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नैरयिक.
बोने एक मौदारिक परीने आमची क्रिया.
भैरविकादिने किया.
जीमोने मौदारिक शरीरोने भाभी क्रिया.
मैरयिकोने क्रिया
जीवने वैकिय शरीरने आश्रयी क्रिया.
चैरविकने वैक्रिय शरीरने भाश्रयी क्रिया. मनुष्यने जीवनी पेठे क्रियाओ होय.
श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे
शतक ८. - उद्देशक ६.
२१ [प्र० ] नेरइप णं भंते! ओरालियसरीरेहिंतो कतिकिरिए ? [30] एवं एसो जहा पढमो दंडओ तथा इमो वि अपरिसेसो भाणियत्रो जाव वेमाणिए, नवरं मणुस्से जहा जीवे ।
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२२. [अ०] जीवानं भंते! ओरालिपसरीराम कतिकिरिया ? [30] गोयमा सिच विकिरिया, जाब सिय अकिरिया । २३. [ प्र० ] नेरइया णं भंते ! ओरालियसरीराओ कतिकिरिया ? [अ०] एवं पसो वि जहा पढमो दंडओ तहर भाणियचो, जाव बेमाणिया, नवरं मधुस्सा जहा जीवा ।
२४. [प्र० ] जीवा णं भंते ! ओरालियसरीरेहिंतो कतिकिरिया ? [ उ० ] गोयमा ! तिकिरिया वि, चउकिरिया वि पंचकरिया वि, अकिरिया वि
२५. [२०] या मंते ओरालियरीरेहिंतो कतिकिरिया [४०] गोयमा ! तिकिरिया वि, पठकिरिया वि पंचकरिया वि । एवं जाव वेमाणिया, नवरं मणुस्सा जहा जीवा ।
२६. [प्र० ] जीवे णं भंते! वेउचियसरीराओ कतिकिरिए ? [30] गोयमा ! सिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए सिय अकिरिए ।
२७. [प्र०] ने णं भंते! वेडधियसरीराओ कतिकिरिए । [३०] गोयमा ! सिप तिकिरिए, सिय चकरिए एवं जाप माणिष्ट, नवरं मणुस्खे जहा जीवे एवं जहा भोराडियसरीरेण चत्तारि दंडगा भणिता तहा वेडशियसरीरेण वि चत्तारि दंडगा भाणियचा, नवरं पंचमकिरिया न भन्नद्द, सेसं तं चैव । एवं जहा वेउद्वियं तहा आहारगं पि, तेयगं पि, कम्मगं पि भाणियां, पक्केके चत्तारि दंडगा भाणिया, जाव वैमाणिया णं भंते! कम्मगसरीरेहिंतो कतिकिरिया ? गोयमा ! तिकिरिया पि चकिरिया वि। सेयं भंते । सेयं मंते । ति ।
अट्ठमसर छट्टो उद्देसो समतो
२१. [प्र० ] हे भगवन् ! एक नैरयिक [ पर संबन्धी ] औदारिक शरीरोने आश्रयी केटली क्रियावाळो होय ! [उ०] हे गौतम! जैम आ प्रथम दंडक [ सू. १८] कह्यो छे तेम आ सपळा दंडको पण यावद् वैमानिक सुची कहेगा, परन्तु मनुष्यो जीवोनी पेठे
जाणवा.
२२. [प्र०] हे भगवन् ! जीवो [पर संबन्धी] एक औदारिक शरीरने आश्रयी केटली क्रियामाया होय [३०] हे गौतम! कदाच त्रणक्रियायाय होय, यावत् कदाच क्रियारहित होय.
२३. [प्र०] हे भगवन् ! नैरयिको [ पर संबन्धी ] औदारिक शरीरने आश्रयी केटली क्रियावाळा होय ! [उ०] हे गौतम! जैम प्रथम दंडक [ सू. १८.] कह्यो छे तेनी पेठे यावद् वैमानिक सुधी आ दंडक पण कहेवो, पण मनुष्यो जीवोनी पेठे कहेवा.
२४. [प्र० ] हे भगवन् ! जीयो औदारिक शरीरोने आश्रयी केटली क्रियायाळा होय! [३०] हे गौतम! कदाच त्रणकियावाज्य पण होय, चारक्रियावाळा पण होय, पांचक्रियावाळा पण होय अने किया रहित पण होय.
२५. [प्र० ] हे भगवन् ! नैरयिको [ परकीय] औदारिक शरीरोने आश्रयी केटली क्रिया होय! [उ०] हे गौतम! त्रणक्रियावाळा पण होय, चारक्रियावाळा पण होय, अने पांचक्रियावाळा पण होय. ए प्रमाणे यावत् वैमानिको जाणवा. पण मनुष्यो जीवोनी पेठे जाणवा.
ए
२७. [प्र०] हे भगवन् ! नैरधिक [पर संबन्धी] वैकिय शरीरने आश्रयीने केली क्रियाया होय (०) हे गौतम! कदाच प्रणकियाचाळ अनेकदाच चार क्रियावालो होय. २ प्रमाणे यावद् वैमानिक सुधी जागनुं, पण मनुष्यने जीवनी पेठे जाणवो. ए प्रमाणे जेम औदारिक शरीरना चार दंडक कह्या, तेम वैक्रिय शरीरना पण चार दंडक कहेवा, परन्तु तेमां पांचमी क्रिया न कहेवी. बाकीनुं पूर्वनी पेठे जाणवु, ए प्रमाणे जेम वैकिपशरीर संबंध कां, तेम आहारक, तैजस अने कार्मण शरीर संबंधे गण कहेतुं एक एकला चार
वैमानिकने
दंडक कहेवा, यावत् [ प्र०] हे भगवन् ! वैमानिको कार्मण शरीरोने आश्रयी केटली किया
दोष! [४०] हे गौतम! श्रणक्रियारोने बाय पण दोय अने चारनियावाला पण होय. हे भगवन् । ते एमन के, हे भगवन्! ते एमज छे. [एम कही यावद् भगवान् गौतम
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भरी शा
विहरे छे. ]
अष्टमशतके पष्ठ उदेशक समाप्त.
२५. जीवने वेकिय शरीरने आश्रयी चार किसानो होय के पांचवा होती थी. केमके वैकिय पारीरीनो पाठ करा.,
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२६. [अ०] हे भगवन् ! जीव [परकीय] बैकियशरीरने आश्रयी केटली क्रियावालो दोष [उ०] हे गौतम! कदाच प्रणक्रियाया कदाच चारकियामा "अनेकदाच अकिय होय.
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