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शतक ८ उद्देशक ९. पृ० १०१-११७
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अन्य सावधअनादि विससायन्यधर्मायिनादि मियादेश अनादि विनयादि परधनवकन्याविक परिणामको आनन्द समुचयबन्धननयम्यदेराननबन्धसंहननवन्ध शरीरवन्धपूर्वप्रयोगप्राविकमन्यदुत्पत्रप्रयोगप्रविबन्ध शरीरप्रयोग ओदारिकशरीरवन्ध एकेदिवशी दारे शरीर प्रयोगवन्धरशरीरप्रयोगयन्थ का कमैना उदयवी पाय एकेन्द्र ओदारिकशरीरप्रयोगवन्थ पंचेन्द्रियौदाकशरीरयोगबन्ध मनुष्यधीदारिशरीरप्रयोगवन्ध, औदारिकवारीरप्रयोगवन्ध देश के सबसे!एकेन्द्रियायोगन्ध मनुष्य श्रीदारिकशरीरप्रयोगयन्य. - भौदारियायोग. एकेन्द्रिय पृथिवीद्यविदारक शरीरयन्ना क्षमारनो काल एकेन्द्रियपृथिवीकाविक एकेन्द्रियद्रिय चिना मोदारिकार अन्तर एकेदारिक शरीरमा प्रयोगवन्ध अन्तरषिकाविनोदारिकशरीरयन्यनुं समार श्रीवारिक शरीरमा सर्वबन्धक, देशयन्धक ने किय शरीरप्रयोगवन्धाखामि केन्द्रिवशरीरप्रयोगवन्ध के तेथी मिश्र एकेन्द्रियवैयिशरीरप्रयोगचन्द पाउदा करीरप्रवन्ध रविक वैश्विशरीरप्रयोगवन्धचियोनि किशरीरप्रयोगन्ध देशवन्ध अने सर्वमन्ध-चैकिगारीरयोगवन्धान काशिराजप्रभावेरविकशिवशरीरप्रयोगकन्यकाळ वेपिपरीरप्रयोगयन्ध अन्तरा पिक चैमिशरीरप्रयोगान्तर विर्ययपंचेन्द्रियवैश्विशरीरप्रयोगयन्धनुं अन्तरयायुकाविक वैकिपशरीरप्रयोग अन्तर. रनप्रमानारक वैकियशरीरप्रयोगवन्धनुं अन्तर. - असुरकुमार, नागकुमार, यावत् सहस्रार देवो. आनतदेववै क्रियशरीर प्रयोगबन्धनुं अन्तर मैवेयककल्पातीत अनुत्तरौ - पातिक सम्पबहुत्व आहारशरीरप्रयोगवन्ध महारशरीरप्रयोगवन् मनुष्य के ते शिवाय वीजाने होय ! आहारशरीरप्रयोग कर्मना उपवधी हो ? देशवन्यसने सर्वपन्यमहारशरीरयोग अन्तरदेश सर्ववन्धक अने अवध अ
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जसरी प्रयोगबन्ध एकेन्द्रिय मानद पर्याप्त सर्वाधिक सशरीरप्रयोगचन्द कया कर्मगा उदयची थाप ! देश के सर्वबन्ध ! नयी चैनसारीरप्रयोगवन्धन काळ. सशरीरप्रयोगवन्धनुं अन्तर कार्मणशरीरप्रयोगवन्धानावरणीय कार्मणशरीरप्रयोगवन्धकमा कर्मना उदधाय दर्शनावरणीय कामगारी प्रयोगवन्ध सातावेदनीय असातावेदनीय. मोहनीय. नारकाष तियंचयो निकायुष. मनुष्या युष. - देवायुष. शुभनाम. अशुभनाम – उच्चगोत्र. – नीचगोत्र - अन्तराय. - ज्ञानावरणीयनो देशबन्ध के सर्वबन्ध ? - ज्ञानावरणीय कार्मणशरीरप्रयोगवन्धनकानावरणीय कामगार प्रयोगमा देशवन्धक अने अन्य अल्पआयुकना देशबन्ध जीवोनुं अपयशोदारिकशरीरनाम्याचे विशरीरबन्धन संबन्ध – आहारक शरीरबन्धन संचय तेजशरीरको संबन्ध देश बन्धक के सर्वकार्मणशरीरको संवन्यशोदारिक शरीरमा देश साये कि शरीरनो संवन्ध किन शरीरमा सर्वबन्ध साये ओरिक शरीरनो संबन्ध – देशबन्ध साधे औदारिक शरीरबन्धनो संबन्ध – आहारक शरीरना सर्वबन्ध साथै औदारिक शरीरबन्धनो संबन्ध - आहारक शरीरनादेशबम्ध साचे औदारिक शरीरनो संवन्ध शरीरमा देशवन्धक साथै श्रीदारिक शरीरनो संबन्धारिक शारीनो देवन्धक के सर्वयन्धक ? – वैक्रियशरीरनो बन्धक के अबन्धक ? कार्मणशरीरनो बन्धक के अबन्धक ? – देश बन्धक के सर्वबन्धक ? - कार्मण शरीरना देशबन्धक सायेारिक शरीरधारीनादेशयन्धकवधक अने अप
शतक ८ उद्देशक १०. पृ० ११८-१२४.
''अन्यतीको मन्नान्यप के पतपण मी इखादि चतुभंगी. देशारामक, देशविराधक, सर्वाराक अने सर्वविराधक. - आराधनाना प्रकार. ज्ञानाराधना. दर्शनाराधना. उत्कृष्ट ज्ञानाराधना भने उत्कृष्ट दर्शनाराधनानो संबन्ध उत्कृष्ट दर्शनाराधना भने उत्कृष्ट चारित्राराधनानो संबन्ध उत्कृष्ट ज्ञानाराधक केटला भव पछी मोक्षे जाय !- उत्कृष्ट दर्शनाराधक क्यारे मोक्षे जाय ? — उत्कृष्ट चारित्राराधक मोक्षे क्यारे जाय ? -- ज्ञाननी मध्यमाराधना आराधक मोक्षे क्यारे जाय ?-- दर्शन भने चारित्रनी मध्यमाराधनानो आराधक मोक्षे क्यारे जाय ? - ज्ञाननी अपराध क्यारेमा दर्शनाने प्राराधना पुलपरिणामना कारवर्णपरिणाम कधपरिणाम रसपरिणाम अने स्पर्शपरिणाम. संस्थानपरिणाम पुगतिकायनो एक प्रदेश, ये प्रदेशो यावद अनन्त प्रदेश इन्य, दन्यदेश के इखाद
काश अने एक जीवना प्रदेशको कर्मप्रकृति नैरकिनिने प्रकृतिज्ञानावरणीय कर्मना विभागपरिच्छेदयिक जीवन एक एक प्रदेश पेटला नामरणीय कर्मना परिच्छेदोषी मवेष्टित ? एक एक जीवन एक एक प्रदेश दर्शनावरणीयना केटला विमान परिच्छेदधी वेष्टित छ ? – ज्ञानावरणीय अने दर्शनावरणीयनो संबन्ध ज्ञानावरणीय अने वेदनीयनो संबन्ध ज्ञानावरणीय अने मोहनीय कर्मनो संबन्ध --- ज्ञानावरणीय अने आपको संबन्धए प्रमाने दर्शनावरणीयादिनो वेदनीयादिपाचे संवन्ध-जीप पुद्गली के पुद्गल ! रविको पुद्गली के पुद्गल के पुदुगक्ष
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शतक ९ उद्देशक १ - ३०. पृ० १२५–१२७.
जंबूद्वीप - जंबूद्वीपमां चन्द्रोनो प्रकाश. - लवणसमुद्रमां चन्दोनो प्रकाश. - धात किखंड, कालोदसमुद्र, पुष्करवरद्वीप, अभ्यन्तर पुष्करार्ध अने पुष्करोदसमुद्रम केला चन्द्रो प्रकाशित थाय छे ? -- अव्यावीश अन्तद्वीपो.
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शतक ९ उद्देशक ३१. पृ० १२८ - १३७.
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केवल्या दिपासे सांभळ्या शिवाय कोई जीवने धर्मनो बोध थाय के नहि इत्यादि प्रश्न. - बोधि - सम्यग्दर्शननो अनुभव करे के नहि ! - तेनो हेतु. -- ए. प्रमाणे प्रवज्याने स्वीकारे के नहि ? - तेनो हेतु . - ब्रह्मचर्य. - ब्रह्मचर्यावासनो हेतु संयम संयमनो हेतु संवर संवरनो हेतु. - आभिनिबोधिक ज्ञानमिनिषिकशननो हेतु शान व विज्ञान अने मनः पर्यवज्ञान केवलज्ञान धर्मबोध, सम्यक्नो अनुभबमेरेवादि वचन सांभळ्या सिवाय कोई धर्मादिनो अनुभव करे तेनो हेतु केवल्यादिना वचन सांभळ्या सिवाय सम्यक्त्वादिने स्वीकारे. - विभंगज्ञाननी उत्पत्ति-सम्मा
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