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श्रीरायचन्द्र - जिनागमसंग्रहे
अन्तःपुरनिर्गमध, तत्पर्युपासनाच औपपातिकमद् वाच्या.
११. [' परिसा णिग्गय'त्ति ] राजगृह नगरथी भगवंतने वंदन करवा माटे राजादिलोक बहार नीकळ्या, तेना नीकळवानुं वर्णन आ प्रमाणे छे:"स्पारे राजगृह नगरमा सिंगोडाना आकारवाळा मागगां, पिकोणाकार मागमां चतुष्काकार भागमां चत्वरोमां चतुर्मुखमागमां अने मोटा मागमा घणा माणसो परस्पर आ प्रमाणे कहे छे:- हे देवानुप्रिय ! ए प्रमाणे निश्चित छे के, अहीं गुणसिलकचैत्यमां श्रमण भगवंत महावीर पधार्या छे अने स्पां तेओ, यथाप्रतिरूप अवमहने ग्रहण करी संयम अने तपयले आत्माने बासित करता विहरे छे, तथारूप अरहंत भगवंतना नामगोचन सांभळयाथी पण छेद छे, जो नाम सांभळवाधी पण श्रेय छे तो बळी तेओने वंदन अने नमन करवायी तो धुं कहे अर्थात् तेथी तो बेयज शोकादिनिर्गम छे, एम करी घणा उम क्षत्रियो, घणा उपकुलपुत्रो" इत्यादि 'भगवंतने नमे छे, पाछे त्वां सुधी कोई एप्रमाणे राजनिर्गम, अंत पुरनिर्गमे अने
तेनी पर्युपासना 'औपपातिक' सूत्रनी पेठे कहेवी.
तमेवं भंते 1, अमितनेअं भन्ते!, असंदिद्धमे भन्ते इच्छिलमे भन्ते, परिडिमे यद् ति कडु अप्यविकुलमाणे पशुवास मानसिमासंग जद, अनिता तिम्रा
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शतक १. - प्रश्नोत्थान.
निर्गमस्तापर्युपासना - ता शुभमुहान देवीओ संतो अंतेवरस माहिं लामा वामविआहिं पढहिआहिं बच्चरिआहिं पसिहि, जोगिआहिं विहिं इसिगणियाहिं वासगणिवाहिं हासिहं, लओसिआहिं, सिंहलीहिं, दमिलीहिं, आरबीहिं, पुलंदीहिं, पक्कणीहिं, बहलीहिं, मुरुंडीहिं, सबरीहिं, पारसीहिं णाणादेस विदेसपरिपिंडिआहिं, इंगिअचितिअ-पत्थिअविजाणिआहिं, सदेसणेवत्थग हिअवेसाहिं, चेडियाचक्कवाल - वरिसधर - थेरकंचुइज - महत्तरगवंदपरिक्खित्ताओ अंतेउराओ णिगच्छन्ति,
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ओवा जेणेव पाडिएकजानाई, रोपेच उपागच्छद उपागच्छता पाढिएकपाडिएकाई, जामिमुदाई, जुलाई, जानाई दुरुइति दुहिता णियगपरियालसद्धिं संपरिवुडाओ चंपाए नयरीए मझ्झं मझ्झेणं निगच्छन्ति, निगच्छित्ता जेणेव पुण्णभद्दे चेइए तेणेव उवागच्छन्ति, उवागच्छिता समस्स भगवत्र महावीरस्स अवरसामन्ये उत्ताइए वित्वयरातियेथे पासद, पातित्ता पाढिएकपाढिएकाई जागाई उति उचिता जाहिंतो पयोदन्ति पचोरहितानाहान परिचिताओ जेणेव समणे नगवं महावी, तेगेव उपागच्छति, उद्यागच्छित्ता समर्थ भगवे महावीर पंचविद्वेषं अभिगनेनं अभिगच्छति तं महासचित्तागं दव्वाणं रिसाए, अचित्तानं दव्यानं अभिसरणदाए, मिगयोगाए बावलट्ठीए फा अंजलि मणसो एमत्तभावकरणेर्ण समर्थ भवयं महावीरं विक्खतो आयाहि पयाहिणं करोति, वंदति णमंत मंसित कृषि यं पुरओ कार्ड लिओ व सपरिवाराओ अभिमुद्दाओ बिनएवं पंउिडा पशुबासति भोपपातिकसूत्र (रु० आ० २१८-२२२) - अनु०
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भन्ते इच्छिते, सेहे तुम्मे पवास श्रीपपातिसूत्र ००१००-२१८ ). हावाओ जान पावच्छित्ताओं, सम्हालंकारविमूि
१. श्रीटीकाकारे राजनिर्गम, अंतःपुरनिर्गम वगेरेने ओपपातिक सूत्रभी जागवा छे, औपपातिक सूत्रमां वर्णो राजनिम अन्तःपुरनिर्गम वगेरे चंपानगरीने उद्देशी राजा कूणिक संबंधे उल्लेखायो छे, परंतु टीकाकारना लेखानुसार ते ज राजनिर्गम अहीं पण लागु पडी शकतो होवाची नीचे प्रमाणे औपपातिक सूची ई देने अहीं आयो छे हवे आ पाठमां चंपानगरीने स्थाने राजगृह नगर पूर्णमवेलनेस्थाने गुणचैत्य, भंभसारपुत्र कूणिक राजाने स्थाने श्रेणिकराजा अने सुभद्रा प्रमुख देवीओने स्थाने चिल्लणा प्रमुख देवीओ समजवी. जननिर्गम अने उपासना:भोग कुना ( राजाओ), भोगकुळना पुत्रो (ए प्रमाणे सर्वत्र द्विपचार -बेवार उचार वडे कहेतुं राजन्यो राजन्यपुत्रो क्षत्रियो, क्षत्रियपुत्रो ब्राह्मणो, भटो, योधाओ, धर्मशिक्षको, मलकीओ, लेच्छकीओ, लेच्छकिपुत्रो अने बीजा घणा राजाओ, ईश्वरो - युवराजो, तलवरी - राजस्थानीय पुरुषो, मालिको - मंडपाधिपो, कौटुंबिको, इभ्यो-जेने त्यां हाथी ढंकाय एटलं द्रव्य होय ते, श्रेष्ठिओ, सेनापतिओ, सार्थवाह वगेरे ( भगवंतनी पासे) जाय छे, ओमांना केटलाक वांदवा माटे, केटलाक पूजवा माटे, ए प्रमाणे केटलाक, सत्कार करवा माटे, सन्मान करवा माटे, दर्शन करवा माटे, कुतूहल जोया माडे जाम छेक अनाविनिधय माटे, 'अश्रुतने नहीं सांभळेलाने समय से माटे, सांभवे शंकारहित करी ए माटे जाय छे, केटलाक 'अर्थो वडे, हेतुओ वडे, कारणोने, व्याकरणोने प्रश्नोने-पूछीशुं' ए माटे, केटलाक 'सर्वनी समक्ष गृह त्यजी, मुंड थइ अनगार भइशुं' ए माटे, केटलाक 'पांच अणुव्रत अने सात शिक्षाव्रत, एम बार प्रकारनो श्रावकधर्म लइ शुं' ए माटे, केटलाक भगवद्भक्तिना रागथी, केटलाक 'आपणो आचार छे' ए माटे से बचा न करी, बलिकर्म करी, मंगल अने कौतुरूप प्रायचित्त करी, माथामा अने कंठमां मालाने धारी म अने सुवर्णने पढेरी लटकता इष्ट हार अर्पहार, त्रणसरो हार भने मणाने धारण करी, कटिसूत्र- कंदोरा पढे सारा आभरणनी शोभाबाळां प्रवर बधोने पहेरी, चंदनथी गात्र शरीर ने अमलित करी, केटलाक घोडा उपर चढी, हाथी उपर चडी, रथयां बेसी, शिविकाम बेसी, मुखपाठमां बेसी अने केटलाक पुरुषसमूहथी परिक्षिप्त थइ पादचार वडे चालीने मोटा उत्कृष्ट सिंहनाद वडे जाणे क्षुब्ध महासमुद्रना शब्दसमान शब्दोथी नगरने पूर्ण करता न होय तेम चंपानगरीनी वचोबच निकले छे, निकळी जे तरफ पूर्णभद्र चैत्य छे, ते तरफ जाय छे, ते तरफ जइ श्रमण भगवंत महावीरथी बहु छेटे नहीं पाते नहीं साधारण निकट रहेत छत्रादि तीर्थंकरातिशयने जुए छे, जोइ पोतानां वान, बाहनो स्थापे छे, स्थापी उमा राखी ते यान, वाहनोथी उतरी ज्यां श्रमण भगवंत महावीर छे, ते तरफ जइ श्रमण भगवंत महावीरने त्रण प्रदक्षिणा दइ वांदे छे, नमे छे, वांदी, नमी अलासत्र नहीं, अतिदूर नहीं साधारण रीतिए रही शुश्रूषा करता, नमता, विनयमडे अभिमुख व प्रांजलिपुट जोडी पर्युपाचे औपपातिक सूत्र (क० आ० - १६४-१७०) - अनु०
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२. राजनिर्गम अने पर्युपासनाः - त्यार बाद प्रवृत्तिव्यापृत एटले प्रवृत्तिने जणाववाना व्यापारवाळो अर्थात् वधामणी देनार आ कथा ( महावीरस्वामी आव्या ए वात) वडे लब्धार्थ थइ- समाचार जाणी हृष्ट तुष्ट अने आनंदित हृदयवाळो थयो सतो स्नान करी ( यावत्) भार वडे हलका अने मोटां मूल्यवाळ आभरणोथी शरीरने अलंकृत करी पोताना घरथी नीकळी चंपानगरीनी वचोवच थइ ज्यां बाह्य उपस्थान शाला ( बेसवानी सभा ) छे, त्यांची (नीचेनी बात कहेवी) वहीं महावीर स्वामी पायी छे, एवधामणी आपी से छे से बारे ते प्रवृतिव्यापृत ने सादा बाराख (नाणानुं ) प्रीतिदान आपे छे; आपी, सत्कार करी, सन्मान आपी विसर्जित करे छे, त्यार बाद भंभसारपुत्र कूणिक राजा बलपति सेनापति ने आमंत्री एम बोल्या:-- देवानुप्रिय ! अभिषेक हस्तिरत्नने शीघ्र सुसज्जित करो, चतुरंगिणी सेनाने घोडा, हाथी, रथ अने प्रवर योधाओथी परिकलित करो, सुभद्रा प्रमुख देवीओ माटे बहारनी उपस्थान शालामां प्रत्येक प्रत्येक, यात्राभिमुख जोडेलां यानो तैयार करावो अने चंपानगरीने बहार, अंदर आसिक्त,. सिक्त, सुचित्र, अपंक - शुद्ध, शेरीओ, अने आपणवीथिकावाळी तथा मंत्रातिमंचकलित-मांचडा उपर मांचडा सहित, नानाविध रंगवाळा उंचा ध्वजवाळी,
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