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श्रीरायचन्द्र-जिनागमसंग्रह
शतक २.-उद्देशक २.
प्रशापना सूत्र.
समुद्घातर्नु फळ.
छाद्मस्थिकसमुद्धातो केटला कया छे'] ए हकीकत अहीं जाणवानी नथी, माटे ज मूळ सूत्रमा तेने निषेधी छे. ['समुग्धायपर्य'ति प्रज्ञापना सनमा समुद्घात संबंधी विवेचनवाळु 'समुद्घातपद' नामर्नु छत्रीशमुं पद छे. ते आ रीते छे:-'हे भगवन् ! समुद्घातो केटला कह्या छे ? हे गौतम! समुद्घातो सात कसा छे. ते आ रीतेः-वेदनासमुद्घात, कषायसमुद्धात,' इत्यादि. आ स्थळे संग्रहगाथा छः वेदना, कषाय, मरण, वैक्रिय, तैजस, आहारक अने केवलिसमुद्धात (ए सात समुद्घात छे ) अने ए साते, जीव अने मनुष्योमा होय छे." नारक वगेरेमा तो जे घटे ते होय छे. वेदनासमुद घातवाळो जीव वेदनीयकर्मनां पुद्गलोनो नाश करे छे, कषायसमुद्घातवाळो जीव कषायनां पुद्गलोनो नाश करे छे, मारणांतिक समुद्धातवाळो जीव आयुष्यकर्मनां पुद्गलोनो नाश करे छे, वैक्रियसमुद्घातवाळो जीव पोताना प्रदेशोने शरीरथी बहार काढी तेनो, एक मोटो संख्येय योजन लांबो दंड बनावे छे, ते दंडनी पहोळाइ अने जाडाइ तो पोताना (दंड बनावनारना ) शरीर जेटली होय छे. ते दंड कर्या पछी, आगळनां बांधेला अने जाडां वैक्रियशरीरनामकर्मनां पुद्गलोनो नाश करे छे ( नाश कर्या पछी) जेवां जोइए तेवां सूक्ष्म वैक्रियशरीरनामकर्मनां पुद्गलोने ले छे. कर्तुं छे के, जीव वैक्रियसमुद्घात करे छे, पछी संख्येय योजन लांबो दंड बनावे छे, त्यारबाद जाडां पुद्गलोने विखेरी नाखे छे अने जेवां जोइए तेवां सूक्ष्म पुद्गलो ले छे" ए प्रमाणे तैजससमुद्घात अने आहारकसमुद्घात विषे पण जाणवू. केवळिसमुद्घातवाळो केवळज्ञानी जीव वेदनीयकर्म वगेरे चार अघाती कर्मनां पुद्गलोनो नाश करे छे. ए बधा य समुद्घातोमा शरीरथी बहार आत्माना प्रदेशो नीकळे छे. केवळिसमुद्घात सिवायना ए छ समुद्धातनो काळ अंतर्मुहर्त जेटलो छे अने केवळिसमुद्धातनो काळ मात्र आठ समयनो छे. एक इंद्रियवाळा, बे इंद्रियवाळा, त्रण इंद्रियवाळा अने चार इंद्रियवाळा जीवोने शरुआतना त्रण समुद्धात, पवन अने नारकिओने चार समुद्धात, देव तथा पंचेंद्रिय तिर्यंचोने पांच समुद्धात अने मनुष्योने साते समुद्धातो संभवे छे. अने छद्मस्थ मनुष्योने तो पहेला छ समुद्घात होय छे तथा छेल्लो-सातमो-समुद्घात केवळज्ञानिने होय छे. (श्रीमलयगिरिसूरि, प्रज्ञापना, पृ-७९३-७९४-८२६. क. आ.) वळी 'कयो समुद्घात कोने होय ?' 'कयो समुद्घात केटला वखत सुधी टके ?' 'कयो समुद्घात कया कर्मने लीधे थाय ?' अने कया समुद्घातर्नु कयुं फळ छे ?' ए हकीकतने जणाववा माटे नीचे 'समुद्घातयंत्र' नामनो एक कोठो आप्यो छे तेनाथी उपरनी जिज्ञासाओ शांत थइ जशे माटे ते वात आ टिप्पणमा लखी नथीः-अनु.
समुद्धातयंत्र.
समुद्घातकाळ, कया समुद्घातो
कोने!
समुद्घात.
कोने होय!
केटलो समय?
कया कर्मथी?
परिणाम.
सर्व छद्मस्थ जीवने.
वेदनासमुद्धात.
अंतर्मुहूर्त.
अशाता वेदनीय कर्मना अणुओनो
अशाता वेदनीय कर्मथी.
नाश.
कषायसमुद्धात.
कषाय नामना चारित्र मोहनीय कर्मधी.
कषाय कर्मना अणुओनो नाश.
मरणसमुद्धात.
आयुष्य कर्मथी.
आयुष्य कर्मना अणुओनो नाश.
| वैक्रियसमुद्धात.
नैरयिकोने,व्यंतरोने, ज्योतिष्कोने, वैमानिकोने, पंचेंद्रिय तिर्यचोने, पवनने अने छद्मस्थ मनुष्योने.
वैक्रियशरीर नामकर्मथी.
| वैक्रिय शरीर नामकर्मना जूना पुद्गलोनो
नाश अने तेनां नवां पुद्गलोनू प्रहण.
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तैजससमुद्धात.
व्यंतरोने, ज्योतिष्कोने, वैमानिकोने, पंचेंद्रिय तिर्यंचोने अने
छद्मस्थ मनुष्योने.
| तैजसशरीर नामकर्मथी.
तैजसशरीर नामकर्मनां पुद्गलोनो
नाश.
| आहारकसमुद्धात.
___ मनुष्यने-चतुर्दशपूर्वधरने.
आहारकशरीर नामकर्मथी.
आहारकशरीर नामकर्मनां
पुद्गलोनो नाश.
केवलिसमुद्धात.
मनुष्यने-केवळज्ञानवाळाने.
आठ समय,
आयुष्य सिवायनां त्रण | आयुष्य सिवायना प्रण अघाती अघाती कर्मथी.
कर्मपुद्गलोनो नाश.
बेडारूपः समुद्रेऽखिलजलचरिते क्षारभारे भवेऽस्मिन् , दायी यः सद्गुणानां परकृतिकरणाद्वैतजीवी तपखी। अस्माकं वीरवीरोऽनुगतनरवरो वाहको दान्ति-शान्त्योर्, दद्यात् श्रीवीरदेवः सकलशिववरं मारहा चाप्तमुख्यः ॥ १॥
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