________________
शतक १.-प्रश्नोत्थान.
भगवत्सुधर्मस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र. अने जंबूस्वामि श्रीसुधर्मस्वामिना मुख्य शिष्य हता. माटे ज तेओने-जंबूस्वामिने-आश्री आ वाचना प्रवर्तेली छे. तथा छट्ठा 'शाता'नामना अंगमा पाताधर्मकांगः उपोद्घात आ प्रमाणे देखाय छेः-जेम, जंबूनामे (शिष्य ) सुधर्मस्वामि प्रति कहे छ के-“हे भगवन् ! जो विवाहप्रज्ञप्ति-भगवती-नामना पांचमा सुधास्वामी अंगनो आ अर्थ श्रमण भगवंत महावीरे कसो छे, (तो हवे) छटा (ज्ञाता नामना अंग) नो शो अर्थ को 'छे?" ते छठा अंगमा कहेल उपोदातथी बने एम निर्णीत करी शकाय छे के, ए प्रमाणे अहीं पण जंबूनामना शिष्यप्रति सुधर्मास्वामिए ज जरूर उपोद्घात कहेलो होवो जोइए. मूलनी टीका करनारे जबूर आ उपोद्घात ग्रंथनुं व्याख्यान आखा शास्त्रने उद्देशी कर्यु छे, पण अमे आ उपोद्घात ग्रन्थनुं व्याख्यान मात्र प्रथम उद्देशकपरत्वे कर्यु छे, कारण के आ. शास्त्रमा दरेक शतके, दरेक उद्देशके अनेक प्रकारे उपोद्घात कसो छे. पहेला विवेचेल आ नमस्कारादि ग्रंथनी वृत्तिकारे कोइपण कारणथी व्याख्या करी नथी.
१२ | महावीर पछी राजगृह
, महावीर पहेला
" | महावीर पछी
, महावीर पहेला
,
७२
८ वर्ष १००
२१ वर्ष ७८
नक्षत्रः | पिताः | माताः सातिः| गोत्रः | गृहवासः | छद्मस्थः | केवलः | सर्वायुः | पूर्वः | अंगः | मोक्षगमनः मोक्षनगरः
वर्ष १२ वर्ष १६ वर्ष ७r
वर्ष १० वर्ष १८ वर्ष
भारद्वाज ५० वर्ष १२ वर्ष | १८ वर्ष ८० वर्ष
वासिष्ठ ५१ वर्ष १४ वर्ष १६ वर्ष ८३
८ वर्ष | १६ वर्ष ४० वर्ष
काश्यप ६५ वर्ष १४ वर्ष | १६ वर्ष
हारित | ४६ वर्ष १२ वर्ष १४ वर्ष
, अमिवैश्या-५० वर्ष ४२ वर्ष
१. आ पाठ 'ज्ञाता' सूत्रमा . . . . . . . . छे. पण तेने, ते सूत्र उपरथी टुंको
करीने श्रीवृत्तिकारे अहीं लख्यो छे. तेमा लांबो पाठ आ प्रमाणे छः-(जंबुखामी, सुधर्मखामिने कहे छे के) हे भगवन् ! यदि आदिकर, तीर्थकर, खयंसंबुद्ध, लोकनाथ, लोकप्रदीप, लोकप्रद्योतकर, अभयदय, शरणदय, चक्षुना | देनार, मार्गदय, धर्मना दय
देनार, धर्मदेशक, धर्मवरचातुरंतचक्रवर्ती-धर्ममा उत्तम चक्रवर्तिसमान, अस्खलित ज्ञान अने दर्शनना धारणकरनार, जिन, | जापक-रागादिशत्रुओने जिता
डनार, बुद्ध, बोधक, मुक्त, मोचक, भवसमुद्रने तरेल, तारक अने शिव, अचल, अरोग, अनंत, अक्षय, अव्याबाध, पु. नरावृत्तिरहित शाश्वत स्थानने पामेल श्रमण भगवंत महावीरे पांचमा अंगनो अर्थ कह्यो छे तो हे भगवन् । ज्ञाताधर्मकथा (नामना) छट्ठा अंगनो शो अर्थ कह्यो छे ?-ज्ञाता. (क. आ. पृ. २७-२८.) __ राजगृह नगर आज पण विद्यमान छे. बिहार प्रान्तमा पटणा जिल्लामां ते आवेळ छे. त्यांसुधी आगगाडी छे. मगध देशनी अने प्रख्यात श्रेणिक राजानी ते राजधानी तुं. आ 'भगवतीसूत्र'मां शतक २, उद्देशक ५ मा मा उल्लेख कर्या प्रमाणे त्या गरम पाणीना कुंडो आज पण अस्तित्व धरावे छे. विक्रमनी पांचमी शताब्दीमां हिंदना प्रवासे चीनाई प्रवासी फाहियान तथा सातमी शताब्दीमा हुएनसांग आव्या हता. तेओए राजगृह जोयानुं तथा तेमां गरम पाणीना झराओ जोयानुं वर्णन पोताना प्रवासवर्णनमां आपलं छे. अत्यारे पण
ते एक जैनतीर्थ तरिके प्रसिद्ध छे. राजगृहथी अर्धा गाउनी दूर पांच पहाडो छ, जेना उपर जिनदेवालयो, पाषाण अने धातुना जिनबिंबो तथा चरणपादुकाओ छे.-अनु.
. . . Jain Education International
For Private & Personal Use Only
| गौतम | ४८ वर्ष ९ वर्ष
१६वर्ष
श्रीगणधरयंत्रः
, कौडिन्य | ३६ वर्ष १० वर्ष १६ वर्ष ६२ वर्ष
"
गुब्बर (गोबरगाम), ज्येष्ठा | वसुभूति | पृथिवी ब्राह्मण गौतम |५० वर्ष ३० वर्ष १२ वर्ष ९२ वर्ष
,
"
|,
| " वारुणी
פקפו
नंदा
| वरुणदेवा
अतिभद्रा
हस्तोत्तरा धम्मिल | महिला
वसु
दत्त
कृत्तिका
खाति
- मौरिक संनिवेश मघा | धनदेव विजया
उत्तराषाढा
मृगशिर
| पुष्य
| कोल्हाक संनिवेश श्रवण | धनमित्र
वत्सभूमि, तुंगिक सं० अश्विनी
गामः
मिथिला
कोशला
राजगृह
।
इंद्रभूति
अग्निभूति
सुधर्मा
वायुभूति
गुरुः गणधरनामः
। मंडित
अकंपित
मार्यपुत्र
अचलभ्राता
मेतार्य
। प्रभास
महावीर
"
,
www.jainelibrary.org.