SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 213
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शप्तक ५.--उदेशक ६. भगवत्सुधर्मस्वामिप्रणीत भगक्तीसूत्र. २०३ खिंसन एटले लोकसमक्ष निंदा करवी, गहण एटले तेनी सामे निंदा करवी, अपमानन एटले अभ्युत्थान ' वगेरे न कर, ए प्रमाणे एमांना कोइ एक कारणथी. स्वरूाथी जे सारं नहिं ते अमनोज-खराब अन्नादि-ते बडे, माटे ज अप्रीति कारकवडे, भक्तिवाळा श्रमणो पासकनु कदन्न--खराब अन्न-पण मनोज्ञ-शुभ फळदायक-होबाथी गनोज्ञ-सुंदर-ज छे, अहीं आ सूत्रमा अशनादिने 'प्रासुक के अप्रासुक' ए कदन. प्रकारे विशेषित नथी कयु, कारण के, मुनिनी हीउना वगरे करनारना प्रासुक वगेरे विशेषणवाळा दानने फल विशेष प्रति अकारणपणे अने मत्सरथी उत्पन्न थयेला हीलनादि विशेषणोने ज मुख्यपणे अशुभ लांबा आयुष्यना कारणपणे विवक्षित कर्या छे. बीजी वाचनामां तो [ 'अफासुएणं बीजी वाचना. इत्यादि ] ' अशन ' विगेरेना ' अने रणीय अने अपातुक' एवां वे विशेषणो देखाय छे, तेमा जे ते विशेषणो आन्यां छे ते 'प्रासुक दान पण हीलनादिथी विशेषित होय तो अशुभ दीर्घ आयुष्यन कारण छे अने ते अनालुदान तो विशेषे करी अशुभ दीर्घ आयुष्यनु निदान--कारण-छे! एम दर्शाववा शास्त्र कारे मूक्यां छे. प्राणातिपातने अने मृराबादने दानविशेषणपशj व्याख्यान पण घटे ज छे, कारग के, अवज्ञा करीने दान देवामां पण प्राणातिपातादि क्रियाओ देखाय छे अने प्रागातिपात वगेरे नैरयिक गतिमां हेतु होपाथी तेनायी अशुभ दीर्घ आयुष्य थई शके छे, कधुं छे जे "पापमा मतियाळो, रौद्र परिणामधाळो, महारंभ परिग्रहवाळो, तीन लोभवाळो, शीलविनानो अने मिथ्यादृष्टे जीव नैरयिकर्नु आयुष्य बांधे छे" विवक्षावडे नैरयिक गतिमा लांबु ज आयुष्य होय छे. विपर्यय सूत्र पूर्वनी पठे जाणवू, विशेष ए के, अहीं पण दानने 'प्रासुक अने अप्रासुक' ए प्रमाणे विशेषित कयु नथी, कारण के, आ सूत्र पूर्व सूत्र करतां विपरीत छे तथा आ सूत्र अने पूर्व सूत्र अविशेषणपणे प्रवृत्त के. आथी एम न समजवू के प्रासुकदानना अने अप्रासुकदानना फलमा कांइ विशेष नथी, कारण के. पूर्वना बन्ने सूत्रमा ते फल विशेषने प्रतिपादित कों छे, माटे अहीं प्रासुक अने एषणीय दानथी देवलोकनी प्राप्ति थाय छे तो तेथी विपरीत--बीजा-दानथी आ पळ -अशुभ दीर्घायुष्य-नरकरूप फळ थाय छे तेम जाणवू, बीजी वाचनामां तो 'प्रासुक' वगेरे विशेषणो देखाय ज छे. अहीं पहेलं अल्पायु- सूत्र छे बीजं तेना विपक्षन- बीजी वाचना. दीर्घ आयुष्यनु-सूत्र छ, त्रीजु अशुभ दीर्घ आयुष्यनुं सूत्र छे अने चोथु तेना विपक्षनु-शुभ दीर्घआयुष्य---सूत्र छ. गृहपति अने भांड. ५. प्र०-गाहावइस्स णं भंते ! भंडं विकिणमाणस्स केइ ५. प्र०-हे भगवन् ! करियाणानो विक्रय-वेचाण-करता भंडं अपहरेजा, तस्स णं भंते ! तं भंडं गवेसमागस्स किं आरं. कोइ गृहस्थर्नु कोइ माणस ते करिया' चोरी जाय तो हे भिया किरिया कज्जइ, परिग्गहिया, मायावत्तिया, अपचरखाण- भगवन् ! ते करियाणानु गवेषण करनार ते गृहस्थने शु आरंभिकी किरिया, मिच्छादसणवत्तिया ? क्रिया लागे के परिग्रहिकी क्रिया लागे के मायाप्रत्ययिकी क्रिया लागे के अप्रत्याख्यानिकी क्रिया लागे के मिथ्यादर्शनप्रत्ययिकी क्रिया लागे? ५. उ०-गोयमा ! आरंभिया किरिया कज्जइ, परिग्ग- ५. उ०-हे गौतम! आरंभिकी, परिग्रहिकी, मायाप्रत्ययिकी हिया, मायावत्तिया, अपञ्चवखाणकिरिया मिच्छादसण किरिया अने अप्रत्याख्यानिकी क्रिया लागे अने मिथ्यादर्शनप्रत्ययिकी सिय कन्जइ, सिय नो कज्जइ; अह से भंडे अभिसमन्नागए भवइ, क्रिया कदाच लागे अने कदाच न लागे अने हवे गवेपण करता तओ से य पच्छा सव्वाओ ताओ पयणईभवंति. ज्यारे ते चोराएल करियाणुं पार्छ मळी आवे त्यार पछी ते बधी क्रियाओ प्रतनु थइ जाय छे. ६. प्र०-गाहापइस्स णं भी ! भंडं विकिणमाणस्त कइए ६. प्र०--हे भगवन् ! करियाणाने वेचता गृहस्थy भांड-- भंडे साइजेजा, भंडे य से अणुवणीए सिया, गाहावइस्स णं करियाणु, करिया' खरीद करनारे खरीद्यु-तेने माटे सत्यंकारभंते ! ताओ भंडाओ कि आरंभिया किरिया कज्जइ, जाव-मि- खात्री-बार्नु आप्युं पण हजु ते करियाणु अनुपनीत छे-लइ च्छादसणकिरिया कज्जह, कइयस्स चा ताओ भंडाओ, कि आरं- जवायु नथी अर्थात् ते वेचनारने त्यां.छे, तो ते वेचनार गृहपतिने भिया किरिया कज्जइ, जाव-मिच्छादंराणकिरिया कज्जइ ? ते करियाणाथी शुं आरंभिकी यावत् मिथ्यादर्शनप्रत्ययिकी क्रिया लागे?, अने ते खरीदनारने ते करियाणाथी शं आरंभिकी यावत्- मिथ्यादर्शनप्रत्ययिकी क्रिया लागे ?? ६. उ०-गोयमा ! गाहावइस्स ताओ मंडाओ आरंभिया ६. उ०—हे गौतम! ते गृहपतिने ते भांड-करियाणा-थी 'किरिया कज्जइ, जाव- अपचक्खाण ०-मिच्छादसणवत्तिया किरिया आरंभिकी यावत्-अप्रत्याख्यानिकी क्रिया लागे, अने मिथ्या १. मूलच्छाया:-गृहपतेभंगवन् । भाण्ड विक्रीणानस्य कोऽपि भाण्डम् अपहरेत् , तस्य भगवन् ! तदू भाण्डं गवेषयतः किम् आरम्भिकी त्रिय क्रियते, पारिप्रहिकी, मायाप्रत्यया, अप्रयाख्यानक्रिया, मिथ्याद निप्रत्यया ? गीतम! आरम्भिकी किया क्रियते, पारिवाहिकी, मायाप्रत्यया, अप्रत्याख्यानक्रिया, मिथ्यादर्शन क्रिया स्यात् क्रियते, स्याद् नो क्रियते. अतिदू भाण्डम् अभिसमन्वागतं भवति, ततस्तस्य च पश्चात् सीः ता: प्रतनुकीभवन्ति. गृहपतेभगवन् ! भाण्ड विक्रीणानस्य करिको भाडाने खादयेद् , भाण्डानि च तस्य अनुपनीतानि स्युः, गृहपतेर्भगवन् ! तेभ्यो भाण्डेभ्यः किम् आरम्भिकी -कियां क्रियते यावद् मिध्यादर्शन किया कियते ? काय कस्य वा तेभ्यो भाण्डेभ्यः किम् आरम्भिकी क्रिया क्रियते, यावद् मिथ्यादर्शनक्रिया क्रियते? मातम ! गृहपतेः वेभ्यो भाण्डेभ्यः आरम्गिकी किया क्रियते, यावद अप्रत्याख्यान-मिथ्यादर्शनप्रत्यया क्रिया:-अनु० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.004641
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherJinagama Prakashan Sabha
Publication Year
Total Pages358
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy