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उत्पादविरह.
प्रज्ञापना.
के.
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श्रीरायचन्द्र - जिनागमसंग्रहे
शतक १.उदेशक १०.
विषेया महासंखेणं तु तिसुं पि पलिया असंसभागो उकोसो होइ विरहकालो ओ, विजयाईसु निदिट्ठो सच्चेसु जहचओ समओ. उववायविरहकालो इय एसो वनिओ उ देवेसु, उवट्टणा वि एवं सव्वेर्सि होइ वित्रेया. जहन्त्रेण एगसमओ उक्कोसेणं तु होंति छम्मासा, पिरहो सिद्धिगईए उपवन्या नियम" ति.
इति गुरुगमभङ्गैः सागरस्याऽहमस्य सुटमुपचितजान्यः पञ्चाङ्गस्य सः, प्रथमशतपदार्थावर्तगत व्यतीतो विवरणसरपोतौ प्राप्य सद्वीवराणाम्,
५. आगहना प्रकरणमा किया विये हकीकत कही है. गने क्रियायाळा जीवोनो उत्पाद उत्पत्ति-पाय से माटे हुये उत्पादना विरह विषे प्ररूपण करवा कहे छे के ['निरवई' इत्यादि.] कांति एटले जीवोनो उत्पाद, अने ते संबंधी जे प्रकरण ते व्युत्क्तपद
छहुं छे.. तेनो टुको अर्थ आ प्रमाणे छे:-- “पंचेंद्रियतिर्यचगतिमां, मनुष्यगतिमां अने देवगतिमां वधारेमां वधारे बार मुहूर्तनो अने ओछामां ओछो एक समयनो उत्पाद विरह छे." कधुं छे के, “रेनप्रभा वगेरे बधी नरकोमां अनुक्रमे वधारेमां वधारे उत्पादविरहनो काळ आ प्रमाणे छे:(१) चोवीश मुहूर्त. (२) सात अहोरात्र. (३) पन्नर अहोरात्र. (४) एक मास. (५) बे मास. (६) चार मास अने (७) छ मास. तथा ओछामां ओछो उत्पादविरह एक समयनो होय छे. ए प्रमाणे उद्वर्तनाना विरह संबंधी काळ विषे पण जाणवुं. अने नैरथिकोनी संख्या तो देवोनी समान छे. ते संख्या आछे एक वे, पण संस्थेय अने असंख्येय जीवो एक समवे उपने छे यये के अने उढ़तें छे." तियंचगतिमां विरहकाल आ प्रमाणे छेः–“विकर्लेद्रियोनो अने संमूर्छिमोनो वधारेमां बधारे बिरहकाळ भिन्न मुहूर्तनो छे. गर्भज जीवोनो वधारेमां वधारे विरहकाळ बार मुहूर्तनो होय छे. अने ए बचानो जोडामां ओलो विरहका एक समवनो छे." एक इंद्रियवाय जीवोनो विरहका जनथी. मनुष्यगतियां तो आ प्रमाणे छे:गर्भज मनुष्योनो बारेमा बधारे विरहका बार मुहूर्तनो अने संमूर्तिम मनुष्योनो बारेमां बधारे विरहकाळ चोवीस र्तनो छे अने ते बन्ने जाताना मनुष्योनो ओछामा ओछो विरहकाळ एक समयनो होय हे." देवगतिमां तो आ रीते छे:-"भवनपति अने ईशान ए पांचेमां बधारेमां बधारे विरहकाळ चोवीश मुहूर्तनो छे. अने ओछामां ओछो विरहकाळ एक समयनो छे" " ( ३ ) नव दिवस अने वीश मुहूर्त, (४) बार दिवस अने दश मुहूर्त, (५) साडी बाबीश दिवस, (६) पीस्ताळीश दिवस, (७) एंशी दिवस, (८) सो दिवस अने (९-१०) संस्थेय मारा एक वर्षनी अंदर आनत बने प्राणतमां तथा (११-१२) आरण भने अच्युतम संस्वेग वर्ष सो वर्षनी अंदर, एटो काळ जावो. तथा हवे मैवेयक विषे कहीश - नीचलामां संख्येय सो वर्ष, वचलामां संख्येय हजार वर्ष अने उपलामां संख्येय लाख वर्ष अनुक्रमे जाणयां- बगेमां पूर्व प्रमाणे काळ जागयो. विजय वगेरे विमानमां बधारमां बचारे चिरकाळ पल्योपमानो असंख्य भाग जागयो अने बचानां सौथी ओछामा ओछो एक समयनो विरहकाळ जाणवो. ए प्रमाणे वर्णवेलो देवोमां उपपातविरहकाळ जाणवो. अने ए ज रीते उद्वर्तना पण बधानी जाणवी.” “ जघन्ये - ओछामां ओछो-एक समय अने वधारेमां बधारे छ मास सिद्धिगतिनो उपपात विरहकाळ जाणवो, अने ते सिद्धिगति उद्वर्तना विनानी जछे अर्थात् त्यां गया पछी मरण होतुं नथी. "
वानव्यंतर, ज्योतिषिक, सौधर्म
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इति गुरुगमम्हेरे हुं वट्यो छेक मूढ निधिसम शुभसूत्र पांचमानी सुगूढ, प्रथम शतक टीवी धीवरोगी विधेरण वर मौका, शीघ्र अर्थों करीने.
१. आ ' व्युत्कान्तिपद' प्रज्ञापनासूत्रमां (क० आ० पृ० २८६ - ३१९ ) छे. तेमां अनेक वातो विकासवादने लगती तद्दन नवी जाणवा जेवी छे. २. आ बधी गाथाओ त्रैलोक्यदीपिका (संग्रहणी) मां छे. ३. आ बधा आंकडाओ नरकना सूचक छे. ४. आ बधा आंकडाओ खर्गना छे. सूचक श्रीभरण करतां श्रीअभयदेवसूरिजी पूर्ति अने अवचूर्ति (दूओ ०१७८ १ १ टिप्पण) नुं अवलंबन कर्तु के अने तेथी से येने 'विवरणपती' एक नाम रूप आएं के अनु०
प्रथम शतक समाप्त.
येारूपः समुद्रेऽखिलचरिते क्षारभारे भयेऽखिन् दासी यः सयानां परकृतिकरणातजीबी तपखी। अस्माकं वीरवीरोऽनुगतनरवरो चाइको दान्तशान्त्रोदयात् श्रीवीरदेवः सकलशिवाय मारा यामुख्यः ॥१७
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