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शतक ३.-उद्देशक १.
भगवत्सुधर्मस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र, २०. प्र० सैकस्स णं भंते ! देविंदस्स, देवरण्णो विमाणे- २०. प्र०-हे भगवन् ! शुं देवेंद्र, देवराज शक्रनां विमानो तो ईसाणस्स देविंदस्स. देवरण्णो विमाणा ईसिं उच्चयरा चेव, करतां देवेंद्र, देवराज ईशाननां विमानो जराक उंचां . जराक ईसि उन्नयतरा चेव, ईसाणस्स वां देविंदस्स, देवरण्णो विमाणे- उन्नत छे ? अने देवेंद्र, देवराज ईशाननां विमानो करतां देवेंद्र. हितो सकस दोविंदस्स, देवरण्णो विमाणा ईसिं णीययरा चेव, देवराज शकनां विमानो जराक नीचां छे. जराक निम्न छे ? ईसिं निण्णयरा चेव ? २०. उ०—हता, गोयमा ! सक्कस्स तं चेव सव्यं नेयव्वं. २०. उ०-हे गौतम! हा, ते ज प्रमाणे छे-अहीं उपरना
सूत्रनो पाठ उत्तररूपे समजवो. २१.प्र०–से केणटेणं ?
२१. प्र०-हे भगवन् ! तेम कहेवार्नु शुं कारण ! २१. उ०-गोयमा ! से जहा नाम ए करयले सिया-देसे २१. उ०-हे गौतम ! जेम कोइ एक हाथर्नु तळिउंबजे से उन्नए, देसे पीए, देसे निण्णे : से तेणद्वेणं गोयमा! हथेळी-एक भागमा उंचुं होय, एक भागमा उन्नत होय तथा एक सकस्स देविंदस्स, देवरण्णो जाव-ईसि निण्णयरा चेव.
भागमां नीचुं होय अने एक भागमां निम्न होय ते ज रीते विमानो
संबंधे पण समजवु अने ए ज कारणथी पूर्व प्रमाणे का छे. २२ प्र०-पभ णं भंते ! सके देविंदे, देवराया ईसाणस्स २२. प्र०-हे भगवन् ! देवेंद्र, देवराज शक्र देवेंद्र, देवराज देविंदस्स, देवरण्णो अंति पाउभवित्तए ?
ईशाननी पासे प्रकट थवाने-पासे आववाने-समर्थ छे ? २२. उ०—हन्ता, पभू.
२२. उ०—हे गौतम ! हा. २३. प्र०-से णं भंते ! किं आढायमाणे पभू, अणाढाय- २३. प्र०—हे भगवन् ! ज्यारे ते, तेनी पासे आवे त्यारे तेनो माणे पभू ?
आदर करतो आवे के अनादर करतो आवे? २३. उ०-गोयमा ! आढायमाणे पभू, नो अणाढायमाणे पभू. २३. उ०—हे गौतम ! ज्यारे ते (शक ), ईशाननी पासे
आवे त्यारे तेनो आदर करतो आवे पण अनादर करतो न आवे. २४. प्र०—पभू णं भंते ! ईसाणे देविंदे, देवराया सक्कस्स २४. प्र०—हे भगवन् ! देवेंद्र, देवराज ईशान देवेंद्र, देवदेविंदस्स देवरण्णो अंतिअंपाउब्भवित्तए ?
राज शक्रनी पासे आववाने समर्थ छे ? २४. उ०—हन्ता, पभू.
२४. उ०--हे गौतम ! हा. २५. प्र०--से णं भंते ! किं आढायमाणे पभू, अणाढायमाणे २५. प्र०—हे भगवन् ! ज्यारे ते-(ईशानेंद्र), तेनी पासे आवे पभ ?
त्यारे ते (शकेंद्र) नो आदर करतो आवे के अनादर करतो आवे ? २५. उ०-गोयमा ! आढायमागे वि पभू, अणाढायमाणे २५. उ०—हे गौतम ! ज्यारे ते-(ईशानेंद्र ), शक्रंदनी पासे. वि पभू.
आवे त्यारे ते, तेनो आदर करतो आवे अने अनादर करतो पण आवे. २६. प्र०—पभू णं भंते ! सक्के देविंदे, देवराया ईसाणं २६. प्र०—हे भगवन् ! देवेंद्र, देवराज शक्र देवेंद्र, देवराज देविंद, देवरायं सपक्खिं, सपडिदिसिं समभिलोइत्तए ? ____ ईशाननी सपक्षे (चारे बाजुए) सप्रतिदिशे (बधी तरफ) जोवाने समर्थ छे २६. उ०—जहा पादुभवणा, तहा दो वि आलावगा नेयव्वा. २६. उ०—हे गौतम ! जेम पासे आववा संबंधे बे आलापक
कह्या, तेम जोवा संबंधे पण बे आलापक कहेवा.. . .. २७. ५०-पभू णं भंते ! सके देविंदे, देवराया ईसाणेणं २७. प्र०-हे भगवन् ! देवेंद्र, देवराज शक्र, देवेंद्र, देवदेविदेणं, देवरण्णा सद्धिं आलावं वा, संलावं वा करेत्तए ? राज ईशाननी साथे आलाप संलाप-वातचित करवा माटे समर्थ छ?
१. मूलच्छायाः शक्रस्य भगवन् ! देवेन्द्रस्य, देवराजस्य विमानेभ्य ईशानस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य विमानानि ईषद् उच्चतराणि एत्र, ईषद् उन्नततराणि एव; ईशानस्य वा देवेन्द्रस्य, देवराजस्य विमानेभ्यः शकस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य विमानानि ईषद् नीचतराणि चैव, ईषद् निम्नतराणि एव ? हन्त, गौतम शकस्य तचैव सर्व ज्ञातव्यम्. तत् केनाऽर्थन? गीतम! तद्यथा नाम करतलं स्याद्-देशे उच्चम् , देशे उन्नतम् , देशे नोचम् , देशे निम्नं तत् तेनाऽर्थेन गौतम ! शकस्य देवेन्द्रस्य, देवराजस्य यावत्-ईषद् निम्रतराणि चैव. प्रभुभंगवन् ! शको देवेन्द्रः, देवराजः ईशानस्य देवेन्द्रस्य, देवराजस्य अन्तिकं प्रादुर्भवितुम् ! हन्त, प्रभुः स भगवन् ! किम् आद्रियमाणः प्रभुः, अनाद्रियमाणः प्रभुः? गीतम! आद्रियमाणः प्रभुः, नोऽनाद्रियमाणः प्रभुः प्रभुभगवन् ! ईशानो देवेन्द्रः, देवराजः शकस्य देवेन्द्रस्य, देवराजस्य अन्तिकं प्रादुर्भवितुम् ? हन्त, प्रभुः. स भगवन् । किम् आद्रियमाणः प्रभुः, अनाद्रियमाणः प्रभुः ? गौतम ! आद्रियमाणोऽपि प्रभुः, अनाद्रियमाणोऽपि प्रभुः. प्रभुभगवन् ! शको देवेन्द्रः, देवराजः ईशानं देवेन्द्रम् , देवराजं सपक्षं सप्रतिदिशं सममिलोकयितुम् ! यथा प्रादुर्भावना, तथा द्वौ अपे आलापको ज्ञातव्यो. प्रभुभगवन् ! शक्रो देवेन्द्रो देवराजः ईशानेन देवेन्द्रेण देवराजेन सार्धम् आलापं वा, संलापं वा कतम् ?:-अनु.
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