________________
२१६
त.
atreचन्द्र-जिनागमसंग्रहे
९. प्र० -- परमाणुपोग्गले णं भंते ! किं सअड्डे, समझे, सपएसे; उदाहु अणड्डे, अमज्झे, अपएसे !
परमाणुपुद्गलादिना विभागो.
९. उ०- - गोयमा ! अण्डे, अमज्झे, अपएसे; नो सअड्डे, नो समझे, नो सपएसे.
१०. प्र० -- दुम्पएसिए णं भंते ! खंधे किं सअड्डे, समज्झे, सपएसे; उदाहु अणडे, अमज्झे, अपए से !
११. प्र० - तिप्पएसिए णं भंते ! खंधे
१०. उ०—- गोयमा ! सअड्डे, अमज्झें, सपएसे, णो अण्डे, जो समझे, जो अपर से.
'पुच्छा !
११. उ०- गोयमा ! अणडे, समज्झे, सपएसे; नो सअड्डे, जो अमझे, णो अपएसे, जहा दुप्पएसिओ वहा जे समातें भांणियव्वा, जे विसमा ते जहा तिप्पएसिओ तहा भाणियव्वा
१२. प्र० - संखेजपएसिए णं भते । किं खं सभंडे, पुच्छा ?
१२. उ०- गोयमा ! सिय सअड्डे, अमज्झे, सपएसे; सिय अणड्डे, समज्झे, सपएसे; जहा संखेजपएसओ तहा असंखेजएसओ वि, अणतपएसओ वि.
Jain Education International
शतक ५. - उद्देशक ७.
९. प्र० - हे भगवन् ! शुं परमाणु पुद्गल, सार्ध - अर्ध सहित छे, मध्य सहित छे अने प्रदेश सहित छे के अर्ध रहित छे, मध्य रहित छे अने प्रदेश रहित के ?
९. उ०- हे गौतम ! परमाणु पुद्गल अन के अमध्य के अने अप्रदेश छे पण सार्ध नथी, समध्य नथी भने सप्रदेश नथी.
१०. प्र०—हें भगवन् ! बे प्रदेशवाळों स्कंध, शुं सार्ध, समध्य अने सप्रदेश छे के अनर्ध, अमध्य अने अप्रदेश हैं ?
१०. उ० - हे गौतम ! ते बे प्रदेशवाळो स्कंध, सार्ध छे, सप्रदेश अने मध्य रहित छे पण अनर्ध नथी, समध्य नथी अने अप्रदेश नथी.
११. प्र० - हे भगवन् ! त्रण प्रदेशवाळो स्कंध - ( ए विषे ) ए प्रमाणे प्रश्न करवो.
११. उ०- हे गौतम! ते त्रण प्रदेशवाळो स्कंध अनर्ध छे, समध्य छे अने सप्रदेश छे पण सार्ध नथी, अमध्य नधी अने अप्रदेश नथी. जेम, बे प्रदेशवाळा स्कंधने माटे सार्धादि विभाग दर्शाव्यो छे, तेम जेओ सम स्कंधो छे एटले समसंख्यावाळा - बेकी संख्यावाळा ( चार प्रदेशवाळा, आठ प्रदेशवाळा इत्यादि ) स्कंधो छे, तेने माटे जाणी लेवुं अने जेओ विषम स्कंधो छे- एकी संख्यावाळा ( पांच प्रदेशवाळा, सात प्रदेशवाळा इत्यादि ) स्कंधो छेतेने माटे, जेम ऋण प्रदेशवाळा स्कंध संबंधे कह्युं तेम जाणवुं.
१२. प्र० - हे भगवन् ! संख्येयप्रदेशवाळो स्कंध शुं सार्व छे ? ( इत्यादि प्रश्न करवो. ]
१२. उ०- हे गौतम! कदाच सार्ध होय, अमध्य होय अने सप्रदेश होय; कदाचं अनर्थ होय, समध्य होय अने सप्रदेश होय. जेम संख्येय प्रदेशवाळो स्कंध कह्यो तेम असंख्येय प्रदेशवाळो स्कंध भने अनंत प्रदेशवाळो स्कंध पण जाणी लेवो.
३. ' दुप्पएसिए' इत्यादि. यस्य स्कन्धस्य समाः प्रदेशाः स सार्घः, यस्य तु विषमाः स समभ्यः, संख्यैयप्रदेशिका दिस्तु स्कन्धः समप्रदेशिकः — इतरश्वः तत्र यः समप्रदेशिकः स सार्धोऽमेध्यः, इतरस्तु विपरीत इति.
३. [ ' दुप्पएसिए' इत्यादि. ] जे स्कंधना समसंख्यावाळा - बेकी संख्यावाळा-बे, चार छ, आठ, इत्यादि सख्यावाळा- प्रदेशो होय संख्या-अर्थ- ते स्कंध सार्ध- अर्ध सहित - कद्देवाय अने जे स्कंधना विषमसंख्यावाळा-एकी संख्यावाळा-त्रण, पांच, सात, इत्यादि संख्यावाळा- प्रदेश होय ते स्कंध समध्य-मध्यभाग सहित - कहेवाय. संख्येयप्रदेशवाळो, असंख्येयप्रदेशवाळो, अने अनंतप्रदेशवाळो स्कंध, समप्रदेशिक- समप्रदेशवाळो |संख्या-मध्य- अने विषमप्रदेशवाळो पण होय; तेमां जे समप्रदेशवाळो होय ते सार्ध छ अने अमध्य-मध्यरहित छे अने जे विषमप्रदेशवाळो होय ते समय छे
त.
अने अर्ध- अर्धभाग रहित छे.
१. मूलच्छायाः - परमाणुपुङ्गलो भगवन् ! किं सार्धः, समध्यः, सप्रदेशः; उताहो अनर्धः, अमध्यः, अप्रदेशः ! गौतम ! अनर्धः, अमध्यः, अप्रदेशः; नो सार्धः, नो समध्यः, नो सप्रदेशः द्विप्रदेशिकः स्कन्धः किं सार्धः, संमध्यः, सप्रदेशः; उतादो अनर्धः, अमध्यः, अप्रदेशः ! गौतम 1 'सार्धः, अमध्यः सप्रदेशः; नो अनर्घः, नो समध्यः, नो अप्रदेश: त्रिप्रदेशिको भगवन् ! स्कन्धः पृच्छा ? गौतम ! अनर्धः, समध्यः सप्रदेशः; नो सार्धः, नो अमध्यः, नो अप्रदेशः, यथा द्विप्रदेशिकस्तथा ये समास्ते भणितव्याः, ये विषमास्ते यथा त्रिप्रदेशिकस्तथा भणितव्याः. संख्येयप्रदेशिको शुगवन् ! स्कन्धः किं सार्थः, पृच्छा ? गौतम ! स्यात् स अर्धः, अमध्यः, समदेशः स्याद् अनर्धः, समध्यः, संप्रदेशः, यथा संख्येयप्रदेशिकस्तता संध्येय प्रदेशिकोऽपि, अनन्तप्रदेशिकोऽपिः
लु०
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org.