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श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे
शतक ३.-उद्देशक २. १३. उ०-हतो, अस्थि.
१३. उ०—हे गौतम ! हा, तेओनी पासे नानां नानां रत्नो
होय छे. १४. प्र०—से कहमिआणि पकरेंति ?
१४. प्र०—हे भगवन् ! ज्यारे ते असुरो, वैमानिकोनां रत्नो
उपाडी जाय त्यारे वैमानिको तेओने शुं करे ।। १४. उ०—(तओ) से पच्छा कार्य पव्वहति.
१४. उ०-हे गौतम ! रत्नो लीधा पछी ते असुरोने (वै
मानिको द्वारा) शारीरिक व्यथा भोगवयी पडे छे. १५. प्र.-पभू णं भंते ! असुरकुमारा देवा तत्थ गया चेव १५. प्र०—हे भगवन् ! उपर गया एवा ज ते असुरकुमार समाणा ताहिं अच्छराहिं सद्धिं दिव्वाइं भोगभोगाइं भुंजमाणा देवो त्यां रहेली अप्सराओ साथे दिव्य अने भोगववा योग्य भोगोने विहरित्तए.
भोगवी शके खरा-भोगवता रही-विहरी शके खरा ? १५. उ०—णो इणढे समडे, से (ते) णं तओ पडिनियत्तंति, १५. उ०-हे गौतम ! ए प्रमाणे करवाने ते असुरकुमार ततो पडिनियत्तित्ता इहमागच्छंति, जइ णं ताओ अच्छराओ देवो समर्थ नथी. किंतु तेओ त्यांथी पाछा वळे छे अने अहीं आढायंति, परियाणंति, पभ णं ते असरकमारा देवा ताहि अ- (पोताने स्थाने) आवे छे. जो कदाच ते अप्सराओ तेओनो आदर च्छराहिं सद्धिं दिव्याई भोगभोगाइं भुंजमाणा विहरित्तए : अहण कर, तेओने स्वामी तरीके स्वीकारे तो ते असुरकुमार देवो, ते
त्यां रहेली-उपरनी-अप्सराओ साथे दिव्य अने भोगववा योग्य ताओ अच्छराओ नो आढायति, नो परियाणंति, णो णं पभू ते
भोगोने भोगवी शके छे-भोगवता रही-विहरी-शके छे. हवे कअसरकमारा देवा ताहिं अच्छराहिं सद्धिं दिव्वाई भागभागाइ दाच ते अप्सराओ तेओनो आदर न करे तथा तेओने स्वामी भुंजमाणा विहरित्तए, एवं खलु गोयमा ! असुरकुमारा देवा सो-
तरीके न स्वीकारे तो ते असुरकुमार देवो, ते अप्सराओ साथे
सोर हम्म कप्पं गया य, गमिस्सति य.
दिव्य अने भोगवत्रा योग्य भोगोने भोगवी शकता नथी. हे गौतम ।
असुरकुमार देवो, सौधर्म कल्प सुधी गया छे, जाय छे अने
जशे' तेनुं पूर्व प्रमाणे कारण छे. १६. प्र०-केवइअकालस्स णं भंते । असुरकुमारा देवा उडू १६. प्र०—हे भगवन् ! केटले समये-केटलो समय वीत्या उप्पयंति, जाव-सोहम्म कप्पं गया य, गमिस्संति य? पछी-असुरकुमार देवो उंचे उत्पते छे-जाय छे तथा यावत्-सौधर्म
कल्प सुधी-गया छे अने जशे? १६. उ०-गोयमा ! अणंताहिं उस्स प्पिणीहिं, अणंताहि १६. उ०-हे गौतम ! अनंत उत्सर्पिणी अने अनंत अवअवसाप्पिणीहि समतिकंताहिं, अस्थि णं एस भावे लोयच्छेरयभूए सर्पिशी वीत्या पछी लोकमां अचंचो पमाडनार ए भाव उत्पन्न थाय समुप्पज्जइ, जंणं असरकमारा देवा उडु उप्पयंति, जाव-सोहम्मो छ के, असुरकुमार देवो उंचे उसो छे अने यावत-सौधर्म कल्प कप्पो.
सुधी जाय छे. १७. प्र०-किं णिस्साए णं भंते । असुरकुमारा
१७. प्र०-हे भगवन् ! कइ निश्रावडे-कोनो आश्रय करीनेउप्पयन्ति, जाव-सोहम्मो कप्पो ?
ते असुर कुमार देवो यावत्-सौधर्म कल्प सुधी जाय छे ? १७, उ०-गोयमा! से जहा नाम ए सबरा इवा, बब्बरा १७. उ-हे गौतम ! जेम कोइ एक शबरजातिना लोको. इ वा, ढं (टं) कणा इ वा, भुत्तुआ इ वा, पण्हया (पल्हया)इ बब्बरजातिना लोको, ढंकणजातिना लोको, भुत्तुअजातिना (1) लोको. वा, पलिंदा इ वा एगं महं रगं वा, ख (ग).टुं वा, दग्गं वा, पहजाति (?) ना लोको अने पुलिंद लोको एक मोटा जंगलनो, दरिं वा, विसमं वा, पव्वयं वा णीसाए सुमहल्लमवि आसबलं खाडानो, जलदुर्गनो के स्थलदुर्गनो, गुफानो, खाडा अने वृक्षोथी
१. मूलच्छायाः-हन्त, सन्ति. अथ कथम् इदानीं प्रकुर्वन्ति ? तेषां पश्चात् कायं प्रव्यथन्ते. प्रभो भगवन् ! असुरकुमारा देवास्तत्र गताश्चैव समानास्तामिरप्सरोभिः सार्धं दिव्यानि भोगभोग्यानि भुञ्जाना विहर्तुम् ? नाऽयम् अर्थः समर्थः. अथ ततः प्रतिनिवर्तन्ते, ततः प्रतिनिवृत्त्य अत्राऽऽगच्छन्ति, यदि ता अप्सरसः आद्रियन्ते, परिजानन्ति, प्रभवस्ते असुरकुमारा: देवास्ताभिरप्सरोभिः सार्ध दिव्यानि भोगभोग्यानि भुझाना विहर्तुम्, अथ ताः अप्सरसो नो आद्रियन्ते, नो परिजानन्ति नो प्रभवस्ते असु'कुमारा देवास्ताभिः-अप्सरोभिः सार्धं दिव्यानि भोगभोज्यानि भुञ्जानाः विहर्तुम् , एवं खलु गौतम! असुरकुमाराः देवा सैधिर्म कल्पं गताच, गमिष्यन्ति च, कियत्कालेन भगवन् ! असुरकुमाराः देवाः ऊर्ध्वम् उत्सतन्ति, यावत्-सौधर्म कल्पं गताच, गमिष्यन्ति च ? गौतम! अनन्ताभिः उत्सर्पिणीभिः, अनन्ताभिः अवसर्पिणिभीः समतिकान्ताभिः, अस्ति एष भावो लोकाश्चर्यभूतः समुत्पद्यते, यद् असुरकुमारा देवाः ऊर्ध्वम् उत्पतन्ति, यावत्-सौधर्मः कल्पः. किं निधाय भगवन् । असुरकुमारा देवा ऊर्ध्वम् उत्पतन्ति, यावत्-साधर्मः कल्पः? गौतम ! स यथा नाम शबरा वा, बर्बरा वा, ढकणा वा, भुत्तुका वा, प्रश्नका वा, पुलिन्दा वा, एकं महद् अरण्यं वा, गर्ता वा, दुर्ग वा, दरी वा, विषम वा पर्वतं वा निश्राय सुमहद् अपि अश्वबलम्:-अनु.
१. शबर, बबर, ढंकण, भुत्तुअ, पल्ह अने पुलिंद-ए छ ए शब्दो जूदी जूदी अनार्य जातिना सूचक छे. एमांना केटलाक शब्दो तो अनार्य देशना पण वाचक छे. अनार्य देशोनी अने अनार्य जातिनी गणत्रीने प्रसंगे ए विषे सूत्रकृतांग, प्रश्नव्याकरण अने प्रापना उपांगा नीचे प्रमाणे जणाव्यु :
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