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________________ जीवो कामी के भोगी होय!.-अल्पबहुख.-छमस्थ मनुष्य.-अधोवधिज्ञानी.-परमावधिज्ञानी.-केवलज्ञानी.-असंझी जीवो अकामपूर्वक वेदना वैदे?-समर्थ छतो अकाम वेदना वेदे !-समर्थ छतां पण अकामपूर्वक वेदना कम वेदे?-समर्थ तीवेच्छापूर्वक वेदना वेदे-समर्थ तीवेच्छापूर्वक पेदनाने केम वेदे? शतक ७ उद्देशक ८. पृ. २७-२८. छवस्थ मनुष्य केवल संयम बडे सिद्ध थयो ?-हस्ति अने कुंथुनो जीव समान छे?-पापकर्म दुःखरूप छे-दशसंज्ञाभो.-जारकोने दश प्रकारनी वेदना.-हाथी अने कुंथुने समान अप्रत्याख्यान क्रिया.-आधाकर्म आहार करनार साधु बांधे ? शतक ७ उद्देशक ९. पृ. २९-३५. असंयत साधु पहारना पुद्गलोने ग्रहण कर्या शिवाय एकवर्णवाळु एक रूप विकुर्ववा समर्थ छे?-महाशिलाकंटक संपाम.-महाशिलाकंटक शाथी कहेवाय छे!-महाशिलाकंटकर्मा केटला लाख माणसोनो संहार थयो?-मरीने तेओ क्या उत्पन्न थयां :--रधमुशल संग्राम.-कोनो जय अने कोनो पराजय !-यमुशल संग्राम शाथी कहेवाय छे! -मनुष्योनो संहार.-तेओ मरीने क्या उत्पन्न थया-शुं युद्धमा हणाएला खर्गे जाय! ते वात मिथ्या छ.-नागनो पौत्र वरुण, तेनी रपमुशल संग्रामा जवानी तैयारी.-वरुणनो अभिप्रह. युद्धमा वरुणने सख्त प्रहार.-वरुणर्नु युद्धमाथी पाछा फरवं.-तेनुं सर्वप्राणातिपातादिविरमण.-गंधोदक तथा पुष्पवृष्टि-वरुण मरीने क्या गयो !-वरुण देवलोकथी व्यवी मोक्षे जशे. वरुणनो मित्र मरीने क्यां गयो?-वरुणनो मित्र त्यांची क्या जशे ? शतक ७ उद्देशक १०. पृ० ३६-४०. अन्यतीर्थिको.-पंचास्तिकाय विषे संदेह.-गौतमने प्रश्न -गौतमनो उत्तर.-कालोदायीनुं आगमन.-कालोदायिना प्रश्नो.-पुद्गलास्तिकायने विषे कर्म लागे?-पापकर्म अशुभविपाकसहित होय !-पापकों अशुभविपाकसंयुक्त केम होय !-कल्याण फर्मों फल्याणफलयुक्त होय.-कल्याण कर्मों कल्याण विपाकफलसहित केम होय!-अमिकायनो समारंभ करनार बे पुरुषमां कोण महाकर्मवाळो होय!-अचित्त पुद्गलो प्रकाश करे?-कया पुद्गलो प्रकाश करे! शतक ८ उद्देशक १. पृ० ४१-५५. पुद्गलनो परिणाम.-प्रयोगपरिणत पुद्गलो.-प्रथमदंडक-एकेन्द्रियप्रयोगपरिणत पुद्गलो.-यावत् पंचेन्द्रियप्रयोगपरिणत पुदूगलो.-नैरयिकप्रयोगपरिणत. तिर्यचपंचेन्द्रियप्रयोगपरिणत. जलचरादिप्रयोगपरिणत. मनुष्यप्रयोगपरिणत. देवप्रयोगपरिणत.-भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिषिक अने वैमानिकप्रयोगपरिणत.-द्वितीयदंडक-सूक्ष्मपृथिवीकायिकादिप्रयोगपरिणत.-बेइन्द्रियादिप्रयोगपरिणत.-नप्रभादिनैरयिकप्रयोगपरिणत.-समछिमजलचराविप्रयोगपरिणत.- समूच्छिममनुष्यादिप्रयोगपरिणत.-असुरकुमारादिप्रयोगपरिणत.-सर्वार्थसिद्धदेवप्रयोगपरिणत.-तृतीयदंडक सूक्ष्मपृथिवीकायिकादिप्रयोगपरिणत.-सप्रभादिनैरयिकप्रयोगपरिणत. जलचरादि तियचप्रयोगपरिणत.-मनुष्यप्रयोगपरिणत.-असुरकुमारादिदेवप्रयोगपरिणत.-चतुर्ष दंडक.-पंचम दंडक.--षष्ठ दंडक.-सप्तम दंडक.-अष्टम दंडक.-नवम दंडक.-मिश्रपरिणत पुद्गलो.--मिश्रपरिणत पुद्गलोने विषे नव दंडक.विनसापरिणत पुद्गलो.-एकद्रव्यपरिणाम-मनःप्रयोगादिपरिणत.-आरंभसत्यमनःप्रयोगादिपरिणत.-आरंभमृषामनःप्रयोगादिपरिणत.-सत्यवाक्प्रयोगादिपरिणत.-औदारिकादिकायप्रयोगपरिणत. औदारिककायप्रयोगपरिणत.-औदारिकमिश्रकायप्रयोगपरिणत. क्रियशरीरकायप्रयोगपरिणत. वैक्रियमित्रकायप्रयोगपरिणत.-आहारकशरीरकायप्रयोगपरिणत.--आहारकमिश्रकायप्रयोगपरिणत. कार्मणशरीरकायप्रयोगपरिणत.-मिश्रपरिणत.-सत्यम- नोमिश्रपरिणत.--विलसापरिणत-वर्ण, गन्ध, रस अने स्पर्शपरिणत.-संस्थानपरिणत.-बे द्रव्योनो परिणाम-मनःप्रयोगादिपरिणत.-मिश्रपरिणत वे द्रव्यो.विनसापरिणत बे द्रव्यो.-श्रण द्रव्योनो परिणाम-मनःप्रयोगादिपरिणत त्रण द्रव्यो.-चार द्रव्योनो परिणाम-मनःप्रयोगादिपरिणत चार म्यो.-पांच, छ, यावत् अनन्त द्रव्योनो परिणाम.-अल्पबहुत्व. - शतक ८ उद्देशक २. पृ. ५६-७६. भाशीविष.--जातिआशीविष.-पश्चिकआशीविषना विषनो विषय.-महकआशीविषना विषनो विषय.--उरगना विषनो विषय.-मनुष्यजातिभाशी. विषना विषनो विषय.-कर्माशी विष.- गर्भजपंचेन्द्रियतिवेचकर्माशीविष.-गर्भजमनुष्यकर्माशीविष.-भवनवासीकाशीविष.-अपर्याप्तदेवकर्माशीविष.वानव्यन्तर, वैमानिक, कल्पोपन्नक, यावत् सहवारदेवलोकपर्यन्तकाशीविष.----अपर्याप्तसौधर्मादिदेवो कर्माशीविष.--छद्मस्थ दश स्थानकोने न जाणे.ज्ञानना प्रकार.--आमिनिबोधिकज्ञानना प्रकार.-मतिअज्ञान.-अवग्रह.-श्रुतअज्ञान.-विभंगज्ञान.-ज्ञानी भने अज्ञानी.-नैरयिको, असुरकुमारो, पृथिविकायिक, बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चउरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय तिर्यचो अने मनुष्यो ज्ञानी के अज्ञानी !-चानव्यन्तर, ज्योतिषिको भने वैमानिको ज्ञानी के अज्ञानी? -सिद्धो ज्ञानी के अज्ञानी !-निरयगतिक, तिथंचगतिक, मनुष्यगतिक, सिद्धगतिक, सेन्द्रिय, एकेन्द्रियादि, अनिन्द्रिय, सकायिक, पृथिवीकायि. कादि, सकायिक, कायरहित, सूक्ष्म जीवो, बादर जीवो, पर्याप्त जीवो, पर्याप्त नैरयिकादि, पर्याप्त पंचेन्द्रिय तिर्यचयोनिक, पर्याप्त मनुष्यो, अपर्याप्त जीवो, अपर्याप्तनैरयिकादि, अपर्याप्त पृथिवीकायिकादि, अपर्याप्त बेइन्द्रियादि, अपर्याप्त मनुष्य, अपर्याप्त वानव्यन्तर, ज्योतिषिक, वैमानिक, नोपर्याप्तनोअपर्याप्त जीवो, निरयभवस्थ, तिर्यग्भवस्थ, मनुष्यभवस्थ, देवभवस्थ, अभवस्थ, भवसिद्धिक, अभवसिद्धिक, नोभवसिद्धिकनोअभवसिद्धिक, संझी जीपो, असंही जीवो भने नोसंज्ञीनोअसंशी जीवो ज्ञानी के अज्ञानी होय!-लन्धिना प्रकार.-मानलन्धि, अज्ञानलब्धि.-दर्शनलब्धि.-चारित्रलब्धि.-चारित्राचारित्रलब्धि.-- वीर्यलब्धि.-इन्द्रियलब्धि.-ज्ञानलब्धिवाळा ज्ञानी के भज्ञानी होय?-ज्ञानलब्धिरहित. आभिनिबोधिकज्ञानलब्धि.---आमिनिबोधिकलधिरहित.अवधिज्ञानलब्धिक जीवो.-अवधिज्ञानलब्धिरहित.-मनःपर्यवज्ञानलन्धिक.-मनःपर्यवज्ञानलन्धिरहित.-केवलज्ञानलब्धिक.-केवलज्ञानलब्धिरहित.भक्षानलब्धिक.-अज्ञानलन्धिरहित.-मत्यज्ञान अने श्रुताज्ञानलब्धिरहित.-विभंगज्ञानलब्धिक भने विभंगशानलब्धिरहित.-दर्शनलब्धिक.-दर्शनलधिरहित.-मिथ्यादर्शनलन्धिक.-मिश्रदृष्टिलब्धिक.-चारित्रलब्धिक-सामायिकादिचारित्रलब्धिक अने अलन्धिक.-चारित्राचारित्रलब्धिक भने अल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.004642
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherDadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
Publication Year
Total Pages422
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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