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शतक ७ उद्देशक १. पृ० १६.
परभवन तो क्यारे बाहारक बने पधारे अहारको
स्थान. श्रमणोपासक ऐमपी के राम क मतातिचारकर्मरहित जीवनी गति बीच दुःसी व्याप्त होय. उपयोगरहित अनगारने ऐवपचिकी के धांद्याविकी किनार पानभोजन. – निर्दोष पानभोजन. -- क्षेत्रातिक्रान्तादि पानभोजन. - शास्त्रातीतादि पानभोजन.
शतक ७ उद्देशक २. पू० ७-११.
हिंसानुं प्रत्याख्यान करनारने कदाच सुप्रत्याख्यान भने कदाच दुष्प्रत्याख्यान थाय. - शा हेतुथी दुष्प्रत्याख्यान थाय ? - शा हेतुथी सुप्रत्याख्यान' चाय ? --- प्रसाख्यानमूलगुणानना प्रकार सर्वगुणप्रायाना प्रकार देशमूलगुणप्रसास्वानना] प्रकार उत्तरप्रकार सर्वोत्तरगुणप्रत्याख्यानना प्रकार. - देशोत्तरगुणप्रत्याख्यानना प्रकार. - शुं जीवो मूलगुणप्रत्याख्यानी छे वगेरे प्रश्न. - शुं नारको मूलगुणप्रत्याख्यानी छे वगैरे. -- मूलगुणप्रत्याख्यानी वगेरेनुं अल्पबहुत्व. पंचेन्द्रिय तियंचोनुं अल्पबहुत्व. – मनुष्यनुं अल्पबहुल. – जीवो सर्वमूलगुणप्रत्याख्यानी छे ? वगेरे प्रचारक अपंचेन्द्रिय तिर्वच सर्वखापयानी वापसी करेनुं छतरानी करे सर्वोत्तरगुणप्रत्याख्यानी वगेरेतुं वसंत असंयत अने संयतासंयतो झुं प्राख्यानी छे वगेरे. प्रारूपानी कोरेनुं अल्पबहुल
जीवो शाश्वत के अशाश्वत ! नारको शाश्वत के अशाश्वत ?
विषयानुक्रम.
जीवोना प्रकार. संग्रह गाथा..
शतक ७ उद्देशक ३. पृ० १२-१५.
वनस्पतिकाय क्यारे अल्पाहारी अने क्यारे महाहारी होय !- श्रीष्ममां अल्पाहारी छतों पुष्पिक्ष भने फलित केम होय मूल, कन्द अने पी पोरापोताना जीववी व्याप्त छे ! पति श्री रीते आहार करे अनन्तजीव वनस्पति की रीते भाहार करे ! वाचा नारक अपर्या अने नीलेश्यामाको नारक महाकर्मा होय ! श्यामाका अने कापोतदवाया अपकर्मवाळ दोन ! वेदना से निर्जरानी नारकोने वेदना ते निर्जरा नथी. जे वेयुं ते निर्जर्यु नथी. - जेने वेदे छे तेने निर्जरतो नथी. जेने वेदशे तेने निर्जरशे नहि. — जे वेदनानो समय छै ते निर्जरानो समय नथी. नारकोने वेदना अने निर्जरानो समय भिन्न छे.नारको शाश्वत भने अशाश्वत छे.
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शतक ७ उद्देशक ४. पृ० १५.
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योनि
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शतक ७ उद्देशक ५. पृ० १७.
शतक ७ उद्देशक ६. पृ० १८-२२.
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नारकाषनो यन्य. गारकाषतुं वेदनारकोमा महावेदन वेद वेदन. - आयुषनो बन्ध. – कर्कशवेदनीय कर्म. - कर्कश वेदनीय कर्मना हेतुओ. धर्मना हेतु नारकोने वेदनीय का? खातावेदनीय कर्म कर्मना हेतुओ. - जंबूद्वीपना भारतवर्षमां आ अवसर्पिणीमां दुःषमादुःषमा कालने दिशासी अधिक धीत अने ताप भरसविरसादि मेमो दिन रहेछा मनुष्य, पशु पक्षिओनो नाश बनस्पतिओनो नाश पर्वत दिनो नाश. - भूमिनुं खरूप. मनुष्यनो आकारभावप्रत्यवतार. मनुष्योनो आहार. ते मनुष्यो मरीने क्यां जशे ! ते सिंहादि मरीने क्यां जशे ? --- कागडा यगेरे मरीने क्यां जशे १
अरकुमार महावेदना वेदन. पृथिवीकामि विविध वेदमानुं नारकोने कर्कशवेदनीय कर्म. - अकर्कश वेदनीय कर्म. अकर्कशवेदनीय छातावेदनीय कर्मना हेतुओ. असातावेदनीय कर्म. असातावेदनीय विषे आकार भाव प्रत्यवतार. – हाहाभूतकाल - भयंकर बात. मलिन
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शतक ७ उद्देशक ७. पृ. २३-२६.
संवृत अनगारने क्रिया. — ऐर्यापथिकी क्रिया लागवानुं कारण. - काम रूपी के अरूपी ? - सचित्त के होके जोहो ! भोगी रूपी के सरूपी भोगो के त!-भोगो जीव के अजीव मोमोन प्रकारकामयोगशा प्रकार जो काम के भोगी [नारको कामी के भोगी होय !-पृथिवीकाय नेन्द्रिय तेन्द्रियरेन्द्रक
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अचित्त ? जीव के अजीब ? - जीवोने काम भोग जीवने होय के
हो
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