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________________ शतक ८.-उद्देशक ६. भगवत्सुधर्मस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र. दोणीए पक्खिवेजा, से गृणं गोयमा! उक्खिप्पमाणे उक्खित्ते, पक्खिप्पमाणे पश्खित्ते, रजमाणे रत्तेत्ति वत्तवं सिया हता भगवं! उक्खिप्पमाणे उक्खित्ते जाव रत्तेत्ति वत्तवं सिया । से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ-आराहए नो विराहए । १५. [प्र०] पदीवस्स णं भंते ! झियायमाणस्स किं पदीवे झियाति, लट्ठी झियाइ, वत्ती झियाति, तेल्ले झियाइ, पदीवचंपए झियाइ, जोई झियाइ ? [उ०] गोयमा ! नो पदीवे झियाइ, जाव नो पदीवचंपए झियाइ, जोई झियाइ । १६. [प्र०] अगारस्स णं भंते। झियायमाणस्स किं. अगारे झियाइ, कुड्डा झियाइ, कडणा झियाइ, धारणा झियाइ, बलहरणे झियाइ, वंसा झियाइ, मल्ला झियाइ, वग्गा झियाइ, छित्तरा झियाइ, छाणे झियाति, जोती झियाति? [उ०] गोयमा! नो अंगारे झियाति, नो कुड्डा झियाति, जाव नो छाणे झियाति, जोती झियाति । १७. [प्र०] जीवे णं भंते ! ओरालियसरीराओ कतिकिरिए ? [उ०] गोयमा ! सिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए, सिय पंचकिरिए, सिय अकिरिए। १८. [प्र०] नेरइए णं भंते ! ओरालियसरीराओ कतिकिरिए ? [उ०] गोयमा ! सिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए. सिय पंचकिरिए। १९. [प्र०] असुरकुमारे णं भंते ? ओरालियसरीराओ कतिकिरिए ? [उ०] एवं चेव, एवं जाव वेमाणिए; नवरं मणुस्से जहा जीवे । २०. [प्र०] जीवे णं भंते ! ओरालियसरीरोहितो कतिकिरिए ? [उ०] गोयमा! सिय तिकिरिए, जाव सिय अकिरिए। कुंडीमां नांखे तो हे गौतम ! ते उंचेथी नांखता उंचेथी खायेलं, नाखतां नंखायेलं, रंगातां रंगायेलं एम कहेवाय ! हा भगवन् ! ते उंचेथी नांखतां उंचेथी नंखायेलं, यावत् रंगातां रंगायेलं कहेवाय; ते हेतुथी हे गौतम ! एम कहेवाय छे के [आराधना माटे तैयार थएलो] ते आराधक छे पण विराधक नथी. . १५. [प्र०] हे भगवन् ! बळता दीवामां शुं बळे छे ? शुं दीवो बळे छे, दीपयष्टि-दीवी बळे छे, वाट बळे छे, तेल बळे छे, बळता दीपकमा शं पळे छे! दीवानुं ढांक| बळे छे, के ज्योति-दीपशिखा बळे छे ? [उ०] हे गौतम! दीवो बळतो नथी, यावत् दीवान ढांकणुं बळतुं नथी, पण ज्योतिब.. ज्योति बळे छे. - १६. [प्र०] हे भगवन् ! बळता घरमा शुं बळे छे ! शुं घर बळे छे, भीतो बळे छे, त्राटी बळे छे, धारण (मोभनी नीचेना पळता घरमा.शं. बळे छे! ज्योति स्तंभो) बळे छे, मोभ बळे छे, वांसो बळे छे, मल्लो (भीतोना आधार थांभला ) बळे छे, छींदरीओ बळे छे, छापरं बळे छे, छादन-डाभ पळे छे. वगेरेनुं ढांकण बळे छे के ज्योति-अग्नि बळे छे! [उ०] हे गौतम ! घर बळतुं नथी, भीतो बळती नथी, यावत् डाभ वगेरेनुं छादन बळतुं नथी, पण ज्योति बळे छे. • १७. [प्र०] हे भगवन् ! एक जीव [परकीय ] एक औदारिक शरीरने आश्रयी केटली क्रियावाळो होय ! [उ०] हे गौतम। परना एक औदा कदाच *त्रणक्रियावाळो, कदाच चारक्रियावाळो, कदाच पांचक्रियावाळो, अने कदाच अक्रिय (क्रिया रहित ) होय. रिक शरीरने आयी जीवने क्रिया. १८. [प्र०) हे भगवन् ! एक नारक [ परकीय ] एक औदारिक शरीरने आश्रयी केटली क्रियावाळो होय ! [उ०] हे गौतम | नारकने क्रिषा. कदाच त्रणक्रियावाळो, कदाच चारक्रियावाळो अने कदाच पांचक्रियावाळो होय. १९. [प्र०] हे भगवन् ! एक असुरकुमार [ परकीय ] एक औदारिक शरीरने आश्रयी केटली क्रियावाळो होय ? [उ०] हे असुरकुमारने गौतम ! पूर्वनी पेठे [त्रण, चार के.पांच क्रियावाळो होय ] ए प्रमाणे यावद् वैमानिको जाणवा. परन्तु मनुष्यो जीवोनी पेठे जाणवा. क्रिया. २०. [प्र०] हे भगवन् ! एक जीव [परकीय] औदारिक शरीरोने आश्रयी केटली क्रियावाळो होय ! [उ०] हे गौतम । ते कदाच णक्रियावाळो होय, यावत् कदाच अक्रिय होय. एकजीवनी औदाः रिक शरीरोने मामयी क्रिया .. जोति झि-घ। २ आगारे ग। १७ *कायिकी, अधिकरणिकी, प्राद्वेषिकी, पारितापनिकी अने प्राणातिपातिनी-ए पांच क्रियाओ छे. तेमा एक जीव ज्यारे अन्य पृथिव्यादिक जीवना शरीरने आश्रयी कायानो व्यापार करे त्यारे तेने कायिकी, अधिकरणिकी भने प्रादेषिकी एत्रण क्रियाओ होय, केमके भवीतरागने कायिकी क्रियाना सभावमा अधिकरणिकी अने प्रादेषिकी क्रिया अवश्य होय छे, अने बीजी बे कियाओ भजनाए होय छे. एटले ज्यारे ते बीजाने परिताप उत्पन्न करे के घात करे यारे तेने पारितापनिकी के प्राणातिपातिनी क्रिया होय छे-टीका. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004642
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherDadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
Publication Year
Total Pages422
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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