिनियोधिक ज्ञाननो विषय.-श्रुतज्ञाननो विषय.-अवधिज्ञाननो विषय.-मनःपर्यवज्ञानको विषय.-केवलज्ञाननो विषय.मतिअज्ञाननो विषय.-श्रुतअज्ञाननो विषय.---विभंगज्ञाननो विषय.-ज्ञानी ज्ञानीपणे क्या सुधी रहे !-आभिनियोधिकादि दशनो स्थितिकाळ.-आभिनिबोधिक ज्ञानना पर्यायो.-श्रुतज्ञानादिना पर्यायो.-विभंगज्ञानना पर्यायो.-पांच ज्ञानना पर्यायो- अल्पबहुत्व.-मयादि प्रण भज्ञानोना पर्यायो अल्पबहुल: -पांच ज्ञान अने त्रण अज्ञानना पर्यायोनुं अल्पबहुल.
शतक ८ उद्देशक ३. पृ. ७७-७८. वृक्षना प्रकार.-संख्यातजीवी वृक्ष.-असंख्यातजीवी वृक्ष.-एकबीजवाळा.-अनन्तजीवी घृक्ष.-कोइ जीवना बे, प्रण के संख्यात खंड कर्या होय तो तेनी वच्चेनो भाग जीवप्रदेशथी स्पृष्ट होय? -जीवप्रदेशोने शस्त्रादिथी पीडा थाय?-पृथिवीओ.
शतक ८ उद्देशक ४. पृ. ७९. पांच क्रियाओ..
शतक ८ उद्देशक ५. पृ० ८०-८३. आजीविकना प्रश्नो-जेणे सामायिक करेलं छे एवा श्रावकना भांड-पात्रादि वस्तु कोई अपहरण करे तो ते भांडने शोधे के अभांडने शोधे ?-अपहृत भांड अभांड थाय तो ते पोताना भांडने शोधे छे एम केम कहेवाय ?-ममलभावनुं प्रत्याख्यान कर्यु नथी माटे एम कहेवाय.-ए प्रमाणे कोई तेनी श्रीने सेवे तो ते स्त्रीने सेवे छे के अस्त्रीने सेवे छे?-प्रत्याख्यानथी स्त्री ते अनी थाय!-जो एम थाय तो तेनी स्त्रीने सेवे छ एम केम कहेवाय?-प्रेमबन्धन अविच्छिन्न छे माटे एम कहेवाय!-श्रावक स्थूल प्राणातिपातर्नु प्रत्याख्यान केवी रीते करे?-अतीतकालसंबन्धी प्राणातिपातना प्रतिक्रमणना भांगा.वर्तमान प्राणातिपातना संवरसंबन्धे भांगा.- अनागत प्राणातिपातना प्रत्याख्यान संबन्धे भांगा.-स्थूल मृषावाद प्रत्याख्यान भने तेना भांगा.-यावत् स्थूल परिग्रहना भांगा.-आजीविकनो सिद्धान्त,-आजीविकना बार श्रमणोपासको.-श्रावकोने वयं पंदर कर्मादानो.-देवलोक.
शतक ८ उद्देशक ६. पृ. ८४-८८.
संयतने निर्दोष अशनादिथी प्रतिलाभता शुं फल थाय ?-एकान्त निर्जरा थाय.-सदोष अशनादिथी प्रतिलाभता शुंफल थाय?-घणी निर्जरा भने अल्प पापकर्मनो बन्ध थाय.-असंयतने माहारथी प्रतिलाभता शुं फल थाय ?-एकान्त पापकर्म थाय.-निर्गन्थने बे पिंड प्रहण करवा माटे उपनिमन्त्रणश्रण पिंड, यावत् दश पिंडर्नु उपनिमन्त्रण.-बे पात्रनुं उपनिमन्त्रण.-आराधक अने विराधक-(आलोचना जेनी पासे करवानी होय ते) स्थविरो मूक थाय.(आलोचना करनार ) निम्रन्थ मूक थाय.-पछी स्थविरो काळ करे.-निर्ग्रन्थ काळ करे-संप्राप्त निग्रन्थना चार आलापक.-निहारभूमि के विहारभूमि तरफ जता (निर्ग्रन्थ ).-प्रामानुग्राम विहार करता (निम्रन्थ ).-आराधक निर्धन्थी.-आराधक होवाचं कारण.-बळता दीपका शुं बळे छे ! -ज्योति वळे छे.-बळता घरमां शुंबळे छे?-ज्योति बळे छे.-परना एक औदारिक शरीरने आश्रयी जीवने क्रिया.-नारकने किया.-असुरकुमारने क्रिया.एक जीवनी औदारिक शरीरने आश्रयी किया.-नैरयिक जीवोनी एक औदारिक शरीरने आश्रयी क्रिया.-नैरयिकादिने क्रिया.-जीवोने औदारिक शरीरोने भाषयी क्रिया.-नैरयिकोने क्रिया.-जीवने वैक्रियशरीरने माश्रयी क्रिया.-नैरयिकने वैक्रिय शरीरने आश्रयी क्रिया.-मनुष्यने जीव पेठे कियाओ होय.-वैमानिकोने कार्मण शरीरोने आश्रयी क्रियाओ.
शतक ८ उद्देशक ७. पृ० ८९-९२. अन्यतीर्थिको अने स्थविरोनो संवाद.-अन्यतीथिकोए स्थविरोने कह्यु के तमे असंयत अने एकान्त बाल छो.-स्थविरो पूछे छे के अमे शाथी असंयत अने बाल छीए? अन्यतीर्थिको त्रिविधे त्रिविधे असंयत होवानुं कारण कहे छे अने स्थविरो तेनो उत्तर आपे छे-इत्यादि.
शतक ८ उद्देशक ८. पृ. ९३-१००. गुरुप्रत्यनीक.-गतिप्रत्यनीक.-समूहप्रत्यनीक.-अनुकंपाप्रत्यनीक.-श्रुतप्रत्यनीक.-भावप्रत्यनीक.-व्यवहार.-व्यवहारर्नु फल.-ऐपिथिक भने सांपरायिकबन्ध, ऐयोपथिकबन्धना खामी.-ऐयोपथिक कर्म वेदरहित जीव बांधे.-स्त्रीपश्चात्कृतादि जीव बांधे. ऐपिथिक कर्मसंबन्धे भांगा.-ऐयोपथिक कर्मसंबन्धे सादि सपर्यवसितादि भंग.-'ऐपिथिक कर्म शुं देशथी देशने बांधे इत्यादि प्रश्न.-उत्तर-सर्वथी सर्वने बांधे छे.सांपरायिक कर्मबन्धना खामी.-स्त्री वगेरे बांधे.-त्रीपश्चात्कृतादि बांधे.- सांपरायिक कर्म बांध्यु, बांधे छे अने बांधशे ते सैबन्धे भांगा.-सादिसपर्यवसितादि भांगा.-(सांपरायिक कर्म) देशथी देशने बांधे?-कर्मप्रकृतिओ.-परिषहो.-परिषहोनो कर्मप्रकृतिओमा समवतार.-वेदनीय कर्मा समवतार.-दर्शनमोहनीय कर्ममा समवतार.-चारित्रमोहनीय कर्ममां समवतार, अन्तराय कर्ममा समवतार.-सप्तविधकर्मबन्धकने परिषहो.-अष्टविधकर्मबन्धकने परिषहो.-पड्विधकर्मबन्धकने परिषहो.-एकविधवन्धक वीतराग छमस्थने परिषहो.-एकविधबन्धक सयोगिकेवलीने परिषहो.-फर्मबन्धरहित अयोगिकेवलीने परिषहो.-जंबूद्वीपमा सूर्य दूर छतां पासे केम देखाय छे?-सूर्यो सर्वत्र उंचाइमां सरखा छे?-तेजना प्रतिघातधी दूर छतां पासे देखाय छे.-तेजना अभितापथी पासे छतां दूर देखाय छे.-अतीत क्षेत्र प्रति जाय छे ? इत्यादि प्रश्न.-अतीत क्षेत्रने प्रकाशे छे! इत्यादि प्रश्नवर्तमान क्षेत्रने प्रकाशे छे.-स्पृष्ट क्षेत्रने प्रकाशित करे छे.-अतीत क्षेत्रने उयोतित करे छे ? इत्यादि.-सूर्यनी क्रिया वर्तमान क्षेत्रमा कराय छे.सूर्य स्पृष्ट क्रियाने करे छे.-केटलं क्षेत्र उंचे तपावे छे?-मनुष्योत्तर पर्वतनी अंदरना चन्द्रादि देवो शुं ऊर्ध्व लोकमां उत्पन्न थयेला छे! -मनुष्योत्तर पर्वतनी बहारना चन्द्रादि देवो ऊर्ध्व लोकमां उत्पन्न थयेला छे? इन्द्रस्थान केटला काळंसुधी उपपातविरहित छे ?
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