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श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रह
शतक ४.-उद्देशक १०.
परिणाम-वण्ण-रस-गंध-सुद्ध-अपसत्थ-संकिलिगु-हा, गह-परिणाम-पएसो-गाह-वग्गणा-ट्ठाणमप्पबहुं.
द्वार गाथाः-परिणाम, वर्ण, रस, गंध, शुद्ध, अप्रशस्त, संक्लिष्ट, उष्ण, गति, परिणाम, प्रदेश, अवगाहना, वर्गणा, स्थान अने अल्पबहुत्व; ए बधुं लेश्याओ संबंधे कहे.
भाषा होय छे, भाषानां परमाणुओर्नु प्रहण अने तेना प्रकारो, ए परमाणुओना वर्ण, रस, गंध, स्पर्श, अवगाहना अने स्थिति, भाषानां अणुओना प्रहण अने मोचननो समय, ए द्रव्योनो (भाषानां अणुओनो) मेद-तुटी जवु विगेरे विशेष गंभीर विषयो चर्चेला छे. १२९ शरीरपद छ, एमां शरीरना प्रकारो अने पेटा प्रकारो विगेरे जणावेलुं छे. १३मुं परिणाम पद छ, एमां जीव अने अजीवना परिणामो अने तेना अनेक प्रकारो जणाव्या छे. १४मुं कषायपद छ, एमां कषायो, कषायवाळाओ अने कर्मना चयनो उल्लेख आवेलो छे. १५मुं इंद्रियपद छ, एमां इंद्रियोना प्रकारो, आकारो, जाडाई, पहोळाई, अवगाहना, स्पर्शी विगेरे विषे घणु तलस्पर्शी विवेचन करेलुं छे तथा कर इंद्रिय केवी रीते अने केटले छेटेयी पोताना विषयने ओळखी ले छे, कद इंद्रियने विषयने ओळखती वखते विषयनो संबंध (संस्पर्श) राखवो पडे छे अने ए संबंध कोने नथी राखवो पडतो, कार्मणपुदलोनुं देखावं, दर्पण विगेरे पारदर्शक पदार्थोमा पडतुं प्रतिबिंब अने तेनी समजण विगेरे वीजा पण अनेक विषयो चर्चेला छे. १६९ प्रयोग पद छे, एमां मन, वचन अने तनना अनेक प्रकारना प्रयोगो तथा अनेक प्रकारनी गतिओ (चालवानी रीतो) सरस रीते समजावेली छे. १७९ लेश्या पद छे, एमां लेश्याओ उपरांत बीजी पण अनेक बाबतो आवेली छे. (जूओ भ.द्वि० ख० पृ०९०-९१ टिप्पण) १८९ कायस्थितिपद छे, एमां अनेक प्रकारे कायस्थितिनुं वर्णन आपेलुं छे. १९४ सम्यक्त्वपद छे एमां सम्यक्त्वने लगती बाबत जणावी छे. २०९ अंतक्रिया पद छे, एमां अंतक्रिया अने तेने लगतुं विशेष विवेचन आपेलुं छे. २१ मुं अवगाहनापद छ, एमां अवगाहना, संस्थान अने शरीर विगेरेने लगती हकीकत जणावी छे. २२ मुं क्रियापद छ, एमां क्रिया,.क्रियाना प्रकारो तथा क्रियाने लगता बीजा अनेक विचारो पण नोधेला छे. २३ मुं कर्मप्रकृतिपद छे. एमां कर्म कर्मना स्वभाव, कर्मना प्रकार, कर्मनी स्थितिनी मयादा, अने कमैंना बंध विषे विगतवार विवेचन करेलुं छे. २४ मुं कर्मप्रकृतिबंध, २५ मुं कर्मवेद, २६ मुं कर्मबंध अने २७ मुं कर्मप्रकृति-वेदवेद-ए चारे पदोमा कर्मने लगती हकीकतो आवेली छे. २८ मुं आहार पद छे, तेमा आहार, आहारना प्रकार, क्या जीवनो क्या प्रकारनो आहार, आहारना अणुओ विगेरे अनेक विषयोनुं निरूपण छे. २९ मुं उपयोग पद छे, एमा उपयोग अने क्या जीवने क्या प्रकारनो उपयोग होय छे, ए विषे विवेचन आपेठं छे. ३० मुं पश्यत्ता पद छ, एमां 'जोवा विषे' विचार आपेलो छे. ३१ मुं संशी पद छे, एमो जीवोनी संशिता अने असंज्ञिता विगेरे विषे विवार को छे. ३२ मुं संयमपद. छे, एमा जीओनी संयमिता अने असंयमिता संबंधे विचारेनुं छे. ३३ मुं अवधिपद छे, एमा अवधिज्ञानने लगती पूरेपूरी माहिती आपेली छे. ३४ मुं प्रविचारपद छे, एमा विशेषे करीने देव अने देवीना संभोगने लगती हकीकत आपेली छे. ३५ मुं वेदना पद छे, एमा वेदनाना प्रकार अने क्या जीवने कह वेदना होय छे-ए विषय नोंधेलो छे. ३६ मुं समुद्धात पद छे, एमां समुद्धातना खरूपथी मांडीने समुद्धातने लगती सघळी हकीकतो आपेली छे.-(जुओ भ० प्र० ख० पृ. २६२)
आ रीते प्रज्ञापनासूत्रना विषयोनु दिदर्शन आप्या पछी ते ना कती विषे पण विचारवं घटे छे. प्रज्ञापनासूत्रना मूळ उपरथी-तेनी शरुआतना के अंतना भाग उपरथी-तेना कतीनी माहिती मळी शकती नथी. फक्त टीकाकारना अनेक उल्लेखो उपरथी आपणे एना कती तरीके आर्यश्यामसूरिने मानी शकीए छीए. टीकाकारश्रीए ए जातना जे उल्लेखो दाव्या छे तेमांना केटलाक आ प्रमाणे छे:"भगवान् भार्यश्यामोऽपि इत्थमेव सूत्र रचयति"
"भगवान् आर्यश्याम पण आज प्रमाणे सूत्रने रचे छे"
(प्र.. ७२) " भगवान् आर्यश्यामः परति"
(पृ. ४७ ) "भगवान् आर्यश्याम पढे हे-कहे-छ" . " सर्वेषामपि प्रावचनिकसूरीणां मतानि भगवान् आर्यश्याम उपदिष्टवान् "बधा य प्रावनिक सरिओनां मताने भगवान् आर्यश्यामे
(पृ० ३८५) उपदेशेला छ " .. " मरिराह-(पृ. ७) सूरिराह-(पृ. ८) सरिराह-(पृ० १८)सूरि. “आचार्य कहे छे-(पृ. ७-८-१८-१९-२३-२४-४१-४३-४४राह-(पृ. १८) सरिराह-(पृ. १९) हिराह-(पृ. २३) सूरिराह- ४६-५५-५८) भगवान् ( सूरि ) कहे छे-(पृ. ४२) ४७ मा पृष्ठ (पृ. २४) सूरिराह-(पृ. २४) सरिराह-(पृ. ४१) भगवानाह- उपर ' आसालिगा' नामना सर्प संबंधी विचार आवेलो छे. तेमा जणाव्यु (पृ०४२) सूरिराह-(पृ०४३) सूरिराह-(पृ. ४३) सुरिराह-(पृ०४४) छ के-" आसालिगा ए शुं कहेवाय ?" एवो प्रश्न ज्यारे शिष्ये को सरिराह-(१०४६ ) अथ का आसालिगा? एवं शिष्येण प्रश्ने कृते सति त्यारे भगवान् आर्यश्याम एनो उत्तर आपे छे. जे (उत्तर) बीजा ग्रंथमांधी भगवान् आर्यश्यामो यदेव प्रन्थान्तरेषु आसालिगाप्रतिपादक गौतमप्रश्न- उद्धरेलो छे अने गीतमना प्रश्न तथा महावीरना उत्तररूप छे-अने तेने भगवनिर्वचनरूपं सूत्रमस्ति तदेव आगमबहुमानतः पठति-(पृ. ४७) अहीं आगमना बहुमानने लीधे कहेलो छे.-(पृ. ४७) ५०मा पृष्ठ उपर सूरिराह-(पृ. ४९) अत्रापि संमूर्छिममनुष्य विषये प्रवचनबहुमानतः संमूर्छिम मनुष्योने लगती हकीकत आवे छे, तेमां पण-'आ तो साक्षाद् शिष्याणामपि च ' साक्षाद् भगवता इदमुक्तम् ' इति बहुमानोत्पादनार्थम्- भगवाने कह्यं छे' एवो भाव शिष्योने उत्पन्न कराववाने सारु उपर प्रमाणेनो अनान्तर्गतमालापकं पठति-(पृ०५०) सरिराह-(पृ० ५५) सूरिराह बीजा कोइ अंग ग्रंथनो पाठ आपेलो छे.-(पृ०५०) ३८५ मा पृष्ठ उपर -(पृ०५८) सरिराह-(पृ०५८) अमीषां पञ्चानामादेशानाम् अन्यत- स्त्रीवेदनी स्थितिनी हकीकत आपेली छे. तेमा ए विषे कोई एक नकी मादेशसमीचीनतानिर्णयोऽतिशयज्ञानिभिः, सर्वोत्कृष्टश्रुतलब्धिसंपनैवी कर्तु हकीकत न जणावतां पांच जुदी जुदी हकीकतो आपेली छे. मा विषे शक्यते, ते च भगवदार्यश्यामप्रतिपत्तौ नासीरन्. केवलं तत्कालापेक्षया टीकाकारश्री जणावे छ के, ए पांचे जुदा जुदा प्रावचनिकोना (सिद्धांत ये पूर्वतमाः सूरयः तत्कालभाविप्रन्थपावीपर्यपालोचनया यथास्वमति धुरंधरोना) मत छे. जे वखते सूरि श्रीआर्यश्याम हयात हता ते वखते स्त्रीवेदस्य स्थिति प्ररूपितवन्तस्तेषां सर्वेषामपि प्रावचनिकसूरीणां मतानि 'ए पांच मतमांथी क्यो मत सत्य छे' एवो निर्णय आफ्नार कोई अतिभगवान् आर्यश्याम उपदिष्टवान् , तेऽपि च प्रावचनिकसुरयः स्वमतेन शय ज्ञानी अथवा उत्कृष्टतम श्रुतलब्धिवाळा पुरुषनी हयाती न हती. सूत्रं पठन्तो गीतमप्रश्न-भगवनिर्वचनरूपतया पठन्ति, ततस्तदवस्थान्येव माटे श्री आर्यश्याम भगवाने पोताना समयथी पहेलांना आचार्यों ते
१. मूलच्छायाः-परिणाम-वर्ण-रस-गन्ध-शुद्ध-अप्रशस्त-संक्लिटो-णाः, गति-परिणाम-प्रदेशा-ऽवगाह-वर्गणा-स्थान-अल्पबहुत्वम्:-अनु.
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