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श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे
शतक ५.-उद्देशक ७.
त्ति अहेतुना उपक्रमाऽभावेन केवलिमरणं म्रियते, केवलिनो निहेतुकस्यैव तस्य भावाद्-इति, अहेतून् एव प्रकारान्तरेणाऽऽह:'पंच अहेऊ' इत्यादि. अहेतवः अहेतुव्यवहारिणः, ते च पञ्च ज्ञानादिभेदात् . तद्यथाः- अहेउं न जाणइ ' ति अहेतुं न हेतुभावेन स्वस्याऽनुमानाऽनुत्थापकतया इत्यर्थः, न जानाति न सर्वथाऽवगच्छंति-कथञ्चिद् एवाऽवगच्छति इत्यर्थः-नो देशप्रतिषेधार्थत्वात , ज्ञातश्चाऽवध्यादिज्ञानत्वात् कथञ्चिद् ज्ञानम् उक्तम् , सर्वथा ज्ञानं तु केवलिन एव स्याद् इति. एवम् अन्यान्यपि. तथा 'छउमत्थमरणं मरह' त्ति अहेतुम् अध्यवसानादेरुपक्रमकारणस्याऽभावात् छद्मस्थमरणम् अकेवलित्वात् , नतु अज्ञानमरणम् , अवध्यादिज्ञानित्वेन ज्ञानित्वात् तस्येति. अहेतून् एवाऽन्यथाऽऽह:-'पंच' इत्यादि तथैव, नवरम्:-अहेतुना हेत्वभावेन न जानाति, कथञ्चिदेव अध्यवस्यति-इति गमनिकामात्रम् एवेदम् . अष्टानामप्येषां सूत्राणां भावार्थं तु बहुश्रुता विदन्ति इति.
भगवत्सुधर्मस्वामिप्रणीते श्रीभगवतीसूत्रे पश्चमशते सप्तम उद्देश के श्रीअभयदेवसूरिविरचितं विवरणं समाप्तम्.
१०. छद्मस्थपणाने लइने हेतुना व्यवहार करनाग होवाथी, ए बधा नैरयिक वगेरे जीवो ( पण ) हेतुओ कहेवाय, माटे हवे हेतुना भेदोने निरूपता [ 'पंच हेऊ'] इत्यादि सूत्र कहे छ, अहीं-आ सूत्रोमां, हेतुना उपयोग-ज्ञान-थी अभिन्न होवाथी, हेतुओमां वर्ततो पुरुष पण हेतु ज कहेवाय, अने क्रियानी जुदाइ होवाथी ए हेतु पांच प्रकारना छे माटे कहे छः--[ ' हे जागइ ' ति] साधना निश्चय माटे, साध्याविनाभूत-साध्यनी विना नहि रहेता-थता-साध्य साथे ज रहेनार हेतुने विशेषथी सारी रीते जाणे छे, सम्यग्दृष्टिपणुं होवाथी, आ पांचे प्रकारनो हेत पण सम्यग्दृष्टि मानवो, कारण के, बे सूत्र पछी मिथ्यादृष्टि हेतु कहेवाशे-ए एक हेतु थयो. ए प्रमाणे, सामान्यपणे अवबोध होबाथी हेतुने जए छे, ए बीजो हेतु थयो. ए प्रमाणे हेतुने सारी रीते बोधे छे-सदहे छे, कारण के 'बुध ' धातु सम्यक्श्रद्धानो पर्याय-समानार्थ-छे, ए बीजो देत थयो. तथा साध्यनी सिद्धिमा वापरवाथी हेतुने सारी रीते प्राप्त करे छे, ए चोथो हेतु थयो. तथा [ ' हेउं छउमत्थ-' इत्यादि.] हेतु एटले मरणना कारणरूप अध्यवसाय वगेरे, मरणनो, हेतु साथे संबंध होवाथी मरण पण हेतु कहेवाय, माटे ते हेतुने एटले हेतुवाळा छमस्थ मरणने रेले अहेतुक होवाथी, केवलिमरण अहीं न ले, तेम आ हेतु सम्यग्ज्ञानी होवाथी अने अशन मरण आगळ कहेवामां आवशे माटे अज्ञान मरण पण न लेवू-ए पांचमो हेतु थयो. बीजे प्रकारे हेतुओने ज कहे छे:----[ 'पंच' इत्यादि. ] अनुमानना उत्पन्न करनार हेतुबडे अनुमयवस्तुने सम्यग्दृष्टि होवाथी सारी रीते जाणे छे, ए एक. ए प्रमाणे जुए छे, ए बीजो. ए प्रमाणे बोधे छे एटले श्रद्दधे छे-ए बीजो. ए प्रमाणे सारी रीते प्राप्त करे छ, ए चोथो तथा अफेवली होवाथी अध्यवसायादिरूप हेतुर छमस्थ मरण करे छे-ए पांचमो. हो मिथ्याटिने आश्रीने हेतुओने कहे छ:--'पंच' इत्यादि ] हेतुनो व्यवहारी होवाथी जीव पण हेतु कहेवाय, क्रियानो भेद होवाथी ए हेतु पांच छे, तेमां- मिथ्यादृष्टिपणाथी हेतुने नधी जाणतो एटले नञ् ' कुत्सार्थवाळो होवाथी असम्यक् प्रकारे हेतुने जाणे छे-ए एक. ए प्रमाणे नथी जोतो २. ए प्रमाणे, श्रद्धा नथी करतो ३. ए प्रमाणे प्राप्त नथी करतो ४. तथा मिथ्यादृष्टिपणाने लीधे असम्यग् ज्ञानी होवाथी अध्यवसानादि हेतु सहित अज्ञान मरण करे छे ५. बीजी रीते हेतओने ज कहे छ:---[ 'पंच' इत्यादि. ] हेतु एटले निशान-ते वडे-हेतु बडे-सम्यक् प्रकारे जाणतो नथी, ए एक अने ए प्रमाणे बीजा पण चार हेतुओ समजवा. हवे कहेला हेतुओथी विपक्षभूत हेतुओने कहे छे:--[ 'पंच' इत्यादि.] केवलज्ञानिओने सघळु प्रत्यक्ष होय छेमाटे तेवा प्रत्यक्ष ज्ञान धरावता केवलज्ञानिओने कांइ पण जोवा के जाणवा कोइ हेतु-निशान-नी जरूर रहेती नथी तेथी तेओ (केवळज्ञानिओ) अहेतु-हेतुनी जरूर विनाना-कहेवाय छे अर्थात् प्रत्यक्ष ज्ञानिपणाने लीधे हेतुना व्यवहारी न होबाथी केवलज्ञानिओ अहेतु कहेवाय छे. अने क्रियानो भेद होवाथी ते पांच छे. ते जेम के, [ ' अहेउं जाणइ ' ति ] सर्वज्ञपणाने लीधे अनुमाननी जरूर न होवाथी धूमादिक पदार्थोने अहेतु ममजे छे-अग्निने जाणवा माटे तेओने (धूमादिने) हेतुभावे जाणता नथी, कारण के, सर्वज्ञने पोताने अनुमान करवापणुं होतुं नथी तेथी धूमादिक पदार्थो तेना कोठामा कोइ जातर्नु अनुमान करावी शकता नथी माटे ज ते धूमादिक हेतुनी अपेक्षा विनाना सर्वज्ञ · अहेतु ' कहेवायं. ए प्रमाणे । जुए छे' वगरे त्रण अहेतुओ जाणवा. तेम ज अनुपक्रमी एटले कोइ निमित्तथी मार्या न मरे तेवा होवाथी अहेतुक केवलिमरण करे छे-ए पांचमो अहेतु समजवो. बीजे प्रकारे अहेतुओने ज कहे छ:--[पंच ' इत्यादि.] तेम ज एटले पूर्वनी पेठे जाणवं. विशेष ए के, केवली होवाथी, हेतु न होय तो पण वस्तुने जाणे ए अहेतु ज कहेवाय, ए प्रमाणे ' जूए छे' इत्यादि ३ क्रिया पण जाणी लेवी. [अहेउणा केवलिमरणं मरइ 'त्ति ] उपक्रम न होवाथी केवलिमरण करे छे, कारण के, केवलिनु मरण निर्हेतुक होय छे. बीजे प्रकारे अहेतुओने ज कहे छः-पंच अहेऊ' इत्यादि. अहेतुना व्यवहारी जीव पण अहेतु कहेवाय, ज्ञानादिनो. जाणवू वगेरे क्रियाओनो-भेद होवाथी ते अहेतु पांच छे. ते जमके, [' अहेउं न जाणइ ' त्ति ] धूमादि पदार्थो अनुमानना प्रादुर्भावक ज छे-एवो एकान्त न होबाथी तेओने सर्वथा अहेतुभावे जाणता नथी पण कथंचित् ज जाणे छे, कारण/के, अहिं 'नन्, ' अल्प-निषेध-अर्थवाळो छे अने जाणनार अवधि वगेरे ज्ञानवाळो होवाथी तेने सर्वथा ज्ञान नथी कयुं पण कथंचिद् ज्ञान कयुं छे, सर्वधा ज्ञान तो केवलिने ज होय छे, एम बीजा पण प्रण जाणी लेवा. तथा [ ' अहेडं छउमत्थमरणं मरइ ' त्ति ] अध्यवसान वगेरे उपक्रम कारण न होबाथी अहेतु मरण अने ते ज मरण केवलिपणुं न होवाथी छनस्थ मरण कहेवाय,
पण अवधि वगरे ज्ञान हे वाथी तेना ज्ञानिपणाने लीधे अज्ञानमरण न वहेवाय. अन्यथा-बीजे प्रकारे-अहेतुओने ज कहे छ:-['पंच' इत्यादि.] तो अक्षार्थ छे
बधं तेम ज-पूर्वनी पेठे-जाणवू. विशेष ए के, अहेतुए कथंचित् ज जाणे छे. आ अहीं जणायेली टीका तो मात्र गमनिका- अक्षरार्थरूप-ज छे. वार्थ तो बहु वसो
अने आ आठे सूत्रोनो भावार्थ तो बहुश्रुतो ज जाणे छे. जाणे.
बेडारूपः समुद्रेऽखिलजलचरिते क्षारभारे भवेऽस्मिन् दायी. यः सद्गुणानां परकृतिकरणाद्वैतजीवी तपस्वी । अस्माकं वीरवीरोऽनुगतनरवरो वाहको दान्ति-शान्त्योः दद्यात् श्रीवीरदेवः सकल शिवसुखं मारहा चाप्तमुख्यः ।।
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