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श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे
शतक ३-उद्देशक ६.
बाळा-सळंग नहीं बनेला-अने वज्रथी बनेली कोटि-आगला भाग-वाळी धनुषोने हाथमा ग्रहण करीने उभा रहेनारा, मर्वतः मात्रा -मर्यादावाळा तीरना समूहने धारण करनारा, हाथमां नीलने ( केटलाक वाणोनो पाछलो भाग नीलादि वर्णवाळो होय छे माटे अहीं नील, पीत अने रक्त
विगेरे-ए-बधा-एक जातिना वाणना भेदो होय, एम संभवे छे.) धरनारा, पीतने अने रक्तने हाथमा धरनारा, ए प्रमाणे सुंदर चापने हाथमा चाप-धनुप, धरनारा, (शं०-चाप अने धनुष् ए बन्ने एक ज वस्तुना नाम छे तो आगळ 'धनुषने धारण करनारा ' एम कहेबाथी 'चापने धरनारा ' ए
अर्थ पण आवी जाय छे तेम छतां ( अहीं ) फरीवार ' चापने धरनारा' एम शा माटे कथु ? स०--आ स्थळे पुनरुक्ति दूपण आवयानो संभव नथी, कारण के 'चाप ' अने धनुष् ' ए बन्ने शब्दना अर्थमा थोडो फेर छे:--- दोरी नहीं चडावेलुं धनुष ते 'चाप' अने दोरी चडावीने सज करेलुं धनुष ते धनुष. आ रीतिए ए बन्ने शब्दना अर्थमां थोडो पण भेद छे.) तथा सुंदर ढालने, दंडने, तरवारने अने पासलाने हायमां धारण करनारा. दिव्य शक्तिना धारक होवाथी केटलाक देवो नील, पीत, रक्त एयां सुंदर चाप, तरवार, ढाल अने पासला वगेरेने एक साथे हाथमां धरनारा छे. तथा पोताना धणिर्नु रखोपुं करनारा छे माटे पोताना 'आत्मरक्षक ' नामने दीपावनारा छे, रखोपाना काममा योजेला, अभेद
वृत्तिवाळा, स्वामिनी रक्षा करवामां ज मनने जोडनारा-बीजे जती मनोवृत्तिने रोधनारा, परस्पर संबंधवाळा अने परस्पर जोडाएला मंडळवाळा. पुस्तकांतर. ए वधा देवो वारा फरती एक एक, उचित काळे पगीनी पेठे विनयपूर्वक आगे छे अर्थात् तेओ चाकरनी जेम रहे छे" बीजा पुस्तका तो आ
बधो पाठ मूळमां ज मांडेलो जणाय छे. [ ' एवं सम्बेसि इंदाणं' ति ] ए रीते-चमरेंद्रनी पेठे-बधा इंद्रोना आत्मरक्षक देवो संबंधी हकीकत सामानिक अने जाणवी. ते आत्मरक्षक देवोनी संख्या आ रीतिए छ:-हर एक इंद्रदेवने सामानिक देवो करता आत्मरक्षक देवो चार गणा होय छे. चरमेंद्रने नरक्षकोनी संख्या. चोसठ हजार सामानक देवो छे, बलि इंद्रने साठ हजार सामानिक देवो छ; अने भुवनपतिना बाकीना प्रत्येक इंद्रदेवने छ छ हजार सामानिक
देवो होय छे. शक इंद्रने चोरासी हजार सामानिक देवो छे, ईशान इंद्रने एंशी हजार सामानिक देवो छे, तथा सनत्कुमारने वोंतेरे हजार, माहेंद्रने सित्तर हजार, ब्रहेंद्रने साठ हजार, लांतकेंद्रने पचास हजार, शुक्रने चालीस हजार, सहस्रारने त्रीश हजार, प्राणतने वीस हजार अने अच्युतेंद्रने दश हजार सामानिक देवो होय छे.. कयुं छे के:---" असुरेंद्र सिवायना इंद्रोने चोराठ हजार, साठ हजार अने छ हजार सामानिक देवो होय छे अने आत्मरक्षक देवो तेथी चारगणा होय छे. ८४ हजार, ८०.हजार, ७२ हजार, ७० हजार, ६. हजार, ५० हजार, ४० हजार, ३० हजार, २० हजार अने १० हजार सामानिक देवो अनुक्रमे शकेंदधी अच्युतेंद्र सुधीना इंद्रोने होय छे,'' अने तेथी चार गणा आत्मरक्षक देवो तेओने होय छे.
बेडारूपः समुद्रेऽखिलजलचरिते क्षारभारे भवेऽस्मिन् दायी यः सणानां परकृतिकरणाद्वैतजीवी तपस्वी । अस्माकं वीरवीरोऽनुगतनरवरो वाहको दान्ति-शान्त्योः--दद्यात् श्रीवीरदेवः सकलशिवसुखं मारहा चाप्तमुख्यः ।।
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