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श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे
शतक ६.-उद्देशक १.
ति स्थूलतरस्कन्धानि असार,णि-इत्यर्थः, 'सिढिलीकयाई' ति श्लथीकृतानि मन्दविपाकीकृतानि, 'निद्वियाई कडाई' ति निस्सत्ताकानि विहितानि — विप्परिणामियाई ' ति विपरिणामं नीतानि स्थितिघात-रसघातादिभिः-तःनि च क्षिप्रमेव विध्वस्तानि भवन्ति, एभिश्च विशेषणैः सुविशोध्यानि भवन्ति-इत्युक्तं स्यात् , ततश्च 'जावतियं ' इत्यादि.
२.[' से णूणं भंते ! जे महावेदणे' इत्यादि.] उपसर्ग वगरे द्वारा जने विशेष पीडा उपजी होय ते महावेदन-मोटी बेदुनाबाळो-- महावेदना अने महा. कहेवाय अने जेनां कर्मनो क्षय विशेष प्रकारे थयो होय ते महानिर्जर-मोटी निर्जरावाळो-कहेवाय, ए बन्नेनुं अन्योन्य अविनाभूतपणुं प्रकट करवा निर्जरा. माटे अर्थात् महावेदना होय त्यां महानिर्जरा होय ? अने महानिर्जरा होय त्यां महावेदना होय ?-ए हकीकतने जणाववा सारु सूत्रकारे [ 'जे
महानिजेरे' इत्यादि ] सूत्रनुं पुनरुच्चारण कयु छे-ए एक प्रश्न थयो, तया महावेदनावाळो अने अल्प वेदनावाळो ए बेनी बच्चे जे प्रशस्त
कल्याणना अनुबंबवाळी-निर्जरावाळो छे ते उत्तम कहेवाय ?-ए बीजो प्रश्न छ, ए प्रश्ननी प्रश्नता काकुपाठथी जाणवानी छे. 'हन्त' भगवंत महावीर. इत्यादि उत्तर सूत्र छे. जे समये भगवंत महावीरने मोटा मोटां कष्टो पड्यां ते समयना भगवंत महावीर, अहीं प्रथम प्रश्नना उत्तरमा उदाहरण
-रूप छे. अने बीजा प्रश्नना उत्तरमा पण ते ज भगवंत, उपसर्गवाळी अने उपसर्ग विनानी अवस्थामा उदाहरणरूप छे. जे महावदनावाळो छे ते
महानिर्जरावाळो छे, ए जे कयुं छे, ते संबंधे ' ए कथन बराबर छ के नहि ? ' ए जातनी शंका आणीने सूत्रकार कहे छे के, [ 'छट्ठी' दुयात. इत्यादि.] [ 'दुबोयतराए ' त्ति ] जेनी घोवानी प्रक्रिया दुष्कर होय अर्थात् जेने धोता-साफ- करतां-बहु मुश्केली आवती होय ते ' दु(ततर' दुर्वाम. कहेवाब, [ 'दुवामतराए'त्ति] जेनी उपरना डाघाओ महाकटे नीकळी शके ते 'दुर्वाम्यतर ' कहेवाय, [ ' दुष्परिकम्मतराए ' त्ति ] जेने चळकतुं दु प्रतिकर्म, करतां अने जेमां चित्रामण करतां घणो ज प्रयास करवो पडे ते 'दुष्पतिकर्मतर' कहेवाय. अहीं आ णे विशेषणो वस्त्रने लगतां छे अने तेथी
___एम जाणी शकाय छे के, जे वस्त्रना ए विशेषणो छे ते मेलामा मेलु-मसोता करतां पण मेलु-दाढ जेवू मेलु-हो, जोईए अर्थात् ते दुर्विशोध्य होवू गार. जोईए. [ 'गाढीकयाई' ति ] शणना सूतरथी-सूतळीथी-गाढ़-खूब मजबूत-बांधेल सोयना समूहनी पेठे आत्माना प्रदेशोनी साथै गाढ बांधला, चिकण. [ चिकणीकयाई ' ति ] जम चीकाशने लीधे माटीनो पिंडो दुर्भद्य थाय छे तेम सूक्ष्म कर्मरकंधोना रसनी साथे परस्पर गाढ संबंध करवाथी जे
कर्मो दुर्भद्य थयां छे ते, 'चिक्कंगां की 'एम कहेवाय, ['सिलिट्ठीकयाई ' ति ] श्लिष्ट कर्या अर्थात् सूतरनी दोरीवती मजबूत बांधीने आगमा लिष्ट, तपावेली लोढानी सळीओ जेम परसर चोंटी जाय छे-कोई रीते नोखी थई शकती नथी तेम जे कर्मों ए रीते परस्पर एकमेक थई गयां होय-कोई
रीते नोखां न पड़ी शकता होय तेओ निधत्त कर्मी-श्लिष्ट करेलां क-कहेवाय. अने जे कर्मो अनुभव्यां सिवाय बीजा कोई उपायथी खपावी निकाचित. शकाय एवां न होय निकाचित होय-ते 'खिलीभूत ' कहेवाय. अहीं आ चारे विशेषणो कर्मने लगतां छे अने तेथी एम जाणी शकाय छे के, जे
कर्मनां ए विशेषणो छे ते कर्मो, ए मेलामा मेला वस्त्रनी पठे दुर्विशोध्य छे-अन ए प्रमाणे [ 'एवामेव '] इत्यादि वाक्य सुघट थाय छे. ए कर्मो,
भारे दुर्विशोध्य होवाथी अत्यंत वेदनानां कारण थाय छे अने एज हकीकतने जगावे छे के, [ 'संपगाढं ' इत्यादि.][• नो महापज्जवसाणा शंका, भवंति ' ति ] अर्थात् संप्रगाढ वेदनाने अनुभवे छ पण महापर्यवसानवाळा थता नथी. शं०-अहीं शास्त्रकारे वेदना अने निर्जरानी हकीकत समाधान, कहेवा मांडी छे तेमां वच्चे ' महापर्यवसानवाला थता नथी' एबुं अप्रस्तुत कहेवानुं शुं कारण ? समा० - ' महापर्यवसानवाळा थता नथी' ए कथन
काई आस्तुत नथी. कारण के, जेम वेदना अने निर्जरानो परस्पर कार्य-कारण भाव छे तेम निर्जरा अने महापर्यवमाननो पण परस्पर कार्य कारण
भाव छे माटे ज मूळमां कयु के, जेओ मोटी निर्जरावाळा नथी तेओ मोटा पर्यवसानवाळा पण नधी-ए रीते, ए कथन कांद अप्रस्तुत नथी. विशिष्ट जीव. वळी, अहीं जे का छे के, जे मोटी वेदनावाळो होय ते मोटी निर्जरावाळो होय ' ए कथन कोइ एक विशिष्ट जीवनी अपेक्षाए जाणवू, पण
नैरयिक वगरे क्लिष्टकर्मवाळा जीवोनी अपेक्षाए न जाणवू. ए ज रीते जे कयुं छे के, 'जे महानिर्जरावाळो होय ते महावेदनावाळो होय' ते प्रायिक. कथन पण प्रायिक जाणवं. कारण के, अयोगिकेवली मोटी निर्जरावाळो तो होय छे पण ते मोटी वेदनावाळो भजनाए होय छे-चोक्कस नथी होतो--
अर्थात् ते मोटी वेदनावाळो होय पण अने न पण होय. [ 'अहिगराणि ' ति] जेना उपर लूहारो, लोढाना घणथी लोढाने कूटे-टीपे-ते एरण, अधिकरणी- एरण ' कहवाय-तेने [ • आउडेमाणे ' त्ति ] आकुट्टन करतो--टीपतो, [ · सद्देणं । ति ] लोढानो घण मारवाथी थता शब्दवडे
अथवा टीपनार पुरुषना होकारारूप शब्दवडे, [ 'घोसणं' ति ] अनुनादवडे-तेनी ज पाछळ थता पडघारूप शब्दवडे, [ 'परंपराधाएणं' ति]
प्रधानपणे निरंतरतावाळा घातवडे-उपरा उपर घातबडे. [' अहाबायरे ' ति] स्थूल प्रकारनां पुद्गलोने. [' एवामेव ' इत्यादि ] वाक्य तो दुष्परिशाटनीय, · उपनय माटे छे. [ 'गाढीकयाई '] इत्यादि चार विशेषणोने मूकीने एम जणाव्यु छ के, ते नैरयिकोनां पापकर्मों, दुष्परिशाटनीय-जेओनो
सुधौत. नाश महामुशीबते थइ के एवां-छे. [ ' सुद्रोयतराए ' इत्यादि.] आ सूत्रद्वारा एम जणाव्यु छ के, ते वस्त्र, सुविशोध्य छे एटले सरलताथी
यथावादर. साफ थइ शके एवं छे. ['अहाबायराई' ति ] स्थूलतर स्कंधरूप-असार-पुद्गलो, [' सिढिलीकयाई' ति ] श्लथ-मंद विपाकवाळां-को छे, वि.थिल-निष्ठित- [ निहिआई कडाई '] सत्ता रहित कया छे, [ ' विपरिणामिआई । ति ] स्थितिघातथी अन रसघातथी एटले ए कर्मोनी स्थितिनो अने रसनो घात
विपरिणामित. करीने तेओने विपरिणाम वाळां को छे, अने तेवां थएला ते कर्मों शीघ्र ज विध्वस्त थाय छे, ए विशेषणोथी एम सूचव्यु के, तेओ (ते कर्मो ), महापर्यवसान, सुविशोध्य छे-जेनां कर्मो एवां सुविशोध्य छे तेवा महानुभावो जेटली तेटली पण वेदनाने भोगवता महानिर्जरावोळा अने महा र्यवसानवाला थाय छे-एज हकीकतने जणाववा [' जावइयं ' इत्यादि ] सूत्र कयुं छे.
जीवो अने करणो. ५. प्र०-कतिविहे गं भंते ! करणे पनत्ते ?
५. प्र०-हे भगवन् ! करणो केटला प्रकारनां कयां छ? ५.3०-गोयमा ! चउब्धिहे करणे पन्नत्ते, तं जहा:- ५. उ०-हे गौतम ! करणो चार प्रकारनां कह्यां छे, ते मणकरणे, वंइकरणे, कायकरणे, कम्मकरणे.
जेमके, मनकरण, वचनकरण, कायकरण, अने कर्मकरण. १. मूलच्छायाः-कतिविधानि भगवन् ! करणानि प्रज्ञप्तानि ? गौतम! चतुर्विधानि. करणानि प्रज्ञप्तानि, तद्यथाः-मनस्करणम् , वचस्करणम् , कायकरणम् , कर्मकरणम् :-भ.
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