SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 76
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६६ श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे शतक ३.-उद्देशक २. २६.५०-चमरस्स णं भंते । असुरिंदस्स, असररण्णो २६. प्र०-हे भगवन् ! असुरेंद्र, असुरराज चमरनो ऊर्ध्वगतिउडूं, अहे तिरियं च गइविसयस्स' कयरे कयरेहिंतो अप्पे वा, विषय, अधोगतिविषय अने तिर्यग्गतिविषय; ए बधामा कयो विषय बहुए वा, तुल्ले वा, विसेसाहिए वा ? कया विषयथी अल्प छे, बहु छे, सरखो छे के विशेषाधिक छे? २६. उ०-गोयमा ! सव्वत्यो खेत्तं चमरे असुरिंदे, असुर- २६. उ०-हे गौतम! असुरेंद्र, असुरराज चमर, एक समये राया उर्दू उप्पयइ एकेणं समएणं, तिरियं संखेज्जे भागे गच्छइ, साथी थोडो भाग उपर जाय छे, तिरछु, ते करता संख्येय भाग जाय अहे संखेज्जे भागे गच्छइ. छे अने नीचे पण संख्येय भाग जाय छे. -वजं जहा सकस्स तहेव, नवरं-विसेसाहि अंकायव्वं. –बज्र संबंधी गतिनो विषय शक्रनी पेठे जाणवो. विशेष ए के गतिनो विषय विशेषाधिक करवो. २७. प्र०-सकस्स ण भंते ! देविंदस्स देवरणो उवयण- २७. प्र०-हे भगवन् ! देवेंद्र, देवराज शक्रनो नीचे जघानो कालस्स य, उप्पयणकालस्स य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा, काळ अने उपर जवानो काळ; ए बे काळमां कयो काळ कोनाथी बहुआ वा, तुल्ला वा, विसेसाहिआ वा ? थोडो छे, वधारे छे, सरखो छे अने विशेषाधिक छे ? २७. उ-गोयमा ! सव्वत्थोवे सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो २७. उ०--हे गौतम ! देवेंद्र, देवराज शक्रनो उपर जवानो उडु उप्पय काले, उवयणकाले संखेज्जगुणे. _____ काळ सौथी थोडो छे अने नीचे जवानो काळ संख्येयगुण छे. --चमरस्स वि जहा सकस्स, नवरं-सव्वत्थोवे उवयणकाले, -चमर संबधे पण शक्रनी पेठे जाणवू. विशेष ए के, तेनो उप्पयणकाले संखजगणे. नीचे जवानो काळ सौथी थोडो छे अने उपर जवानो काळ संख्येयगुण छे. २८. प्र०-वजस्स पुच्छा ? २८.प्र०-भगवन् ! वज्रना ए बन्ने काळमां कयो काळ थोडो छे, वधारे छे, सरखो छे अने विशेषाधिक छे? २८. उ०- गोयमा ! सव्वत्थोवे उप्पयणकाले, उवयणकाले २८. उ०—हे गौतम! वज्रनो उंचे जवानो काळ सौथी विसेसाहिए. थोडो हे अने नीचे जवानो काळ विशेषाधिक छे. २९. प्र०-एयस्स णं भंते ! वजस्स, वज्जाहिवहस्स, चम- २९. प्र०-हे भगवन् ! ए वज्र, वज्राविपति-इंद्र-अने असुरेंद्र रस्स य, असरिंदस्स असुररण्णो उवयणकालस्स य, उप्पयणका- असुरराज चमर; ए बधानो नीचे जवानो काळ अने उंचे जवानो लस्सं य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा, बहुआ वा, तुल्ला वा विसे- काळ; ए बेमां कयो कोनाथी अत्य छे, वधारे छे, सरखो छे के साहिआ वा ? विशेषाधिक छे! २९. उ०-गोयमा ! सक्कस्स य उप्पयणकाले, चमरस्स य २९. उ०-हे गौतम! शक्रनो उपर जवानो काळ अने उवयणकाले, एए णं दोणि वि तुल्ला सव्वत्थोवा; सक्कस्स य चमरनो नीचे जवानो काळ, ए. बन्ने सरखा छे अने सौथी थोडा छे. उवयणका ले, वज्जरस य उप्पयणकाले एस णं दोण्ह वि तल्ले शक्रनो नीचे जवानो काळ अने वज्रनो उपर जबानो काळ, ए संखेज्जगुणे; चमरस्स य उप्पयणकाले, वजस्स य उवयणकाले बन्ने सरखा छे अने संख्येयगणा छे. चमरनो उंचे जवानो काळ एस दोण्ह वि तुल्ले विसेसाहिए. अने वजनो नीचे जवानो काळ, ९ बन्ने सरखा अने विशेषाधिक छे. ४. इह लेष्ट्वादिकं पुद्गलं क्षिप्त गच्छन्तं क्षेपकमनुष्यस्तावद् ग्रहीतुं न शक्नोतीति दृश्यते, देवस्तु किं शक्नोति ? येन शक्रेण वनं क्षिप्त संहृतं च, तथा वज्रं चेद् गृहीतम् , चमरः कस्मान्न गृहीतः? इत्यभिप्रायतः प्रस्तावनोपेतं प्रश्नोत्तरमाह-'भंते' इत्यादि. 'सीहे' ति शीघ्रो वेगवान् , स च शीघ्रगमनशक्तिमात्रापेक्षयाऽपि स्यात् अत आह-'सहिगई चेव' त्ति शीघ्रगतिरेव-नाऽशीघ्रगतिरपि, एवंभूतश्च कायापेक्षयाऽपि स्यात् , अत आह-'तुरिय 'त्ति त्वरित:.-त्वरावान् , स च गतेरन्यत्राऽपि स्यात् , इत्यत आह-तुरिअगइ 'त्ति स्वरितगतिः, मानसौत्सुक्यप्र १. मूलच्छाया:-चमरस्य भगवन् ! असुरेन्द्रस्य, असुरराजस्य ऊर्ध्वम् , अधा, तिर्यक् च गति विषयः कतरः कतरेभ्यः अल्पो वा, बहुको वा तुल्यो धा, विशेषाऽधिको वा? भातम ! सर्वस्तोकं क्षेत्रं चमरोऽसुरेन्द्रः, असुरराज ऊर्ध्वम् उत्पतति एकेन समयेन, तिर्यक् संख्येयान् भागान् गच्छति, अधः संख्येयम् भागान् गच्छति. वनं यथा शकस्य तथैव, नवरम्-विशेषाऽधिकं कर्तव्यम्. शक्रस्य भगवन् ! देवेन्द्रस्य देवराजस्य अवपतनकालस्य च, उत्पसनकालस्य च कतरे कतरेभ्योऽल्या वा, बहुका वा, तुल्या वा, विशेषाधिका वा गौतम ! सर्वरतोकः शक्रस्य देवेन्द्रस्य. देवराजस्य ऊर्ध्वम् उत्पतनकालः, अवपतनकालः संख्येयगुणः, चमरस्याऽपि-यथा शक्रस्य, नवरम्-सर्वस्तोकोऽवपतनकालः, उत्पतनकालः संख्येयगुणः, ञस्य पृच्छा, गीतम! सस्तोकः उत्पतनकालः, शवपतनकालो विशेषाधिका. एतत्य भगवन्! वज्रस्य, वज्राऽधिपस्य, चमरस्य च असुरेन्द्र स्य, असुरराजस्य अवपतनकालस्य च, उत्पतनका. लस्य च कतरे कतरेभ्योऽल्या वा, बहुका वा, तुल्या वा, विशेषाऽधिका वा ? गौतम ! शक्रस्य च उत्पतनकालः, चमरस्य च अवपतनकालः, एता द्वा अपि तुल्या सवेस्तोका; शत्रस्य च अवपतनकालः, वज्रस्य च उत्पतनकाल: एता दैा अपि तुल्या संख्येयगुणा; चमरस्य च उत्पतनकालः बज्रस्य च अवपतनकाल एता है अपि तुल्या विशेषाधिकौ:-अनु० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004641
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherJinagama Prakashan Sabha
Publication Year
Total Pages358
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy