________________
शतक ३.-उद्देशक- २.
भगवत्सुधर्मस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र, वो, हत्थिबलं वा, जोहबलं वा धणुबलं वा आगलति, एवामेव गीच थएल भागनो अने पर्वतनो आश्रय करी एक सारा अने असुरकुमारा वि देवा णण्णत्थ अरिहंते वा, अरिहंतचेइआणि वा, मोटा पण घोडाना लश्करने, हाथिना लश्करने, योधाओना लश्कअणगारे वा भाविअपणो निस्साए उड़े उप्पयति, जाव-सोहम्मो रने, धनुष्य (धनुष्यधारी) ना लश्करने हंफावधानी हिंमत २.रे कप्पो.
छे, ए ज प्रमाणे असुरकुमार देवो पण अरिहंतोनो, अरिहंतनां चैत्योनो अने भावित आत्मा साधुओनो आश्रय करी उंचे यावत्.सौधर्म कल्प सुधी उत्पते-जाय-छे. पण ते सिवाय (अरिहंत
विगेरेना आश्रय सिवाय) जता नथी. १८. प्र-सव्वे वि णं मंते ! असुरकुमारा देवा उ उ- १८. प्र०—हे भगवन् ! शुं बधा य असुरकुमारो यावत्प्पयंति, जाव सोहम्मो कप्पो ?
सौधर्म कल्प सुधी उंचे उत्पते-जाय-छे ? १८. उ०-गोयमा ! णो इणद्वे समढे, महिड्डिया कं असु- १८. उ०—हे गौतम! ए अर्थ समर्थ नथी-बधा य असुररकुमारा देवा उडु उप्पयंति, जाव-सोहम्मो कप्पो.
कुमार देवो उंचे अता नथी. किंतु मोटी ऋद्धिवाळा असुरकुमार १९..प्र०—एस वि णं भंते ! चमरे असुरिंदे, असुरकुमार- देवो उंचे यावत्-सौधर्म कल्प सुधी जाय छे. राया उडु उप्पड़अपुर्वि जाव-सोहम्मो कप्पो ?
१९. प्र०--हे भगवन् ! शुं ए असुरेंद्र, असुरराज चमर पण १९. उ०-हंता, गोयमा!.
कोइ वार पूर्वे उपर यावत्-सौधर्म कल्प सुधी गएलो छ ? २०. प्र०—अहो णं भंते! चमरे, असुरिदै, असुरकुमारराया १९. उ०—हे गौतम! हा, (पूर्वे ए चमर पण उपर गएलो छे.) महिड्डीए, महज्जुईए, जाव- काह पपिट्टा ?
२०. प्र०.-हे भगवन् ! नीचे रहेतो असुरेंद्र, असुरराज चमर केवो मोटो ऋद्धिवाळो छे; केवो मोटो कांतिवाळो छे अने यावत्तेनी ते ऋद्धि क्यां गइ?
" सग-जवण-सबर-बब्बर-काय-मुरंडो-दुगोण-पकणया।
"शक, यवन, शबर, बर्बर, काय, मुरंड, दुगोळ (1) पक्वणक, भा. अक्खाग-हूण-रामस-पारस-खस-खासिया चेव ॥ १
ख्याक, हूण, रोमस, पारस, खस, खासिक, दुविल, यल, (?) बोस (1) दुविल-यल-वास-बोकस-भिल-उद-पुलिंद-कोंच-भमर-रूया ।
बोकस, भित, अंध, पुलिंद, काच, भ्रमर , रूय, कांबोज, चीन, चुंचुक, कोंबायचीण-चुय-मालय-दमिल-कुलक्खा य ॥ २
मालय (१) मिल अने कुलाक्ष" ए बधा अनार्यदेशो छे:-सूत्रकृ. पृ०
सूत्रकृतांग पृ० १२३. १२३. "सक-जवण-सबर-बब्बर-गाय-मुरुड-उद-भडग-तित्तिय-पक्कणिय-कुलक्ख- "शक, यवन, शबर, बर्बर, काय, मुरुंड, उद, भडक, तित्तक, गोड सीहल-पारस-कोंच अंद-दविल-बिल्लल-पुलिंद- अरोस-डोंब-पोकण गंधहा- पकणिक, कुलाक्ष, गोड, सिंहल, पारस कोच, अंध्र, (अंध) द्राविड, रंग-बहलीय-जा-रोम-मास बउस-मलया-चुचुया य चूलिया कोकणगा मेत्त- बिल्वल, पुलिन्द, अरोष, डेब, पोकण, गंधहारक, बहलीक, कल. रोम पाहव-मालव महुर-आभासिय-अणक चीण-ल्हासिय खस-खासिया नेहुर- माष, बकुश, मलय, चुंचुक, चूलिक ( चोल ?), कोंकण, भेद, पडव. सहमटिश-आरब-डोबिलग कण-केकय हूण-रोमग-रुरु-मरुगा चिलायवि- मालवा, महुरा, आभाषिक, अनक (अनर्क), चीन, हासिक. खस. खासिय. सयवासी य"-प्रश्नव्याकरण पृ० १४.
मेहर, महाराष्ट्र, मौष्टिक, आरब डोबिलक, कुहण, केकय, हूण, रोमक, रुरु, मरुक, अने किरात देशना रहीश"-ए बधी अनार्य प्रजा छे:
प्रश्नव्या० पृ० १४. "सगा जवणा चिलाया सबर-बब्बर-मुरंड-उद-भडग-निण्णग- पाणिया
__ "शक, यवन, किरात, शबर, बर्षर, मुरड, उट्ट, भटक, निम्रक कुलक्ख-गोड-सिंहल-पारस-गोधा कोंच अंबडा-द मिल-चिल्लल-पुलिंद-हार
पकणिक, कुलाक्ष, गोड, सिंहल, पारस, गोध, काच, अंबड (१) द्रमिल, ओस-दोव-योकण अणग अंधा हारवा पहलिय अज्झल-रोम मास बउसा
चिलल, पुलिंद, हार (1), ओस (?), डोंब, वोकण, अनक, अंथ (ध), हारवमलया य बंधुया य सूय लि-कोंकणग-मेय पदव-मालव-मग्गर-आभा सिआ
पहलिक, अध्यल-अध्वर, गेम, भाष, बकुश, मलय, बंधुक, सूयलि (?) कणवीर ल्हसिय-खसा खासिय-णेहूर-मोढ-.बिल.गलओस-पओस-कफेयग
कोंकण, मेद, पल्हव, मालव, मग्गर (?), आभाषिक, कणवीर, ल्हासिक, हण-रोमग-हूण-रोमग-भरु मस्य-चिलाय विसयवासी य"-प्रज्ञ पना उपांग
खस, खासिक, नेहूर, मूढ, डोविल, गलआस (2) प्रदेष, कतक, पृ० ५५.
हण, रोमक, हूण, रोमक (?) भरु, मरुक, अने किरात" ए बधी
भनार्यजातिओ छे:-प्रज्ञापना. पृ० ५५. मा बधा नामोमा पाठ-वैषम्यने लीधे खरां नामोर्नु पृथकरण थई शकतुं नथी. तो पण उपर आवेलां (शबर, बर्बर पल्हय वा पण्हय, पुलिंद)ए चार नामो तो ए त्रणे पायेमा नाधाएला छे-अनु०
१. मूलच्छायाः-वा, हस्तिबरम् वा, योधबलम् वा, धनुर्बलं वा आकलयन्ति, एवमेव असुरकुमारा अपि देवाः नान्यत्र (नन्वत्र ) अर्हतो वा, अर्हचैत्यानि वा, अनगारान् या भ वितात्मनो निधाय ऊर्ध्वम् उत्पतन्ति, यावत-सौधर्मः कल्पः. सर्वेऽपि भगवन् । असुरकुमाराः देवा ऊर्वम् उत्पतन्ति यावत्-सौधर्मः कल्पः ? गातम ! नाऽयम् अर्थः समर्थः, मह धकाः असुरकुमाराः देवा ऊर्ध्वम् उत्पतन्ति, यावत्-सौधर्मः कल्पः. एषोऽपि भगवन् !
चमरः असुरेन्द्रः, असुर कुमारराज ऊर्ध्वम् उत्पतितपूर्वः यावत्-साधर्मः कल्पः १ हन्त, गातम!. अधो भगवन् । चमरोऽसुरेन्द्रः, असुरकुमारराजो 'महर्धिकः, महाद्युतिकः यावत्-कुत्र प्रविष्टा ?:-अनु
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org.