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श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रह
शतक ६.-उद्देशक४.
अमनस्क.
प्रत्याख्यानमानसूत्र, अने देश प्रत्याख्याननो संभव नथी. प्रत्याख्यान त्यारे ज वइ शके ज्यारे तेनु-प्रत्याख्यान--ज्ञान होय, माटे हये प्रत्याख्यानना ज्ञानन समस्क .
सूत्र कहे छे, अने तेमां [जे पंचिंदिया ते तिणि वि ' ति] नैरयिकादि अने दंडकमां कहेला पंचेंद्रियो समनरक-मनसाहत-होवाथी
सम्यग्दृष्टिपणुं होय तो शपारशावडे प्रत्याख्यानादि त्रणने जाणे छे अने [' अवसेसा' इत्यादि.] बाकाना एकेंद्रियो अने विकलेंद्रियो अमनस्क प्रत्याख्यानकरणमूत्र होवाथी प्रत्याख्यानादि त्रणने जाणता नथी. प्रत्याख्यान त्यारे ज थाय ज्यारे ते कर्य होय, ते माटे हवे तत्करण-प्रत्याख्यान-करण-सूत्र कह्यु प्रत्याख्यान अने छे. तथा प्रत्याख्यान, आयुष्यना बंधमां कारण पण छे माटे प्रत्याख्यान-करण सूत्र पछी आयुष्यनुं सूत्र कहे छे, अने ते आयुष्यना सूत्रमा आयुष्य.
['जीवा य ' इत्यादि.] जीवपदमां जीवो प्रत्याख्यानादि त्रण वड़े निबद्ध आयुष्य वाळा कहेवा अने वैमानिकपदमां वैमानिको पण ए प्रमाणे कहेवा, कारण के, प्रत्याख्यानादि त्रणवाळाओनो वैमानिकोमा उत्पाद-उत्पत्ति-छे. [ 'अवसेस' ति] नैरयिकादि अप्रत्याख्यामथी
बद्ध आयुष्यवाळा छे, कारण के, खरी रीते नैरायकोमा अविरतो-विरति रहित जीवो-ज उत्पन्न थाय छे, हवे उपर कहेल अर्थनी संग्रह गाथा संग्रहगाथा.
कहें छे, ['पच्चरखाणं' इत्यादि.] प्रत्याख्यानने माटे एक दंडक छे, ए प्रमाणे बीजा पण त्रण एटले कूल चार दंडक समजवा.
वेडारूपः समुद्रेऽखिलजलचरिते क्षारभारे भवेऽस्मिन् दायी यः सद्गुणानां परकृतिकरणाद्वैतजीवी तपस्वी । अस्माकं वीरवीरोऽनुगतनरवरो वाहको दान्ति-शान्त्योः-दद्यात् श्रीवीरदेवः सकलशिवसुखं मारहा चाप्तमुख्यः॥
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