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शतक ५.-उद्देशक १.
भगवत्सुधर्मस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र, जाणवु अने रात्रीक्षेत्रनुं माप आगळ कहेल तापक्षेत्र जेटलं समजवू. आयाम-लंबाई-नी अपेक्षाए तो जंबूद्वीपनी बच्चे तापक्षेत्र ४५००० योजन तापक्षेत्रनामा छे अने लवग समुद्रनुं ताप क्षेत्र ३३३३३० योजन छे-ते बन्ने तापक्षेत्रना मापनो सरवाळो करता ७८३३११ योजन थाय छे. [ 'उक्कोसए अट्ठारसमुहु ते दिवसे भवइ ' त्ति ] सूर्यनां बधां मळीने १८४ मंडळ-मांडलां-छे. तेमां आ जंबूद्वीपनां सूर्यनां ६५ मंडळ छे अने बाकीनां ११९ मंडळ लवण समुद्रनी बच्चे छे. तेमां-ते मंडळोमां-सौथी अंदरनां मंडळमां ज्यारे सुर्यनी हाजरी होय त्यारे अढार मुहूर्त (१४ कलाक अने २४ मिनीट ) नो सौथी मोटो दिवस होय छे. ते केवी रीते ? तो कहे छे के, आगळ कह्या प्रमाणे सूर्यनां १८४ मंडळो छे अने तेमां ज्यारे सौथी दिवस अने रात्री बहारना मंडळमां सूर्य विराजतो होय त्यारे नानामां नानो-सौथी नानो-बार मुहूर्त (९ कलाक अने ३६ मिनीट) नो दिवस होय छे अने वघटनो हेतु. ज्यारे फरतो फरतो सूर्य सौथी अंदरना-१८३ मा-मंडळमां आवे छे त्यारे वधतो वधतो दिवस १८ मुहूर्त (१४ कलाक अने २४ मिनीट) नो थई जाय छे अर्थात् आ वखते दिवसना सौथी पहेलानां मापमां ४ कलाक अने ४८ मिनीटनो वधारो थयो छे. हवे आपणे गणित द्वारा समजी शकीर छीए के, पहेलेथी बीजे मांडले, बीजथी त्रीजे अने ए रीते छेवट १८३ में मांडले (बधां मांडलानी गणत्रीमा १८४ में मांडले ) ज्यारे सूर्य आव्यो त्यारे दिवसनी लंबाइमा पूर्व प्रमाणे फार फेर थाय छे तो प्रत्येक-पहलेथी बीजे-मांडले जता दिवसनी लंबाइमां शो भेद थतो हो ? तेनो उत्तर स्पष्ट छ के, प्रत्येक मंडळे जतां आगळना दिवसनी लंबाइ करतां १॥ मिनीट अने १० सेकंड दिवस वधे छे अने ए रीते
प्रत्येक मांडले वध्ये जाय छे अने ज्यारे सौथी अंदरने (१८३ में ) मांडले सूर्यदेव पधारे छे त्यारे दिवस वधीने १८ मुहूर्त-१४ कलाक अने २४ मिनीट-नो थाय छे-छेल्ले मांडले सूर्यराजनी पधरामणी थतां दिवस पोताना सोथी नाना मार करतां ४ कलाक अने ४८ मिनीट जेटलो वधी जाय छे. जेने आपणे १॥ मिनीट अने 1 सेकंड कहीर छीए तेने ज शास्त्रनी परिभाषामां एक मुहूर्तना बे ६१ मा भाग
६१ कया छे अने ए हिसावे वधतां वधतां छेवटे छ मुहूर्त जेटलो काळ दिवसना मापमा उमेराइ जाय छे-छेवटे दिवस-१८ मुहूर्तनो थाय छे. [ अहीं मुहूर्तनी गणत्री न करतां प्रसिद्ध होगाथी कलाक अने मिनीटोनी गणत्री जगावी छे ] तो ए रीते १८ मुहूर्तनो दिवस अने बार मुहूर्तनी रात्री अढारमुहूर्तनो दिव थाय छे. कारण-दिवस अने रात-बन्ने-नां बधां मळीने ३० मुहूर्त छे. तात्पर्य ए छे के, ज्यारे सूर्य देव बहारना मांडलाथी अंदरनां मांडला अने वार मुहूर्तन तरफ प्रयाण करे छे त्यारे १॥ मिनीट अने ।.१०जेटलो दिवस प्रत्येक मांडले जतां वध्या ज करे छे अने रात्री तो तेटली ज घल्या करे रात्री.
'छे तथा ज्यारे सूर्यराज अंदरनां मांडलाथी बहारनां मांडला भणी प्रयाण करेछे त्यारे--पाछा वळतां-रात्री प्रत्येक मांडले १॥ मिनीट अने
१०॥ जेटलो समय वध्या करे छे अने दिवस पण तेटलो ज घट्या करे छे-ज्यारे दिवस मोटो होय छे त्यारे रात्री नानी होय छे अने ज्यारे
रात्री नानी होय छे त्यारे दिवस मोटो थाय छे. [ · अट्ठारसमुहुत्ताणंतरे ' त्ति ] हवे ज्यारे भास्करराय सौथी अंदरना मांडलाथी निकळी तेंनी पासेना-१८२ मा-मांडलामा पधारे छे त्यारे मुहूर्तना बे एक-सठिया भाग जेटलो ऊगो अढार मुहूर्तनो दिवस होय छे. ते दिवसर्नु नाम 'अष्टादशमुहूर्तानंतर' एवं राखवामां आव्युं छे, कारण-ते दिवस, अढार मुहूर्तनो दिवस थया पछी तुरत ज आवे छे. ज्यारे ए रीते दिवसने अष्टादशमुहूर्तानंत घटवानी शरुआत थाय छे त्यारे [ सातिरेगा दुवालसमुहुत्ता राइ 'त्ति ] बार मुहूर्त अने मुहूर्तना वे एकसठिया भाग जेटली रात्री लांबी थाय छे अर्थात् ए रीते रात्रीने वधवानी पण शरूआत थइ जाय छे. मूळ वात ए छे के, दिवसनो जेटलो भाग टुको थाय छे तेटलो ज भाग रात्रीनो वधे छे, कारण के, अहोरात्रना श्रीश मुहर्त छे. [ ' एवं एएणं कमेणं' ति ] ए रीते ए-आगळ जणावेल क्रमबडे संभवपूर्वक दिवसर्नु माप [ ओसारेयव्वं ' ति घटाडी देवू. एज वातने दर्शाये छे-[ ' सत्तरस' इत्यादि. jबळी ज्यारे सूर्य १८२ मां मांडलाथी चालतो चालतो सत्तर मु० नो दिव एकत्रीसमा मांडलाने अडधे आवे छे त्यारे दिवस सत्तर मुहर्तनो थाय छे अने आगळ जणावेल घटाडाना क्रम प्रमाणे रात्री तेर मुहर्तनी थाय तेर मुनी रात्र छे. [ सत्तरसमुहुत्तागंतर' ति] हवे ज्यारे ठेठ बीजा मांडलाथी एकत्रीसमा मांडलाना अडवा रस्ताथी-सूर्य, बत्रीशमा मांडलाने अडधे भागे पहोंचे छे त्यारे दिवसनी लंबाई मुहर्तना बे एक सठिया भाग जेटली ऊगी सत्तर मुहूर्त थाय छे अने [ ' साइरेगसत्तरसमुहु ता राइ' ति] रात्रीनी लंबाई तेर मुहूर्त अने मुहूर्तना बे एक सठिया भाग जेटली वधारे थाय छे ए रीते अनंतरपणाथी थती लंबाई, टुंकाई बीजे ठेकाणे पण समजवी अने एम बधे य जाणवू [ ' सो समुहुत्ते दिवसे' ति ] वळी ठेठ वीजा मांडलाथी ज्यारे सूर्य फरतो फरतो ६१ में मांडले आवे त्यारे सोल नुदि.. सोळ मुहूर्तनो दिवस थाय छे. [ ' पन्नरसमुहुत्ते दिवसे ' ति ] ज्यारे सूर्य बाणुमा मांडलाने अडधे पहोंचे त्यारे पन्नर मुहूर्तनो दिवस थाय छे. १५ मन ['चोद्दसमुहुत्ते दिवसे' ति] ज्यारे फरतो फरतो सूर्य एकसोने बावीशमें मांडले आवे छे त्यारे चौद मुहूर्तनो दिवस थाय छे. [ तेरसमुहते .. दिवसे । ति ] ज्यारे १५२ मा मांडलानी अडव घाटे सूर्य आवे छे त्यारे तेर मुहूर्तनो दिवस थाय छे अने ज्यारे [ 'बारसमुहुत्ते दिवसे ' ति] एकसोने त्र्याशीमें बहारने मांडले सूर्य पहोंचे छे त्यारे छेक बार मुहूर्तनो दिवस थह जायछे-जेम दिवस घटतो जाय छ तेम रात्री बधती जाय
दिवस. छे. जो के उपरनी हकीकतमा रात्रीना मापना वधारा संबंधी जुदुं जुएं जणाव्युं नथी, तो पण ते वात वाचकोर स्वयमेव समजवानी छे-रात्रि अने दिवसनां बधा मळीने ३० मुहूर्त छ माटे दिवसना मापमां वधारो होय त्यारे राबिना मापमा घटाडो होय अने रात्रिना माघमां वधारो होय त्यारे दिवसना मापमां घटाडो होय, पण ते बन्नेमा मळी त्रीश मुहूर्त थाय ए तो सुनिर्णीत ज छे माटे वधारा के घटाडानी रीत उपर प्रमाणे जाणवानी छे
ऋतुओ विगेरे. १०. प्रd----जया ण भंते ! जंबुद्दीचे दीये दाहिणडे वासाणं १० प्र०-हे भगवन् ! ज्यारे जंबूद्वीपमा दक्षिगार्धमा वर्षा पढमे समए पडिवज्जइ तया णं उत्तरड़े विवासाणं पढमे समये (चामासा)नी मोसमनो प्रथम समय होय त्यारे उत्तराधमां पण
१, मूलच्छायाः-यदा भगवन् ! जम्बूद्वीपे दीपे दक्षिणाऽर्थे वीणां प्रथमः समयः प्रतिपद्यते तदा उत्तरार्धेऽपि वर्षाणां प्रथमः समयः-अनु..
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