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________________ श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रहे शतक १.-प्रश्नोत्थान. शेष गणधरो शिष्य- स्वामीनी वाचना ज अनुवर्तेली छे-परंपराए आवेली छे. कयुं छे के:-"सुधर्मस्वामिथी तीर्थ प्रवर्यु छे, बाकीना गणधरो निरपत्य-शिष्यरहित-हता." रहित. १. आ गाथा आवश्यकनियुक्तिमां गणधरप्रकरणमा छे. १. भगवान् भद्रबाहुए पोतानी 'आवश्यक नियुक्ति'मां गणधरोनुं वृत्त आ प्रमाणे निर्देश्यं छे: "ते दिव्य देवघोषने सांभळीने ब्राह्मणो तुष्ट थया के, अहो ! याज्ञिके केव॒ यजन कयु के देवो अहिं आव्या. १ अग्यारे गणधरो उन्नत अने विशाल कुलवंशना हता अने तेओ मध्यम पावापुरीमा यज्ञवाडामां समोसर्या हता. २ प्रथम इंद्रभूति, बीजो अग्निभूति, त्रीजो वायुभूति, चोथो व्यक्त, पांचमा सुधर्मा, छट्ठो मंडित, सातमो मोर्यपुत्र, आठमो अकंपित, नवमो अचलभ्राता, दसमो मेतार्य अने अग्यारमो प्रभास, ए बधा श्रीवीरना गणधरो हता. ३-४ तेओए शा कारणथी दीक्षा लीधी ? तेने हुं क्रमपूर्वक कहीश. तीर्थनी प्रवृत्ति सुधर्मगणधरथी थइ छे अने बाकीना गणधरो शिष्य विनानां हता. ५ प्रथम गणधरने जीवनो, बीजाने कर्मनो, त्रीजाने जीव अने शरीरना भेदनो, चोथाने भूतनो, पांचमाने बंधनो, छठाने मोक्षनो, सातमाने देवनो, आठमाने नैरयिकनो, नवमाने पुण्यनो, दशमाने परलोकनो अने अग्यारमाने निर्वाणनो संशय हतो. ६ पांच गणधरना पांचसो, बेना साडात्रणसो अने बीजा वे बेना त्रणसो त्रणसो गण हंता. ७ देवोद्वारा करातो जिनवरेंद्रनो महिमा सांभळीने अहंमानी, अमर्शवाळो इंद्रभूति आवे छे. ८ लोको मने मूकीने तेना (महावीरना) पादमूल तरफ शामाटे दोडे छे ? हुँ छु छतां बीजो जाणे छे ते केम होइ शके ? ९ तेना तरफ मूर्ख लोको तो जाओ, पण तेणे देवोने शीरीते विस्मय पमाज्यो के जेथी देवो तेने सर्वज्ञ मानीने वांदे छे अने तेनी स्तुति करे छे ? १० अथवा जेवो ते ज्ञानी हशे तेवा ज आ देवो हशे; गामना नटो अने मुर्ख लोकोनी पेठे ते बेनो संयोग ठीक थयो छे. ११ देवोनी अने दानवोनी आगळ ते पुरुषने हतप्रताप करीने एक क्षणमां तेना समस्त सर्वज्ञवादनो नाश करीश. १२ एम कहीने त्रिलोकीथी परिवृत अने चोत्रीश अतिशययुक्त वीरने जोवा माटे ते सशंक थइने आगळ वध्यो. १३ जन्म, जरा अने मरणथी विप्रमुक्त सर्वज्ञ अने सर्वदर्शी ते वीर जिनेश्वरे तेना नाम अने गोत्रोचारपूर्वक तेने बोलाव्योः-१४ 'हे इन्द्रभूते! गौतम ! तने खागत छे.' एम ज्यारे ते वीरे का त्यारे इन्द्रभूति विचारे छे के, आ तो माहं नाम पण जाणे छे, अथवा मने कोण नथी जाणतुं?, १५ जो कदाच आ (वीर) मारा हृदयगत संशयने जाणे वा छेदे तो मने विस्मय थाय. ज्यारे ते इंद्रभूतिए एम विचार्यु त्यारे श्री वीरे फरीथी कयुं के:-१६. हे इंद्रभूते ! 'जीव छे के नथी?' ए प्रमाणे तने संशय छे, तुं वेदना पदोनो अर्थ जाणतो नथी, तेनो अर्थ आ (आ प्रमाणे ) छे. १७. हे अग्निभूते ! तुं आ प्रमाणे विचारे छे के शुं कर्म छे अथवा नथी ? ए तारो संशय छे, कारण के वेदना पदोनो अर्थ जाणतो नथी तेथी संशय करे छे पण तेनो अर्थ आ प्रमाणे छे. २५. हे वायभते ! शुंजे वस्तु जीव छे ते ज वस्तु शरीर छ ? अर्थात् जीव अने शरीर ए बे वस्तु जूदी नथी, ए तारो संशय छे अने तेने दूर करवामाटे मने कांइ पूछतो नथी, कारण के वेदना पदोनो अर्थ तुं जाणतो नथी तेथी संशय करे छे पण तेनो अर्थ आ प्रमाणे छे. ३१. हे व्यक्त ! तुं ए प्रमाणे विचारे छे के शुं भूतो छ अथवा नथी ? ए तारो संशय छे, कारणके वेदना पदोनो अर्थ तुं जाणतो नथी तेथी संशय करे छे पण तेनो अर्थ आ प्रमाणे छे. ३५. हे सुधर्मन् ! तुं ए प्रमाणे विचारे छे के शुं जे आ भवमा मनुष्य छे ते परभवमा पण मनुष्य थाय छे ? ए तारो संशय छे, कारण के वेदना पदोनो अर्थ तुं जाणतो नथी तेथी संशय करे छे पण तेनो अर्थ आ प्रमाणे छे. ३९. हे मण्डित ! ए प्रमाणे विचारे छे के शुं बंध अने मोक्ष छे अथवा नथी ? एप्रमाणे तारो संशय छे, कारण के वेदना पदोनो अर्थ तुं जाणतो नयी तेथी संशय करे छे पण तेनो अर्थ आ प्रमाणे छे. ४३. हे मौर्यपुत्र ! तुं ए प्रमाणे विचारे छे के शुं देवो छे अथवा नथी ?,ए तारो संशय छे, कारण के वेदना पदोनो अर्थ तुं जाणतो नथी तेथी संशय करे छे पण तेनो अर्थ आ प्रमाणे छे. ४७. हे अवकंपित! तुं ए प्रमाणे विचारे छे के शुं नैरयिक छे अथवा नथी ? ए तारो संशय छे, कारण के वेदना पदोनो अर्थ तुं जाणतो नथी तेथी संशय करे छे पण तेनो अर्थ आ प्रमाणे छे. ५१. हे अचलभ्रात ! तुं ए प्रमाणे विचारे छे के शुं पुण्य पाप छे अथवा नथी ? ए तारो संशय छे, कारण के वेदना पदोनो अर्थ तुं जाणतो नथी तेथी संशय करे छे पण तेनो अर्थ आ प्रमाणे छे. ५५. हे मेतार्य ! तुं ए प्रमाणे विचारे छे के शुं परलोक छे अथवा नथी ? ए तारो संशय छे, कारण के वेदना पदोनो अर्थ तुं जाणतो नथी तेथी संशय करे छे पण तेनो अर्थ आ प्रमाणे छे. ५९. हे प्रभास | तुं ए प्रमाणे विचारे छे के शुं निर्वाण छ अथवा नथी? तारो संशय छे, कारण के वेदना पदोनो अर्थ तुं जाणतो नथी तेथी संशय करे छे पण तेनो अर्थ आ प्रमाणे छे. ६३. गौतमगोत्रवाळा त्रण गणधरो मगधदेशना गोबर गाममां थया छे. व्यक्त अने सुधर्मा गणधर कोल्लाक संनिवेशमा थया छे. मौरिक संनिवेशमा मंडित अने मौर्य ए बन्ने भाइओ थया छे. अचल कोशला नगरीमां, अपित मिथिला नगरीमा, मेतार्य वत्सभूमिमां, तुंगिक संनिवेशमां, अने भगवान् प्रभास गणघर पण राजगृहमा थया छे. ज्येष्ठा, कृतिका, स्वाति, श्रवण, हस्तोतरा, मघा, रोहिणी, उत्तराषाढा, मृगशिर, अश्विनी अने पुष्य, ए गणधरोनां जन्मनक्षत्रो छे. वसुभूति, धनमित्र, धम्मिल, धनदेव, मौर्य, देव, वसु, दत्त अने बल ए गणधरोना पिताओ छे. पृथिवी, वारुणी, भद्दिला, विजया, जयंती, नंदा, वरुणदेवा अने अतिभद्रा ए गणधरोनी माताओ छे. त्रण गणधरो गौतमगोत्रना छे. एक भारद्वाजगोत्रनो, एक अग्निवैश्यायनगोत्रनो, एक वासिष्ठगोत्रनो, एक काश्यपगोत्रनो, एक गौतमगोत्रनो, एक हारितगोत्रनो अने वे कौडिन्यगोत्रना छे. पचास वर्ष, छेताळीश वर्ष, बेंताळीश वर्ष, पचास वर्ष, पचास वर्ष,ओपन वर्ष, पांसठ वर्ष अडताळीश वर्ष, छेताळीस वर्ष, छत्रीश वर्ष अने सोळ वर्ष, एप्रमाणे अनुक्रमे गणधरोनो गृहवास छे. हवे यथाक्रम छद्मस्थ पर्यायने कहीशः-धीश वर्ष, बार वर्ष, दश वर्ष, वार वर्ष, वेताळीश वर्ष, चौद वर्ष, चौद वर्ष, नव वर्ष, बार वर्ष, दश वर्ष अने आठ वरस अनुक्रमे गणधरोनो छद्मस्थपर्याय छे. हवे छद्मस्थपर्यायने अने अगार (गृह) वासने मूकीने वाकी रहेलो जे आयुष्यनो भाग तेने जिनपर्याय-केवलिपर्याय-जाणो. वार वर्ष,सोळ वर्ष, अढार वर्ष, अढार वर्ष, आठ वर्ष, सोळ वर्ष, सोळ वर्ष, एकवीश वर्ष, चौद वर्ष, सोळ वर्ष अने सोळ वर्ष ए गणधरोनो यथाक्रम केवलिपर्याय छे. बाणुं वर्षे, चुमोतेर वर्ष, सितेर वर्ष, एंशी वर्ष, सो वर्ष, त्र्याशी वर्ष, पंचाणु वर्ष, अट्ठयोतेर वर्ष, वोतेर वर्ष, वासट वर्ष अने चाळीश वर्ष ए गणधरोनुं सर्व आयुष्य छे. ते या गणधरी उत्तम ब्राह्मण, विद्वान , अध्यापक, द्वादशांगना ज्ञाता अने चौदपूर्वी हता. भगवंतनी जीवनदशामां नव गणधरो राजगृहनगरमा निर्वाण पाम्या अने इंद्रभूति तथा सुधर्मा, वीरना निर्वाण पछी राजगृहनगरमां निर्वाण पाम्या. सर्व गणधरोए मास सुधी पादपोपगमन स्वीकार्यु हतुं अने बधा सर्वलब्धिसंपन्न, वज्रऋषभनाराच संघयणवाळा अने समाचोरससंस्थानवाळा हता." ६६-८२-आवश्यकनियुक्ति (यशो० प्र०) पृ० ११०-११९अनु० *** १७ पृष्टपर गणधरयंत्र जुओ. 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SR No.004640
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherDadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
Publication Year
Total Pages372
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
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