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________________ शतक ५.-उद्देशक ६. भगवत्सुधर्मस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र. २१७ परमाणुपुद्गलादिनी परस्पर स्पर्शना. १३. प्र०-परमाणुपोग्गले गं भंते ! परमाणुपोग्गलं फुस- १३. प्र०-हे भगवन् ! परमाणु-पुद्गलने स्पर्श करतो माणे किं देसेणं देसं फुसइ १, देसेणं देसे फुसइ २, देसेणं सव्वं परमाणु पुद्गल, शु एक भागवडे एक भागनो स्पर्श करे १, एक कुसइ ३, देसेहि देसं फुसइ, ४ देसेहिं देसे फुसइ ५, देसेहिं भागवडे घणा भागोनो स्पर्श करे २, एक भागवडे सर्वनो स्पर्श -सव्वं फुसइ ६, सव्वेणं देसं फुसइ ७, सवेणं देसे फुसइ ८, करे ३, घणा भागो द्वारा एक देशने स्पर्शे १, धण। देशो द्वारा सव्यणं सव्वं फुसइ ९? घणा देशोने स्पर्शे ५, घगा देशोद्वारा सर्वने स्पर्श ६, सर्ववडे एक भागने स्पर्शे ७, सर्ववडे घणा भागोने स्पर्शे ८, के सर्वडे सर्वने स्पशै९? १३. उ०-गोयमा ! णो देसेणं देसं फुसइ, णो देसेणं १३. ३०-हे गौतम!.१ एक देशथी एक देशने न स्पर्श, देसे फसइ २. णो देसेणं सब्बं फुसइ ३. णो देसेहिं देसं फुसइ २ एक देशथी घणा देशोने न स्पर्शे, ३ एक देशथी सर्वने न ४. नो देसेहि देसे फुसह ५. नो देसेहिं सव्वं फुसइ ६. नो स्पर्श, ४ घणा देशोथी एकने, न परों, ५ घगा देशोथी घगा सव्वणं देसं फुसइ ७, णो सब्वेणं देसे फुसइ ८. सव्वेणं सव्वं देशोने न स्पर्श, ६ घणा देशोथी सर्वने न सर्रा, ७ सर्वथी एक फुसइ ९. एवं परमाणुपोग्गले दुप्पएसियं फुसमाणे सत्तम-णव- देशने न स्पर्श, ८ सर्वथी घगा दशोने न स्पर्श, ९ पण सर्वथी मेहिं फुसइ, परमाणुपोग्गले तिप्पएसियं फुसमाणे निपच्छिमएहिं सर्वने स्पर्श, ए प्रमाणे वे प्रदेशवाळा स्कंधने स्पर्शतो परमाणु-. तिहिं फुसई, जहा परमाणुपोग्गले तिप्पएसियं फुसाविओ एवं पुद्गल सातमा अने नवमा विकल्प वडे स्पर्शे एटले ७ सर्व वडे फुसावेअव्यो जाव-अणंतपएसिओ. एक भागने स्पर्शे यातो ९ सर्व वडे सर्वने स्पर्शे. बळी, त्रण प्रदेश वाळा स्कंधने स्पर्शतो परमाणु-पुद्गल छेल्ला त्रण-७ ना, ८ मा अने नवमा विकल्पवडे स्पर्शे एटले ७ सर्वथी एक देशने स्पर्श, ८ सर्वथी घणा भागोने स्पर्श अने ९ सर्वथी सबने स्पर्श. जे प्रकारे त्रण प्रदेशवाळा स्कंधने परमाणु पुद्गलनो स्पर्श कराव्यो ते प्रकारे चार प्रदेशवाळा, पांच प्रदेशवाळा यावत्-अनंत प्रदेशवाळा स्कंधनी साथे परमाणु-पुद्गलनो स्पर्श कराववो. .... १४. प्र०-दुप्पएसिए णं भंते ! खंधे परमाणुपोग्गलं फुस- १४. प्र०- हे भगवन् ! परमाणुपुद्गलने स्पर्शतो बे प्रदेशमाणे पुच्छा ! वाळो स्कंध केवी रीते स्पर्शे ? ए प्रश्न करवो. १४. उ०-ततिय-नवमेहिं फुसइ, दुप्पएसिओ दुप्पएसियं १४. उ०-(हे गौतम ! ) त्रीजा अने नवमा विकल्प वडे फुसमाणो पढम-ततिय-सत्तम-नवमेहिं फुसइ, दुप्पएसिओ तिप्प- स्पर्श. एवी रीते बे प्रदेशवाळा स्कंधने स्पर्शतो द्विप्रदेशिकस्कंध एसियं फुसमाणो आइल्लएहि य, पच्छिलएहि य तिहिं फुसइ, प्रथम, तृतीय, सप्तम अने नवमा विकल्प वडे स्पर्शे; त्रण प्रदेशमज्झिमएहिं तिहिं विपडिसेहेयव्वं, दुप्पएसिओ जहा तिप्पएसियं वाळा स्कंधने स्पर्शतो द्विप्रदेशिकस्कंध पेला त्रण विकल्पो वडे फुसाविओ एवं फुसावेअव्यो जाव-अणंतपएसियं. अने छेल्ला त्रण विकल्पो वडे स्पर्श अने वचला त्रणे पण विकल्पो वडे प्रतिषेध करवो, जेम द्विप्रदेशिकस्कंधने त्रण प्रदेशवाळा स्कंधनी स्पर्शना करावी ए प्रमाणे चार प्रदेशवाळा, पांच प्रदेश वाळा यावत्-अनंत प्रदेशवाळा स्कंधनी स्पर्शना कराववी. १५. प्र०—तिपएसिए णं भंते । बंधे परमाणुपोग्गलं फुस- १५. प्र०—हे भगवन् ! परमाणुपुद्गलने स्पर्श करतो त्रण माणे पुच्छा। प्रदेशवाळो स्कंध केवी रीते स्पर्श ? ए प्रश्न करवो. १. मूलच्छायाः-परमाणु युद्गलो भगवन् । परमाणुपुद्गल स्पृतमानः किं देशेन देश स्पृशंति, देशेन देशान् स्पृशति, देशेन सर्व स्पृशति, देशः देशं स्पृशति, देशः देशान् स्पृशति, देशैः सर्व स्मृति; सर्वेण देश स्पृशति, सर्वेण देशान् स्पृशति, सर्वेण सर्व स्पृशति ? गौतम ! नो देशेन देश स्पृशति, नो देशेन देशान् स्पृशति, नो देशेन सर्व स्पृशति; नो देशैः देश स्पृशति, नो देशैः देश न् स्पृशति, नो देशैः सर्व स्पृशति; नो सर्वेण देशं स्पृशति, नो सर्वेण देशान् स्पृशति, सर्वेण सर्व स्पृशति; एवं परमाणुपुद्रलो द्विप्रदेशिक स्पृशमानः सप्तम-नवमाभ्यां शति, परमाणुपुद्गलो. त्रिप्रदेशिक स्पृशमानो निपश्चिमखिभिः शति, यथा परमाणुपुद्गलस्त्रिप्रदेशिक सर्शितः एवं सशयितव्यो यावत्-अनन्तप्रदेशिकः. द्विप्रदेशिको भगवन् ! स्कन्धः परमाणुपुद्गलं स्पृशमानः पृच्छा? तृतीय-नवमाभ्यां शति, विप्रदेशिको द्विप्रदेशिक :स्पृशमान:- प्रथम-तृतीय-सप्तम-नवमैः स्पृशति, द्विप्रदेशिकत्रिप्रदेशिकं स्पृशमानः आद्यैश्च, पश्चिमैश्च त्रिमिः स्पृशति. मध्यमैत्रिभिः विप्रतिषेधयितव्यम् , द्विप्रदेशिको यथा त्रिप्रदेशिकं स्पर्शितः, एवं स्पर्शयितव्यः, यावत्-अनन्तप्रदेशिकम्. त्रिप्रदेशिको भगवन् । स्कन्धः परमाणुपुलं स्पृशमानः पृच्छा:-अनु० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004641
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherJinagama Prakashan Sabha
Publication Year
Total Pages358
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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