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२३८ श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे
शतक ५.-उद्देशक ८. थोडां छे, कारण के, प्रायः करीने द्रव्यमां गुणोनु बाहुल्य रहे छे " तात्पर्य ए छे के, द्विगुणथी मांडी अनंतगुण पर्यंत मापवाळा कालकत्व-काळापणुंवगरे गुणो जाजे भागे द्रव्यमा बहुलताए होय छे.अने एकगुणकाळु बगेरे एकगणा गुणो तो अल्प होय छे, माटे द्रव्यथी अप्रदेश पुद्गलो सर्वशी थोडां कहां छे. " ए करतां कालादेशथी अप्रदेश पुथलो असंख्यगुण छे, तेम थयामां बळी कारण छे ? तो कहे छे के, परिणामनी बहुलता, तेम थवामां कारण छ " तात्पर्य आ छे के, जे समये जे पुद्गल जे वर्ण, गंध, रस, स्पर्श, संघात, भेद, सूक्ष्मत्व अने बादरत्व वगरे रूप बीजा परिणामने पामेलुं होय, ते समये ते पुद्गल, ते अपेक्षाए कालथी अप्रदेश कहेवाय, वळी तेमां स्थिति तो एक समय नी छे अने बीजा परिणामो तो घणा छ माटे दरेक परिणामे दरेक पुद्गल कालथी अप्रदेश संभवतुं होवाथी तेनुं बहुपणुं छे, एनोज विचार करे छ:-जे पुद्गलो भावथी अप्रदेश छे ते पुद्गलो कामथी बन्ने प्रकारना पण छे एटले सपदेश पण छे अने अप्रदेश पण छे, तथा जे पुद्गलो भावथी, द्विगुणथी मांडी अनंतगुण पर्यंत वर्णादिवाळां छे ते चुगलो पण ए प्रकारे कालथी-बे प्रकारना-सप्रदेश अने अप्रदेश छे" अर्थात् एकगुण कालवादिवाळी जे पुद्गलो भावथी अप्रदेश छे ते, कालथी बन्ने प्रकारना पण होय छे एटले सप्रदेश अने अप्रदेश पग होय छे, तथा जे पुद्गलो भावथी, द्विगुणधी मांडी अनंतगुण सुधीना वर्णादिवाळां छे ते पण ' एवं' एटले ए प्रकारे बन्ने प्रकारना छ एटले सप्रदेश अने अप्रदेश छे, तेथी करीने " एकगुग कालादिरूप गुणस्थानोनी मध्ये एक एक गुणस्थानमां कालथी अप्रदेश पुद्गलोनो ए प्रमाणे एक एक ढगलो थयो तात्पर्य ए छे के, एकगुणकाळु, द्विगुणकालु इत्यादि गुणस्थानोनी मध्ये एक एक गुणस्थानमां कालथी अप्रदेश पुद्गलोनो एक एक ढगलो थयो अने तेम थवाथी गुणस्थानकनी राशिना अनंतपणाने लइने कालथी अप्रदेश पुद्गलोना अनंत ढगला थाय छे. हवे प्रेरक-प्रतिवादी-कहे छे के, शास्त्रकार तो कालथी अप्रदेश पुद्गलोनुं असंख्यगुणपणुं कहे छ पण " ए प्रकारे कालथी अप्रदेश पुद्गलोर्नु अनंतगुणपणुं थइ जशे. कारण के, अनंतगुणस्थानोमां राशिओ पण अनंत होय छे " ' एवं ' एटले ए प्रकारे-दरेक दरेक गुणस्थानके कालथी अप्रदेश - पुद्गलोनी राशिओ कहो छो-एम होवाथी अहिं उत्तर दर्शाये छ:-" कहेवाय छे के, ते अनंतराशिओ एकगुण कालत्वादिने पण अनंते भागे छ माटे ते असंख्य गुण ज थाय छे पण तेनु ( गशिओनुं ) अनंतगुणपणुं यतुं नथी." आ अभिप्राय छे के, जो के, अनंतगुण कालत्वादिनी अनंत राशिओ छे तो पण ते राशिओ एकगुण कालत्यादिने अनंते भाग ज वर्ते छे, माटे ते राशिओ द्वारा कालथी अप्रदेश पुद्गलोर्नु अनंतगुणपणुं यतुं नथी, पण असंख्यातगुणपणुं ज छे. "ए प्रमाणे आ वर्णादि परिणामरूप भावने अपेक्षी परमाणु पुद्गलादिमां कालथी अपदेशपणुं सिद्ध थथु, तेम ज द्रव्यमां पण ए ज गम जाणवो" अर्थात् ए प्रमाणे तो
आ हमणां ज कहेवाएला एवा वर्णादि परिणामरूप अने एकथी मांडी अनंतगुणस्थानवर्ती भावने अपक्षी कालथी अग्रदेश पुद्गलो सिद्ध थयां अथवा पुद्गलोनू कालथी अप्रदेशपणुं प्रतिष्ठित थयु. द्रव्यमा पण, द्रव्य परिणामन अंगीकरी परमायादि पुद्गलोना ए ज भावपरिणामोक्त व्याख्यागम-समजवी. " ए ज प्रमाणे क्षेत्राधिकारने आश्री एकप्रदेशावगाहनादिमां स्थानांतरना संक्रमने अपेक्षी कालवडे मार्गणा करवी" तात्पर्य ए छे के, ए प्रमाणे ज-द्रव्यपरिणामनी पेठे-क्षेत्रने अधिकरी एकप्रदेशावगाढ वगेरे पुद्गल भेदोमां स्थानांतरगमननी-बीजे स्थाने जवानी-अपेक्षाए कालथी अप्रदेशोनी जेम क्षेत्रथी एम अवगाहनादिथी' पण मार्गणा करवी; एने ज कहे छ:-" अवगाहनाना संकोच अने विकोचने पण अपेक्षी जेम कालाप्रदेश पुद्गलो छ एम सूक्ष्म, बादर, निष्कंप, सकंप अने शब्दादि परिणामने अपेक्षी तथा प्रकारना पुद्गलो-कालाप्रदेश पुद्गलो-छे ११ तत्त्व ए छे के, अवगाहनाना संकोच अने विकोचने अपेक्षी कालाप्रदेश पुद्गलो छे तेम सूक्ष्म, बादर, स्थिर, अस्थिर, शब्द, मन अने कर्मादि परिणाम ने अपेक्षी कालापदेश पुद्गलो छे. “ए प्रमाणे आ समये पुद्गलोनो, जे कोइ बधो परिणाम थाय छे, ते ते सर्व परिणामने अपेक्षी ए पुद्गलोर्नु कालवडे अप्रदेशपणुं छे " एसिं ' एटल ए पुद्गलोन. " ए प्रमाणे भावथी अप्रदेश पुद्गलो करतां कालथी अप्रदेश पुद्गलो, परिणामना बाहुल्यथी असंख्यगुण सिद्ध थयां "" ए करतां द्रव्यादेशथी अप्रदेश पुद्गलो असंख्यगुण छे, वळी ते क्या ? तो कहे छ के, परमाणु, ते बहु केवी रीते छ ? तो कहे छ के, तेनी बहुत ने नीचे प्रमागे जाणो" " लोकमां, अणु, संख्येयप्रदेशवाळु, असंख्यगुण प्रदेशवाळु अने अनंतप्रदेशवाळु, ए चार प्रकारना अनंतपुद्गलोनी. चार राशिओ छे ” तेमां, सूत्रद्वारा एम कर्जा छ के, जेथी अनंतप्रदेशवाळा अनंतपुद्गलो करतां प्रदेशार्थनी अपेक्षाए अणुओ अनंतगुणां छे" सूत्रमां, अनंतप्रदेशवाळा अनंत स्कंधो करतां प्रदेशार्थनी अपेक्षाए परमाणुओ अनंतगुणां कयां छे, ते सूत्र आ छ:-" द्रव्यार्थनी अपेक्षाए अनंत प्रदेशवाळा स्कंधो सौथी थोडा छे अने ते ज रकंघो, प्रदेशार्थनी अपेक्षाए अनंतगुण छ, परमाणु पद्गलो द्रव्यार्थ प्रदेशार्थनी अपेक्षाए अनंतगुण छ, संख्ययप्रदेशवाळा स्कंधो द्रव्यार्थनी अपेक्षाए संख्येयगुण छे अने ते ज स्कंधो प्रदेशार्थनी अपेक्षाए असंख्येयगुण छे, असंख्येय प्रदेशबाळा स्कंधो द्रव्यार्थनी अपेक्षाए असंख्यगुण छे अन ते ज स्कंधो प्रदेशार्थनी अपेक्षाए असंख्यगुण छे"" संख्यातनदेशवाळाना संख्यातम भागे वर्ते छे, विशेष ए के, असंख्यातप्रदेशवाळाना असंख्यातमे भागे छे" पूर्वोक्त सूत्रनुं प्रामाण्य होवाथी संख्यातप्रदेशवाळाना अणुओ संख्यातमे भागे रईछे अने असंख्या प्रदेशिकना अणुओ असंख्यातमे भागे रहे छे. " ते असंख्यात प्रदेशबाळानु असंख्यभागपणुं छे तो पण बाकीनी राशिओ करतां स्फुट रीते बाहुल्य कहेवाय छे ” — संख्यात प्रदेशवाळा अने अनंत प्रदेशवाळा' ए बे राशिओ छे ते करतां अने अहीं संख्यात प्रदेशिकराशिना संख्यातभाग पिगाने लइने खरूपथी तेओनुं बहुमणुं जणाय छे, जो एम न हो तो ते, तेना असंख्येय अथवा अनंते भागे होत. " जे कारणथी एक राशिना ज असंख्यभागे छ पण बाकीनी बे राशिओना असंख्येय भागे नथी, ते कारणने लइने कालाप्रदेश करतां अणुओ असंख्यगुण छ. " बाकीनी बे राशि नहि ' एनो आ प्रमाणे निष्कर्ष छ:--अनंत प्रदेशिकराशि करतां ते अनंतगुण छ, संख्यात प्रदेशिवराशिने तो संख्यात भागे छे अने विवक्षाए संख्यात भागनी अत्यंत अल्पता नथी, कारण के, कालथी सप्रेदश अने अप्रदेशमा वृत्तिवाळा अणुओनुं बहुपणुं छे अने कालापदेशिक अणुओ मात्र एकसमयनी स्थितिबाळा होवाथी घणा ज ओछा छ तथा-तेम होवाथी-कालाप्रदेश पुद्गलो करतां द्रव्याप्रदेश पुद्गलो असंख्यातगुण छे “सिद्धांतमा, एना करतां क्षेत्राप्रदेशपुद्गलो असंख्यगुण छे, कारण के, ते बधा य अणुओ क्षेत्रथी अप्रदेश छे " " द्विप्रदेशिकादिपदोमां पण प्रदेशपरिवर्धित स्थानोमां क्षेत्रथी अप्रदेशोनो एक एक राशि प्राप्त थाय छे " दथी एक प्रदेशावगाढ पुद्गलोने मूकी बाकीनी अवगाहनाए क्षेत्रादेशबडे ज सप्रदेशपुद्गलो असंख्यगुण होय छे" "वळी, ते द्विप्रदेशावगाहनादिक सर्व शेष पुद्गलो, अवगाहनास्थाननी बहुलताने लीधे असंख्यगग छे " " एना करतां द्रव्यथी सप्रदेशपुगलो विशेषाधिक छे, ए प्रमाणे ज कालथी अने भावथी विशेषाधिक छ । जेथी करीने, अप्रदेशोनी भावादिकवृद्धि असंख्यगुण छे तेथी सप्रदेशोनी
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