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श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे
शतक ३.-उद्देशक ?
२७. उ०-हन्तो, गोयमा ! (पभू) जहा पादुभवो. २७. उ०-हे गौतम ! हा, ते वातचित करवा माटे समर्थ
छे-जेम पासे आववा संबंधे जणाव्युं तेम वातचित करवा संबंधे
पण समजवू. २८. प्र०-अस्थि णं भंते ! तेसिं सक्की-साणाणं देविंदाणं, २८. प्र०-हे भगवन् ! ते देवेंद्र, देवराज शक अने ईशादेवराईणं किच्चाई, करणिज्जाइं समप्पजति ?
न वचे प्रयोजन के विधेय-कार्य-होय छे ? २८. उ०—हन्ता, अत्थि.
२८. उ०—हे गौतम ! हा, होय छे. २९. प्र०-से कहमिदाथि पकरति ?
२९. प्र०-हे भगवन् ! हमणां तेओ पोतपोताना कार्यने
केवी रीते करे छे? २९. उ०-गोयमा! ताहे वे णं से सके देविंदे, देवराया २९. उ०—हे गौतम ! ज्यारे देवेंद्र, देवराज शक्रने कार्य होय ईसाणस्स देविंदस्स देवरण्णो अंतिअंपाउन्भवइ, ईसाणे वा देविदे, त्यारे ते देवेंद्र, देवराज ईशाननी पासे प्रादुर्भवे छे-आवे छे अने, देवराया सक्कस्स देविंदस्स, देवरण्णो अंतिअंपाउन्भवइ-इति भो। ज्यारे देवेंद्र, देवराज ईशानने कार्य होय त्यारे ते देवेंद्र, देवराज सक्का । देविंदा ! देवराया ! दाहिणलोगाहिवई; इति भो । शक्रनी पासे प्रादुर्भवे छे. तेओनी परस्पर बोलवानी रीति आवी ईसाणा ! देविंदा ! देवराया। उत्तरडुलोगाहिवई!. इति भो । छ:-हे दक्षिण लोकार्धना धणी देवेंद्र देवराज शक ! अने हे उत्तर इति भो । त्ति ते अण्णमण्णस्स किच्चाई, करणिज्जाइं पचणुब्भव- लोकार्थना धणी देवेंद्र देवराज ईशान!-ए प्रमाणे संबोधनें संबोधी माणा विहरंति.
तेओ पोतपोतानुं कार्य करता रहे छे. ३०. प्र०-अत्थि णं भंते ! तेसि सक्की-साणाणं देविंदाणं, ३०. प्र०—हे भगवन् ! ते बन्ने देवेंद्र, देवराज शक अने देवराईणं विवादा समुप्पज्जति ?
देवेंद्र, देवराज ईशान-वच्चे विवादो थाय छे ? ३०. उ०-हंता, अत्थि.
३०. उ०—हे गौतम ! हा, ते बन्ने वच्चे विवादो थाय छे. ३१.प्र०—से कहमिदाणिं पकरेंति ?
३१. प्र०-हे भगवन् ! ज्यारे ते बे वच्चे विवाद थाय छे
स्यारे तेओ शुं करे छ ? ३१. उ०-गोयमा ! ताहे चेव णं ते सकी-साणा देविंदा, ३१. उ०—हे गौतम ! ज्यारे ते बे वच्चे विवाद थाय छे देवरायाणो सणंकुमारं देविंद, देवरायं मणसी-करति, तए णं से सारे तेओ, देवेंद्र देवराज सनत्कुमारने संभारे छे अने संभारतां सणंकमारे देविंदे, देवराया तेहिं सक्की-साणेहिं देविंदेहि, देवराईहिं ज ते देवेंद्र, देवराज सनत्कुमार, देवेंद्र देवराज शक्र अने ईशामणसी-कए समाणे खिप्पामेव सकीसाणाणं देविंदाणं, देवराईणं ननी पासे आवे छे. तथा ते आवीने जे कहेले तेने तेओ माने - अंतिअंपाउब्भवइ, जं से बदइ तस्स आणा-उववाय-वयण-निद्देसे ते बन्ने इंद्रो तेनी आज्ञामां, सेवामां, आदेशमां अने निर्देशमा रहे छे. चिन्ति.
३२.प्र०—संणंकमारे भंते ! देविंदे, देवराया किं भव- ३२. प्र०—हे भगवन् ! शुं देवेंद्र, देवराज सनत्कुमार भवसिद्धिए, अभवसिद्धिए ? सम्मदिट्टी, मिच्छदिट्ठी ? परित्तसंसारए, सिद्धिक छे. अभवसिद्धिक छे. सम्यग्दृष्टि छ, मिथ्यादृष्टि छे, मित अणंतसंसारए ? सलभबोहिए, दल्लभवोहिए ? आराहए, विराहए? संसारीले अमित अनंत सारी मलम बोधिवालो के वर्लभ चरिमे, अचरिमे ?
बोधिवाळो छे, आराधक छे, विराधक छे, चरम छे के अचरम छे ? ३२. उ०-गोयमा ! सणंकुमारे णं देविंदे देवराया भवसिद्धिए, ३२. उ०—हे गौतम ! देवेंद्र देवराज सनत्कुमार भवसिद्धिक
१. मूलच्छायाः-हन्त, गौतम! (प्रभुः)यथा प्रादुर्भवः. अस्ति भगवन् ! तयोः शके-शानयोः देवेन्द्रयोः देवराजयोः कृत्यानि, करणीयानि समुत्पद्यन्ते ? हन्त, अस्ति. तत् कथम् इदानी प्रकुरुतः ? गौतम ! तदैव स शको देवेन्द्रो देवराजः ईशानस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य अन्तिकं प्रादुर्भवति, ईशानो वा देवेन्द्रो देवराजः शक्रस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य अन्तिकं प्रादुर्भवति-इति भोः शक्र ! देवेन्द्र! देवराज ! दक्षिणार्धलोकाधिपते !. इति भोः ईशान ! देवेन्द्र ! देवराज ! उत्तरार्धलोकाधिपते!. इति भोः ! इति भोः! इति तो अन्योन्यस्य कृयानि, करणीयानि प्रत्लनुभवन्तौ विहरतः. अस्ति भगवन् ! तयोः शके-शानयोः देवेन्द्रयोः, देवराजयोः विवादाः समुत्पद्यन्ते ? हन्त, अस्ति. तत् कथम् इदानीं प्रकुरुतः ? गौतम ! तदैव तौ शकेशानौ देवेन्द्री देवराजौ सनकुत्मार देवेन्द्रम् , देवराज मनसि कुरुतः, ततः स सनत्कुमारो देवेन्द्रो देवराजस्ताभ्यां शके-शानाभ्यां देवेन्द्राभ्यां देवराजाभ्यां मनसि कृतः सन् क्षिप्रम् एव शके-शानयोः देवेन्द्रयोः देवराजयोः अन्तिकं प्रादुर्भवति, यत् स वदति तस्य आज्ञा-उपपात-वचन-निर्देशे तिष्ठतः, सनत्कुमारो भगवन् ! देवेन्द्रो देवराजः किं भवसिद्धिकः, अभवसिद्धिकः ? सम्यग्दृष्टिः, मिथ्यादृष्टिः ? परीतसंसारकः, अनन्तसंसारकः ? सुलभबोधिकः, दुर्लभबोधिकः ? आराधकः, विराधकः ? चरमः, अचरमः ? गौतम ! सनत्कुमारो देवेन्द्रो देवराजो नवसिद्धिकः-अनु. .
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