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शतक २.-उद्देशक १.
उच्खास.--पृथिवी वगेरेना जीवोने श्वासोच्छ्वास छ।-हा.-तेओ श्वासोच्छ्वासमा शुं ले अने शुं काढे!-एक जातनां (वासोच्छ्वासनां) अणुओ.-ते अणुओमा
रूप, रस, गंध भने स्पर्श पण छ.-प्रज्ञापना सूत्र--नैरयिक,-छए दिशा.-पवनना जीवोने श्वासोच्छ्वास होया-ना-जीव पवनमाथी नीकळीने पाछो, अनेक बार पवनमा भावे-हा.-तेर्नु मरण केवी रीते थाय-माघात थवाथी.-सशरीर भने मशरीर.-पषनने चार शरीर.-सकर्मक मृतादी साधु,प्राण.-भूत-जीव.-सस्व.-विश. वेत्ता.-अकर्मक मृतादी साधु.-सिक-युद्ध.-मुक्त.-पारगत.-परंपरागत.--श्रीगौतमविहार.-आर्य श्री. स्कंदक. कृतंगला नगरी.-छत्रपलाशक चैत्य-श्रावस्ती नगरी-गर्दभाल परिव्राजक.-ऋग्वेदादि चार वेद.-इतिहास (पुराण)-निघंटु,-पष्टितंत्र.गणितशास्त्र.-वेदना छ अंग-शिक्षा.-कल्प -ज्याकरण,-पिंगळ.-निरुक्त.-ज्योतिःशास्त्र.-पिंगलक गमे श्रमण.–वैशालिकश्रावक-काल्यायनगोत्रीय स्कंदक परिव्राजक.-स्कंदक प्रत्ये पिंगलकना प्रश्नो.-लोकनो छेदो छ के नथी! -जीवनो छेडो छे के नथी! -सिडिनो छटो छे के नथी ?सिद्धनो छेडो छे के नथी-कया मरणधी जीव वधे अने घटे-स्कंदक परिव्राजकर्नु मौन. पण बार 'आक्षेपपूर्वक एनाए प्रश्नो.-स्कंदकने थपल . शंकादि.-श्रीमहावीर पधायांनी वात.-स्कंदकनो विचार.-श्रीमहावीर पासे जइ पूर्वोक्त प्रश्नना खुलासा लेवानी जिशासा.–श्रीमहावीरने सेववानी इच्छा. तापसनो बेष.-स्कंदक परिव्राजक विषे श्रीमहावीर भने श्रीगौतम बच्चे वातचित.-श्रीमहावीरना स्थान तरफ स्कंदकनुं गमन.-'स्कंदक साधु थशे एम श्रीगौतमनो प्रश्न.-हा.-स्कंदकने मावता जोइने श्रीगौतमे करेलो तेमनो आदर.-तेनी गुप्त वातनुं स्पष्टीकरण.-स्कंदकनो अचंबावालो 'प्रश्न.--श्रीगौतमना भर्माचार्य (महावीर) उपर स्कंदकनुं बहु मान.-ग्यावृत्तभोजी (नित्याहारी) श्रीमहावीर.-ओना शरीर सौदर्य-श्रीमहावीरने मळ्या पछी स्कंदकने थपलो हर्ष-स्कंदकना पूर्वोक्त प्रश्नोना खुलासा-द्रव्य, क्षेत्र, काळ अने भाव.-अमुक रीते लोक वगेरेनो छेडो छ भने अमुक प्रकारे वेनो छेडो नथी.-बालमरण..-पंडितमरण, बालमरणना बारमेदवलमरण. -वशाऽऽर्तमरण,-अंतःशल्यमरण, तद्भवमरण,-गिरिपतन.-तरुपतन.जलप्रवेश.-अग्निप्रवेश.-विषभक्षण,-शस्नावपात.-वैहानस.-गृहस्पृष्ट.-८ मरणोथी जीवनो संसार वधे.-पंडितमरणना वे भेद,-पादपोपगमन.भक्तप्रत्याख्यान.-निहारिम. अनिहारिम.-ए मरणोथी जीवनो संसार घटे. स्कंदकप्रतिबोध.-धर्म सांभळवानी तेनी इच्छा.-धर्मकथन.-श्रीमहावीरना प्रवचन उपर स्कंदकनी अडा-प्रीति.-तापस वेपनो परित्याग.-बळता संसारनो विचार.-श्रीमहावीर पासे साधु थवानी इच्छा.-श्रीस्कंदक साधु,तेने श्रीमहावीरे आपेली शिखामण.-स्कंदकनु आध्यात्मिक जीवन.-स्कंदकनुं अग्यार अंगोनुं भण.--प करवा माटे श्रीमहावीरनी अनुमति.-श्रीरकंदकनी धणी आकरी तपस्या.-मिक्षुनी बार प्रतिमा अने तेनु टुंकुं स्वरूप-गुणरत्नसंवत्सर तप भने तेनु द स्वरूप.--आकरी तपस्या करवाथी स्कंदकन शरीरनी क्षीणता. श्रीमहावीर पासे अनशन करवू' एवो श्रीरकंदकनो विचार.-क्षमापना.---विपुल पर्वत.-विपुल पंवत उपर घणा साधुभोनी साधे श्रीरकंदक.भगवंतने वंदना.-फरीवार व्रतनो उच्चार.-एक मास सुधी अनशन.-समाधिपूर्वक श्रीस्कंदक कालगमन. तेना पात्रो अने वस्रो साथे साधुभोर्नु पुनरागमन.
श्रीगौतमप्रश्न-से स्कंदक कर गतिमा गया-अच्युतकल्प.-बावीश सागरोपमनी आवरदा.-महाविदहमा मुक्ति.-श्रीस्कंदकनुं जीवन समाप्त.१.गाहा:
१.-आ बीजा शतकमां दश उद्देशको छे. अने ते उद्देशकोमा • ऊसास खंदए वि अ समुग्घाय पुढविं-दिअ अनउस्थि भासा य, नीचे प्रमाणेना अधिकारो छे:-प्रथम उद्देशकमां देवा य चमरचंचा समयक्खित्तथिकाय बियसए.
अने स्कंदक नामना अनगार विषे अधिकार छे. बीजा उद्देशकमा समुद्धात विषे विवेचन छे. त्रीजा उद्देशकमां पृथिवी विषे विचार छे. चोथा उद्देशकमां इंद्रियो विषे विचार छे. पांचमा उद्देशकमा अन्यतीर्थिकनो अधिकार छे. छट्ठा उद्देशकमा भाषा संबंधे विवेचन छे. सातमा उद्देशकमां देवनो अधिकार छे. आठमा उद्देशकमा चमरचंचा नाम (देवनगरी)नी वात छे. नवमा उद्देशकमां समयक्षेत्रनुं स्वरूप छे अने दशमा उद्देशकमां अस्तिकाय संबंधे विवेचन छे.
१. मूलच्छायाः-गाथाः-उच्छ्वासः स्कन्दकोऽपि च समुद्राताः पृथिवी-न्द्रियाणि अन्ययूधिका भाषा च, देवाश्च चमरचचा समयाः क्षेत्रम्-अस्तिकाया द्वितीयशः -अनु..
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