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सठ प्रश्न
वृत्तिकार.
__ श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे
शतक १.-उद्देशक १. वीशे प्रश्नो, चार चार पदनो योग करतां पंदरे प्रश्नो, पांच पांच पदनो योग करता है प्रश्नो, अने छ पदनो योग करता ऐक प्रश्न आ प्रमाणे सर्व मळी ग्रेसठ प्रश्नो संभवे छे. आ प्रश्नोनो उत्तर आपतां भगवान् कहे छे के:-['गोयमा' ! इत्यादि] गौतम ! इत्यादि मूळमा स्पष्ट छे. विशेषता ए केः-जेओनो पूर्वमा आहार कर्यो तेओ (पुद्गलो) पूर्वकाले ज परिणम्या, कारण के ग्रहण कर्या वाद ज आहार करेला पुद्गलोना परिणामनो सद्भाव छे. (आ प्रथम प्रश्ननो उत्तर थयो.) वळी जेओनो आहार कर्यो अने जे पुद्गलोनो आहार कराय छे तेओ (अनुक्रमे) परिणम्या अने परिणमे छे. कारण के आहार करेला (पुद्गल) ना परिणामनो सद्भाव छे अने आहार कराता पुद्गलोनो परिणाम वर्तमान चालु छे. वृत्तिकारे तो बीजा प्रश्ननो उत्तर आ प्रमाणे देख्यो-कों-छ:-"आहार करेला अने आहार करवाना पुद्गलो, परिणम्या अने परिणमशे" तेनी तेओए आ प्रमाणे व्याख्या करी छे के:-"जे पुद्गलो आहर्या अने जे पुद्गलोनो आहार कराशे तेजओमा केटलाक पुद्गलो परिणम्या, परिणम्या ते ज समजवा के जेओ शरीरनी साथे संबद्ध थया. अने जेओ हवे संबद्ध थशे तेओ परिणमशे.” जे पुदलोनो आहार थयो नथी अने आहार थशे, तेओ (पुद्गलो) परिणम्या नथी. कारण के नहीं आहरेलाना संबंधनो ज अभाव होवाथी परिणामनो असंभव छे. ज्यारथी तेओनो आहार थशे त्यारथी परिणमशे. कारण के आहार करेलानो अवश्य परिणाम थाय छे. (चतुर्थ प्रश्नसूत्रमां) भूत अने भविष्यत्काळमां आहार क्रियानो अभाव होवाथी परिणामना अभावखरूप चतुर्थ उत्तर समजवो. अने ए ज प्रमाणे पूर्वमा देखाडेला (वेसठ) विकल्पोना उत्तरसूत्रो कहेवा.
१८. अथ शरीरसंपर्कलक्षणपरिणामात् पुद्गलानां चयादयो भवन्तीति, तदर्शनार्थ प्रश्नयन्नाहः-'नेरइयाणं' इत्यादि. चयादिसूत्राणि परिणामसू. त्रसमानीति कृत्वाऽतिदेशतोऽधीतानीति. तथाहिः-'जहा परिणया, तहा चिया वि' इत्यादि. इह च पुस्तकेषु वाचनाभेदो दृश्यते, तत्र न संमोहः कार्यः, सर्वत्राभिधेयस्य तुल्यत्वात्। केवलं परिणतसूत्रानुसारेण प्रश्नसूत्राणि, व्याकरणानि च मतिमताऽध्येयानीति. तत्र चिताः शरीरे चयं गताः, उपचिताः पुनर्बहुशः प्रदेशसामीप्येन शरीरे चिता एवेति. उदीरितास्तु स्वभावतोऽनुदितान् पुद्गलानुदयप्राप्ते कर्मदलिके करणविशेषेण प्रक्षिप्य यान् वेदयते. उदीरणालक्षणं चेदम्:-"जं करणेणाऽऽकड़िय उदए दिज्जइ उदीरणा एसा" तथा वेदिताः खेन रसविपाकेन प्रतिसमयमनुभूयमान अपरिसमाप्ताऽशेषाऽनुभावा इति. तथा निर्जीर्णाः कालथैनाऽनुसमयमशेषतद्विपाकहानियुक्ता इति. 'गाह'त्ति परिणतादिसूत्राणां संग्रहणाय गाथा भवति. सा चेयम्:-'परिणय' इत्यादिर्व्याख्यातार्था. नवरम्:-एकैकस्मिन् पदे परिणतचितोपचितादौ चतुर्विधाः आहृताः. आहृता आह्रियमाणाश्च. अनाहृता आहरिष्यमाणाश्च. अनाहता अनाहरिष्यमाणाश्च. इत्येवं चतूरूपाः पुद्गला भवन्ति-प्रश्न-निर्वचनविषयाः स्युरिति. - १८. हवे शरीरनी साथे संबंधस्वरूप परिणाम होवाथी पुद्गलोनो चय वगेरे पण थाय, तेथी ते देखाडवाने प्रश्न करता कहे छे केः['नेरइयाणं' इत्यादि] परिणामसूत्रनी समान ज चयादी सूत्रो छे. माटे अतिदेशथी अहीं परिणामसूत्र पछी चयादि सूत्रोने भण्या छे. जेम के:-[ 'जहा परिणया तहा चिया वि' इत्यादि] जेवी रीते परिणम्या तेवी जे रीते एकठा पण थया, इत्यादि. अहीं पुस्तकोने विषे
१-(१.) १. पूर्वाहत. २. आह्रियमाण. ३. आहरिष्यमाण. (२.) १. पूर्वाहृत. २. आहियमाण. ४. अनाहृत. (३.) १. पूर्वाहत. २. आहियमाण. ५. अनाहियमाण. (४.) १. पूर्वाहृत. २. आहियमाण. ६. अनाहरिष्यमाण. (५.) १. पूर्वाहत. ३. आहरिष्यमाण. ४. अनाहत. (६.) १. पूर्वाहृत. ३. आहरिष्यमाण. ५. अनाहियमाण, (७.) १. पूर्वाहृत. ३. हरिष्यमाण. ६. अनाहरिष्यमाण. (८.) १. पूर्वाहत. ४. अनाहत. ५. अनाहियमाण. (..) १. पूर्वाहृत. ४. अनाहृत. ६. अनाहरिष्यमाण. (१०.) १. पूर्वाहृत. ५. अनाहियमाण. ६. अनाहरिष्यमाण, (११.) २. आहियमाण. ३. आह रिष्यमाण. ४. अनाहत. (१२.) २. आहियमाण. ३. आहरिष्यमाण. ५. अनाहियमाण. (१३.) ३. माहियमाण. ३. आहरिष्यमाण. ६. अनाहरिष्यमाण. (१४.) २. आह्रियमाण. ४. अनाहत. ५. अनाहियमाण. (१५.) २. आहियमाण. ४. अनाहत. ६. अनाहरिष्यमाण. (१६.) २. आहियमाण. ५. अनाहियमाण. ६. अनाहरिष्यमाण. (१७.) ३. आहरिष्यमाण. ४. अनाहृत. ५. अनाहियमाण. (१८.) ३. आहरिध्यमाण. ४. अनाहत. ६. अनाहरिष्यमाग, (१९.) ३. आहरिष्यमाण. ५. अनाहियमाण, ६. अनाहरिष्यमाण. (२०.) ४. अनाहत. ५. अनाहिबमाण. ६. अनाहरिष्यमाण,
२:-(१.) १. पूर्वाहत. २. आहियमाण. ३. आहरिष्यमाण. ४. अनाहत. (२.) १. पूर्वाहत. २. आहियमाण. ३. आहरिष्यमाण, ५. अनाहियमाण. (३.) १. पूर्वाहत. २. आहियमाण. ३. आहरिष्यमाण. ६. अनाहरिष्यमाण. (४.) १. पूर्वाहत. २. आहियमाण, ४. अनाहत. ५. अनाहियमाण. (५.) १. पूर्वाहत. २. आहियमाण. ४. अनाहत. ६. अनाहरिष्यमाण. (६.) १. पूर्वाहृत. २. आहियमाण. ५. अनाहियमाण. ६. अनाहरिष्यमाण. (.) १. पूर्वाहृत. ३. आहरिष्यमाण, ४. अनाहत. ५. अनाहियमाण, (८.) १. पूर्वाहत. ३. आहरिष्यमाण. ४. अनाहत. ६. अनाहरिष्यमाण. (९.) १. पूर्वाहृत. ३. आहरिष्यमाण, ५. अनाहियमाण, ६. अनाहरिष्यमाण. (१०.) १. पूर्वाहत. ४. अनाहत. ५. अनाहियमाण. ६. अनाहरिष्यमाण. (११.) २. आहियमाण. ३. आहरिष्यमाण. ४. अनाहत. ५. अनाहियमाण. (१२.) २. आहियमाण. ३. आहरिष्यमाण. ४. अनाहत. ६. अनाहरिष्यमाण. (१३.) २. आहियमाण, ३. आहरिष्यमाण. ५. अनाहियमाण, ६. अनाहरिष्यमाण. (१४.) २. आहियमाण. ४. अनाहत. ५. अनाहियमाण. ६. अनाहरिष्यमाण. (१५.) ३. आहरिष्यमाण. ४. अनाहत. ५. अनाहियमाण. ६. अनाहरिष्यमाण.
३:-(१.) १. पूर्वाहत. २. आह्रियमाण. ३. आहरिष्यमाण, ४. अनाहत. ५. अनाहियमाण. (२.) १. पूर्वाहृत. २. आहियमाण. ३. आहरिध्यमाण. ४. अनाहत. ६. अनाहरिष्यमाण. (३.) १. पूर्वाहत. २. आहियमाण. ३. आहरिष्यमाण, ५. अनाहियमाण, ६. अनाहरिष्यमाण. (४.) १. पूर्वाहत. २. माहियमाणः ४. अनाहत. ५. अनाहियमाण. ६. अनाहरिष्यमाण. (५.) १. पूर्वाहत. ३. आहरिष्यमाण. ४. अनाहत. ५.अनाहियमाण. ६. अनाहरिष्यमाण. (६.) २. भाहियमाण. ३. आहरिष्यमाण. ४. अनाहत. ५. अनाहियमाण. ६. अनाहरिष्यमाण.
४:-(१.) १. पूर्वाहृत. २. आहियमाण. ३. आहरिष्यमाण. ४. अनाहृत. ५. अनाहियमाण. ६. अनाहरिष्यमाणः-अनु. १प्र.छायाः-यत् करणेनाऽऽकृष्य उदये दीयते उदीरणैषा.
२. एतत्संवादि चेदमः-उदीरणा हि उदयावलिकाबहिर्वर्तिनीभ्यः स्थितिभ्यः सकाशात् कषायसहितेन, असहितेन वा योगकरणेन दलिकमाकृष्य उदयसमयप्राप्तदलिकेन सहानुभवनम्. तथा चोकं कर्मप्रकृतिचूर्णी:-"उदयावलिआबहिरिलठिईहिंतो कसायसहिआसहिएणं जोगकरणेणं दलिअमाकडिअ उदयपत्तदलिएण समं अणुभवणं उदीरणा"-चतुर्थकर्मग्रन्थे ७ गाथाटीकायाम्. (भा.पृ-१०२.):-अनु.
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