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________________ शतक ४.-उद्देशक १०. कृष्णलेश्या नीललेश्याने पामीने तद्रूपपणे अने तद्वर्णपणे परिणमे ?-प्रशापनाना लेइयापदनो चतुर्य उद्देशक.- लेवानां परिगाम-वर्ण-रस-गंध- शुद्ध-अप्रशस्त संकिष्ट-उल-गते-परिगाम-प्रदेश -आमाह-वर्गणा स्थान-' र 'बहु व. हे भगवन् ! ते प. प्रमाणे. - . १. प्र0-से णूणं भंते ! कण्हलेस्सा नीललेस्सं पप्प तारू- . १. प्र० - हे भगवन् ! कृष्णलेश्या नीललेश्यानो संयोग पामी वत्ताए, तावण्णत्ताए ? ते रूपे अने ते वर्णे परिणमे?. १. उ0-एवं चउत्थो उद्देसओ पण्णवणाए चेव लेस्सापदे । १. उ०—हे गौतम ! प्रज्ञापना सूत्रमा कहेलो लेश्या पदनो णयबो, जांव चोथों उद्देशक अहीं कहेवो अने ते यावत्-'परिणाम ! इत्यादि द्वार गाथा सुधी कहेवो. १. मूलच्छायाः-तद् नूनं भगवन् ! 'कृष्णलेश्या नीललेषां प्राप्य तद्रूपतया, तपूर्णतया ? एवं चतुर्थः 'उदेशकः 'प्रज्ञापनायाश्चैव" लेश्यापदे ज्ञातव्यः, यावत्:-अनु. १. व्याख्याप्रज्ञषितां एटले.भावतीसूत्रमा अनेक स्थळे. जहा पत्राणाए' शब्द भळःया करे छे. ते नो अर्थ एम थाय छे के, जे प्रज्ञापनामां कह्यु छ तेम अहीं पण समजी लेतुं आ प्रकारे आ सूत्रम स्थळे स्थळे आवता प्रज्ञारना (पनवणा) सूत्रनो परिचय आपयो अहीं आवश्पक लागे छ. साथी प्रथम प्रज्ञापनासूत्रनु स्वरूप जणावी पछी तेना कता अने..तेनी शैली विषे जणाववान छे, प्रज्ञापना सूत्रना टीकाकार श्रीमलयगिरि जी.ए... टीकाना आरंभमां ज जणाचे छे के, “ इयं च समवायाख्यस्य चतुर्थ-अस्य उपागम्-तदुक्कार्थप्रतिपादनात् " अर्थात् " आ प्रज्ञापना-पत्र चोथा समवायअंगर्नु उपांग छे. कारण के, समवाय-अंग-मों कहेला अ आ प्रज्ञापनामाँ"प्रतिपादेला छे"-(प्रज्ञापे० पृ० १ स.) टीकाकार श्रीना आ उलेखमा विश्वास राखीने भले आपणे 'प्रज्ञापना' सूत्रने चोथा समवाय- अगर्नु उपांग-मानी लंइए. तो पण तेओश्रीए ए उल्लेखनो संवादक एकाद प्राचीन उल्लेख पोताना उल्लेख पासे प्रमाण तरीके टोक्यो होत तो विशेष 'उचिंत थात; अंग अने उपांगना परस्पर-संकलननी व्यवस्था, विपयनी दृष्टिए अनेडी लागती होवाथी एने एनी दृढती माटे प्राचीन उल्लेखना टेफानी विशेष जरूर जणाय छे. (आ विषे अहीं विशेष न लखतां भगवती वि० ख०, पृ. ३६ पर आवेल 'राजप्रश्नीय'ने लगतुं टिप्पणं जवानी ज भलामण करूं') टीकाकारथी' तदुक्कार्थप्रतिपादनात् ' हेतु आपीने प्रज्ञापनाने समवायअंगर्नु उपांग जणावे छे तेज हेतुथी 'आ'प्रज्ञापना स्थान ग (ठाणांग) के भगवतीमूत्रनुं पणं आंग थइ-शके छे. माटे ज आ सूत्रना (प्रज्ञापनाना) अंगोपांगीभावनी दृढता माटे पुष्ट अने प्राचीन उल्लेखनी तथा निदोष हेतुनी गवेषणां करवी अगत्य नी छे. आ. : "प्रज्ञापना''नो ग्रंथनाम' तरीकेनो. उल्लेख नंदीसूत्रमा मळी आवे छे. नंदीसूत्रमा ध्रुतग्रंथोनो नामवार निर्देश आपेलो छे. तेमा नोभ्यु छे के;".जीवाभिगमो, पनवणा, महापनवणा। इत्यादि. (जूओ भ. द्वि० ख० पृ. ३६ टिप्पण) आ.नोधमा एउआंग तरीके नहि पण एक श्रुतग्रंथ तरीके नोधाएलं छे एथी. एनी उपांगताना प्रश्ननु निराकरण थई शव तुं नथी; तथा ए पनवणा' अने आ 'प्रज्ञापना सूत्र' एबने एक जछे के केम? : ए पण कांइ कही. शकातुः नथी. कारण केत्यां टीकाकार श्रीमलय गिरिजीए 'पनवणांविषे कोइ जातनो विशेष उखः करेलो: जणातो : नथी..जे प्रज्ञापना-पनवणा-आपणी पासे हयात छे तेमां कुल.३६ प्रकरण छे-एनी संकलना करनारे के एना रचनारे एमांनी प्रकरणने 'पद' शब्दे निर्देशेला छे.. १लं पद"प्रज्ञापना छे; तेमां जीव अने अजीवना मुख्य अने पेटा भेदो विषे सविस्तर विवेचन छे. २जं. स्थान पद छ, तेमा साधारणं जीवथी लइने सिद्ध सुधीना 'जीवोना स्थानक-रहेठाण-वर्णवेलां छे. ३जु अल्पवहुल पद छ, तेमां जीव अने अजीवना अनेक प्रकारोमा कयो प्रकार कया प्रकारथी न्यूनाधिक छे ते विगतवार जणावेलुं छे. ४धुं स्थिति पद छे, एमां दरेक प्रकारना जीवोनी ओछामां अंछी अने वधारेमा वधारे आयुष्यनी मर्यादा-सूचवेली छे. ५४ पर्याय पद छे, तेमा सर्व प्रकारना जीव अने अजीवना. पर्यायो नोंयेला छे. ६टुं उपपात-उद्वर्तना पद छे, एमां जीवोनां उपपात, उपपातनो बिरह अने उद्वर्तना जणाव्यां छे अने कयो जीव क्याथी क्या उपजे एं पण नोंधेलु'छे. मुं उच्छ्वास पद छे, एमां कयो जीव ओछामा ओछे अने वधारेमा बंधारे केटले वखते श्वास ले छे-ए हकीकतः आपेली छः ४नु संज्ञापद छे, एमां संज्ञाओनी संख्या अने कयो जीव कइ संज्ञावाळो छे-ए जणावेलु छ। मुं योनिपद छे, एमी योनि-उत्पत्तिस्थान-ना प्रकार अने कया जीवनी कइ योनि होय. छे-ए नोंघेलु 'छ. . १०मुं. चरमाचरम पद. छे, एमा पदार्थमात्र नरिअपेक्षाकृत चरमता अने अचरमतानो. सविस्तर.विचार करेलो. छे.. ११९ भाषापद., एम.भाषाना प्रकारो, कया जीवोने कया प्रकारनी Jain Education international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004641
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherJinagama Prakashan Sabha
Publication Year
Total Pages358
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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