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________________ २३७ शतक ५.-उद्देशक ८. भगवत्सुधर्मस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र. ___"ते' चेव य ते चाहिं वि जमुवचरिज्जति पोग्गला दुविहा, तेण उ वुड्डी हाणी तेसिं अनोन्नसंसिद्धा." चतुर्भिरिति भाव-कालादिभिः उपचर्यन्ते इति विशेष्यन्तेः एएसि रासीणं निदरिसणमिणं भणामि पञ्चक्खं, बुद्धीए (बुडीए) सव्वपोग्गला जावं तावाण लक्खाओ." कल्पनया यावन्तः सर्वपुद्गलास्तावतां लक्ष इति. "ऐवं च दो य पंच य दस य सहस्साई अप्पएसाणं, भावाइणं कमसो चउण्ह वि जहोवइटाणं." “णवई पंचणघड अट्ठाणउई तहेव नवनवई, एवइयाई सहस्साई सप्पएसाण विवरीयं." " ऐपसं जहासंभवं अत्थोवणयं करिज राणिं, सम्भावओ य जाणेजा ते अणंते जिणाभिहिए"त्ति. १. सातमा उद्देशामां स्थितिनी ओक्षाए पुद्गलो निरूप्या छे, आठमामां तो ते पुद्गलो ज प्रदेशनी अपेक्षाए निरूपाय छे' ए प्रमाणेना संबंधवाळा आ आठमा उद्देशकर्नु आ-[ ' ते णं काले णं' इत्यादि ] प्रस्तावना सूत्र छे. [' दव्वादेसेणं' ति ] द्रव्यना प्रकारे-द्रव्यथी- द्रव्यादेश. द्रव्यनी अपेक्षाए परमाणुत्त्र वगेरेनो आश्रय करीने-ए निष्कर्ष छे. [ ' खेतादेसेणं ' ति ] एकादेशावगाढव-एक प्रदेशमा रहे-इत्यादिनी क्षेत्रादेश. अपेक्षाए, [ 'कालादेसेणं' ति ] 'एक समय सुधी रहेवापY' इत्यादिनी अपेक्षाए, [ ' भावादे सेणं' ति ] ' एकगणुं काळापणुं' इत्यादिनी कालादेश अने अपेक्षाए, [ ' सबपोग्गला सपएसा वि ' इत्यादि. ] अहिं ' सार्ध अने अनर्ध ' ए प्रकारे विपर्यय सहित पुद्गलनो विचार प्रकान्त-शरू-छे तो पण भावादेश. तेमां ते पुद्गलो सप्रदेशो अने अप्रदेशो ज निरूप्या छे तो आपणे एम जाणवू के सत्रदेश अने अप्रदेशना प्ररूपणमा सार्घत्व वगेरेनुं प्ररूपण आवी गयुं छे माटे तेने जुदुं नथी कडुं. तेने ज दर्शावे छे के, जेओ सपदेश छे तेओ सार्य अथवा समध्य छे अने जेओ तो इतर-अप्रदेश-छ तेओ सार्थ-समध्य, अनर्ध अने अमध्य छे. [ ' अणंत ' ति] आ · अनंत ' शब्द, सप्रदेश अने अप्रदेश पुद्गलोर्नु परिमाण जगावे छे अर्थात् ए द्वारा परमाणुने लगता परिमाणना स्वरूपर्नु अभिधान-कथन--छे. हवे द्रव्यथी अप्रदेश पुद्गलनुं क्षेत्रादिनी अपेक्षाए अप्रदेशादिपशुं निरूपता कह छ:-[जे दव्यओ द्रव्यथी अपदेश. अपएसे' इत्यादि. ] जे पुद्गल, द्रव्यथी अप्रदेश-परमाणुरूप-छे, ते क्षेत्रथी नियमे--चोकस--अप्रदेश होय छे, कारण के, ने पुद्गल, क्षेत्रना एक ज : प्रदेशमा रहे छे, जो बे प्रदेश वगेरे प्रदेशोमा रहे तो तेमां अप्रदेशपणुं न होइ शके--ते अप्रदेश कहेवाय ज नहीं, कालथी तो जो ए, एक समयनी स्थितिवाळो छे तो अप्रदेश छे अने अनेक समयनी स्थितिवाळो होय तो सप्रदेश छे, वळी भायथी जो एकगुण काळो विगेरे प्रकारको छे तो अप्रदेश छे अने अनेकगुण-श्यामादि छे तो सप्रदेश छे-ए प्रमाणे द्र-यथी-द्रव्यनी अपेक्षाए-अप्रदेश पुद्गलनुं निरूपण कयु. हवे क्षेत्रनी अपेक्षाए अप्रदेश पुद्गलने निरूपता कहे छे:-['जे खेत्तओ अप्पएसे' इत्या.दे. ] जे पुद्गल क्षेत्रथी अप्रदेश होय ते पुद्गल द्रव्यथी कदाचित् सप्रदेश क्षेत्रथी अप्रदेश. होय अने कदाचित् अप्रदेश होय, कारण के, द्वन्यणुकादि पण क्षेत्रना एक प्रदेशमा रहेनारा होवाथी द्रव्यथी सप्रदेश छे अने क्षेत्रथी अप्रदेश छे तथा परमाणु एक प्रदेशमा रहेनार होवाथी द्रव्यथी अप्रदेश छे तेम क्षेत्रथी पण अप्रदेश छे. [ ' कालओ भयणाए' ति] जे पुद्गल क्षेत्रथी अप्रदेश छे ते कालथी भजनार कहेवू अर्थात् कदाच सप्रदेश कहे, अने कदाच अप्रदेश कहे, जेम के, कोइ पुद्गल एक प्रदेशमा रहनार अने एक समयनी स्थितिवाळु होवाथी कालनी अपेक्षाए अप्रदेश पण छे अने एवं ज कोइ बीजं पुद्गल एक प्रदेशमा रहेनारं पण अनेक समयनी स्थितिवाळु होवाथी काळनी अपेक्षाए सप्रेदश पग छे. [ ' भावओ भयणाए ' त्ति ] जे पुद्गल क्षेत्रवी अप्रदेश छे ते जो एकगुग श्यामादि होय तो भावथी पण अप्रदेश छे अने अनेकगुण श्यामादि होय तो क्षेत्रथी अपदेश पुद्गल पण भावथी सप्रदेश छे. हवे कालनी अपेक्षाए काली माती अने भावनी अपेक्षाए अप्रदेश पुद्गलने निरूपता कहे छ के, [ 'जहा खेत्तओ, एवं कालओ, भावओ' ति ] जेम क्षेत्रथी पटेल अप्रदेश पुद्गल कयूं तेम ए, कालथी अने भावथी कहे. जेमके, जे पुद्गल कालथी अप्रदेश होय ते पुद्गल द्रव्यथी कदाच सप्रदेश पण होय अने अप्रदेश पण होय.' ए प्रमाणे क्षेत्रथी अने भावथी जाणवू. तथा 'जे पुद्गल भावथी अप्रदेश होय ते द्रव्यथी कदाच सप्रदेश होय अने कदाच अप्रदेश होय. ' ए प्रमाणे क्षेत्रथी अने काळथी जाणवं. अत्यार सुधी अप्रदेश पुद्गल विषे निरूपण कयु, हवे सप्रदेश पुद्गलने निरूपवा कहे छः- [जे दब्बो सप्पएसे' इत्यादि. ] एनो आ अर्थ छः-जे पुद्गल, द्वयणुकादिपणाने लीधे द्रव्यथी सप्रदेश छे ते पुद्गल क्षेत्रथी कदाच सप्रदेश होय अने कदाच अपदेश पण होय--जो बे प्रदेशमा रहेनारुं होय तो सप्रदेश होय अने एक प्रदेशमा रहेनारुं होय तो अप्रदेश होय. ए प्रमाणे काळथी अने भावथी पण जाणवु. वळी, बे विगेरे प्रदेशमा रहेनाएं होवाथी जे पुद्गल क्षेत्रथी सप्रदेश छे ते द्रव्यथी सप्रदेश ज होय, कारण के, जे पुद्गल द्रव्यथी अप्रदेश होय ते पुदगल, बे वगेरे प्रदेशमा रही ज न शके, अने कालथी तथा भावथी ए पुद्गल द्विघा--बन्ने प्रकारे--पण होय; तथा जे पुद्गल कालथी सप्रदेश छे ते पुद्गल द्रव्यथी, क्षेत्रथी अने भावथी बन्ने प्रकारे पण होय, तथा जे पुद्गल भावथी सप्रदेश होय ते द्रव्यथी, क्षेत्रथी अने काळथी पण बन्ने प्रकारे होय--ए प्रमाणे सप्रदेशसूत्रोनो भावार्थ छे. हवे द्रव्यादिनी अपेक्षाए ए सप्रदेश--अप्रदेश पुद्गलोने लगती अल्प--बहुता विषेना विभागने दर्शावता कहे छ:-[ ' एएसि णं' इत्यादि.] ए मूळपाठ सूत्र , सिद्ध छे-स्पष्टार्थ छे, विशेष ए के, आ अल्प-बहुपणाना विचार माटे वृद्धोए कहलो गाथानो विस्तार अहिं कहीए छीए:--" द्रव्यथी, क्षेत्रथी, वृद्धो. कालथी, अने भावथी पण अप्रदेश अने सप्रदेश पुद्गलोनू अल्पत्व अने बहुत्व संक्षाथी कहीश" परमाणु, द्रव्यथी अप्रदेश छे, एक प्रदेशमा रहेनार पुद्गल, क्षेत्रथी अप्रदेश छे, एक समयनी स्थितिवाडं पुद्गल, कालयी अप्रदेश छे अने “ एकगुण कोइ पण वर्णवाळु-एकगणुं कालु या घोळ या पीळ वगरे वर्णवाढं-पुद्गल भावथी अप्रदेश छे" वण्णाई ' एटले वर्णादिवडे " अने ते.ज पुद्गलो-भावथी अप्रदेश पुद्गलो-सौथी १. प्र० छा:-ते चैव च ते चतुर्भि पि यदुपचर्यन्ते पुद्गला द्विविधाः, तेन तु वृद्धिानिस्तेषां अन्योन्यसंसिद्धा. २. एतेषां राशीनां निदर्शनमिदं भणामि प्रत्यक्षम् , बुद्धया (वृद्धया) सर्वपुद्गला यावन्तस्तावतां लक्षाणि. ३. एकं च द्वे च पञ्च च दश च सहस्र.णि, 'अबदेशानां भावादीनां क्रमशश्चतुर्णामपि यथोपदिष्टानाम् . ४. नवतिः पञ्चनवतिः अष्टानवतिः तथैव नवनवतिः, एतावन्ति सहस्राणि सप्रदेशानां विपरीतम् . ५. एतेषां यथा..संभवम्-अर्थोपनयं कुर्याद राशीनाम् , सद्भावतश्च जानीयात् तान् अनन्तान् जिनाभिहितान-इतिः-अनु. 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SR No.004641
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherJinagama Prakashan Sabha
Publication Year
Total Pages358
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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