SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 183
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शतक १-उदेशक ६. भगवतुधर्मस्वामिप्रणीत भगवतीसूत्र. १६३, , अणगार्ड ओभासद ? गोवमा ! ओगार्ड ओमासेद, नो अणोगाढं. एवं अनंतरोगाढं ओभासेर, नो परंपरोगाढं तं भंते कि अनुं ओ भासइ, बायरं ओभासइ? गोयमा ! अणुं पि ओभासद, बायरं पि ओभासइ. तं भंते! उडुं ओभासइ, तिरियं ओभासइ, अहे ओभासइ ? गोयमा ! उडूं पि, ३. तं भंते ! आई ओभासइ, मज्झे ओभासइ, अंते ओभासइ ? गोयमा ! आई, ३. तं भंते ! सविसए ओमासे, अविसए ओभासइ ? गोयमा ! सविसए ओभासइ, नो अविसए. तं भंते ! आणुपुत्रि ओभासेइ, अणाणुपुव्विं ओभासेइ ? गोयमा ! आपुष्प ओमासे, नो अनागुपुष्पितं ते कदिसं ओमासे ? गोयना ! नियमा छदिस" ति एतेषां च पदानां प्रथमोदेशकनारकाऽऽहारसूत्रव्याख्या दृश्या इति. य एव 'ओभासेइ' इत्यनेन सह सूत्रप्रपञ्च उक्तः, स एव 'उज्जोअइ' इत्यादिना पदत्रयेण वाच्यः दर्शयन्नाह : - ' एवं उज्जोवेइ' इत्यादि. २. हरे क्षेत्र आओने एज वातने हे छे:-['तं भंते' इत्यादि. ] जे क्षेत्रने अवभासे छे, उद्योतित करे छे, तपाचे हे अने खूब तपाये छे. हे भगवन् ! ते क्षेत्रने स्पर्शांने अवभासे छे के स्पर्श्या सिवाय अवभासे छे ? अहीं 'यावत्' शब्द मूकेलो होवाथी आ प्रमाणे जाणवुं :-'हे गौतम ! स्पर्शीने अवभासे छे, पण स्पर्श्या सिवाय अवभासतो नथी. हे भगवन् ! ते क्षेत्रने अवगाहीने अवभासे छे के अवगाथा सिवाय अवभासे छे ? हे गौतम ! अवगाहीने अवभासे छे, पण अवगाह्या सिवाय अवभासतो नथी. ए प्रमाणे अनंतर अवगाढने अवभासे छे, पण परंपराए अवगाढने अवभासतो नयी. हे भगवन्! ते अंशु क्षेत्रने अवभासे छे के बादर क्षेत्रने अवमासे छे! हे गौतम! ते अमुने पण अवमासे छे अने मादरने पण अवमासे हे भगवन्! ते क्षेत्र उंचे अवभासे छे, तीरछे अवभासे छे के नीचे अवभासे छे! हे गौतम! तेने उंचे, तीरछे अने नीचे पण अयमाने छे. हे भगवन्! ते क्षेत्रने आदिम, मध्यम के अंते अवभासे हे हे गौतम! ते आदिनां मध्यम अने अंतम पण अदमासे छे. हे भगवन्! ते क्षेत्रने पोताना विषयमा अवभासे छे के परविषयमां अवभासे छे ? हे गौतम! तेने पोताना विषयमां अवभासे छे, पण परविषयमा अवभासतो नथी. हे भगवन् ! ते क्षेत्रने क्रमपूर्वक अवभासे छे के क्रम सिवाय अवभासे छे ? हे गौतम । तेने क्रमपूर्वक अवमासे छे, पण क्रम सिवाय अवभासतो नयी. हे भगवन्ते चने वेटली दिशामां अवमासे हे हे गीतम पोस छ ए दिशायां ते क्षेत्रने अवभासे छे." ए बधां पदोनी व्याख्या प्रथम उद्देशकमां कहेल नारकना आहार सूत्रनी पेठे कहेवी. जे सूत्रनो समूह 'अवभासे छे' ए क्रियापद साथै कह्यो छे ते ज सूत्रनो समूह 'उद्घोत करे छे' 'तपावे छे' अने 'खूब तपावे छे' ए त्रण क्रियापद साथे पण कहेवो. ए ज वातने दर्शावतां कहे छे केः - [ एवं उज्जोवेइ' इत्यादि. ] ३. 'स्पृष्टं क्षेत्रं प्रभासयति' इत्युक्तम्, अथ स्पर्शनामेव दर्शयन्नाह से पूर्ण इत्यादि 'सब्बति प्राकृतात् सर्वतः सर्वासु दिक्षु, 'स व्वावं-ति'त्ति प्राकृतत्वाद् एव सर्वात्मना, सर्वेण वाऽऽतपेनाऽऽपत्तिर्व्याप्तिर्यस्य क्षेत्रस्य तत् सर्वापत्ति अथवा सर्व क्षेत्रम्, 'इति' शब्दो 'विषयभूतं क्षेत्रं सर्वम्, नतु समस्तमेव' इत्यस्य अर्थस्य उपप्रदर्शनार्थः, तथा सर्वेणाऽऽतपेन, आपो व्याप्तिर्यस्य क्षेत्रस्य तत् सर्वापम्. 'इति' शब्दः 'सामान्यतः सर्वेणातपेन व्याप्तिः नतु प्रतिप्रदेशं सर्वेण' इत्यस्याऽर्थस्योपप्रदर्शनार्थः अथवा सह व्यापेनाऽऽतपव्याच्या यत् तत् सव्यापम् इतिशब्दस्तु तथैव 'फुसमाणकालसमयंसि 'त्ति स्पृश्यमानक्षणे, अथवा स्पृशतः सूर्यस्य स्पर्शनायाः कालसमयः स्पृशत्कालसमयः- तत्र, आतपेनेति गम्यते. यावत् क्षेत्रं स्पृशति सूर्य इति प्रकृतम्, तावत् क्षेत्रं स्पृश्यमानं स्पृष्टम् - इति वक्तव्यं स्यादिति प्रश्नः. 'हंता' इत्याद्युत्तरम्. स्पृश्यमान- स्पृष्टयोश्च एकत्वं प्रथमसूत्रादवगन्तव्यम्. ३. 'स्पृष्ट- स्पर्शाएल - क्षेत्रने प्रभासे छे' एम कधुं छे. माटे हवे सर्शनाने ज दर्शावता कहे छे केः -[ 'से णूगं' इत्यादि. ] [ 'सैन्यं ति'त्ति ] एटले सर्वतःची दिशाओम[सेव्यायं तिति ] सर्व आत्मवडे, अथवा 'सव्याति' क्षेत्र खूब तापथी व्यात हे ते 'सर्वापत्ति' अथवा ''एते 'स' अने 'पी' एटले 'इति' अहीं आ 'इति' शब्द विषयभूत नघा क्षेत्रको सूचक छे. पण जे क्षेत्र के ते बधायनो सूचक गधी. 'सम्मान' एटले 'सर्वाप' अर्थात् जे क्षेत्र खूब तडकाथी व्याप्त होय ते 'सर्वाप' अने 'ति' एटले 'इति' आ 'इति' शब्द 'क्षेत्रनो दरेक भागे भाग तापथी व्याप्त छेएम नथी, पण सामान्य रीते क्षेत्र तापभी व्याप्त छे' ए अर्थनो सूचक है अथवा 'सव्वा' एटले 'सम्याप' ने तडकाथी व्याप्त होय ते क्षेत्र सव्याप. अने 'इति' शब्दनो अर्थ तो पूर्व प्रमाणे ज जाणवो. ['फुसमाणकालसमयंसि ' त्ति ] जे वखते स्पर्श कराय छे ते वखते, अथवा स्पर्श करता -- सूर्यनी स्पर्शना-नो काळ - समय ते 'स्पृशत्कालसमय' तेमां आ ठेकाणे 'आतपवडे' ए अर्थ अध्याहार्य छे. 'जेटलं क्षेत्र सूर्य स्पर्शे छे' ए चालु बात छे से श्यमान क्षेत्र 'ए' एम कहेवाय ए प्रश्न छे. [ 'हंता' इत्यादि. ] ए उत्तरसूत्र छे. सृश्यमान अने सृष्टनं एक प्रथम सूत्री जाग लोकांता दिस्पर्शना. २०२. प्र० होते ते अलोगंतं फुसइ, अलोवंते प फुसइ ? लोयंतं - २०२. उ० – हंता, गोयमा ! लोयंते अलोयंतं फुसइ, अलोयंते वि लोयंतं फुसइ. २०२. १० - हे भगवन् ! टोकनो अंत (छेडो) अठोकना अंतने स्पर्शे, अलोकनो पण अंत लोकना छेडाने स्पर्शे ? २०२. उ० - हा, गौतम ! लोकनो छेडो अलोकना छेडाने स्पर्शे अने अलोकनो पण अंत खोकना छेडाने स्पर्शे. १. जूओ पृ० ५३, प्रश्न ५ मानी टीका-पेरा- १३:- अनु० २. आ शब्दोनो जे अर्थ कर्यो छे ते प्राकृतना धोरणे छे:-श्री अभय० ३, जूओ पृष्ठ ४१, प्रथम प्रश्न अने तेनी टीका:- अनु० १. मुलच्छायाः कामो भगवन् कान्तं स्पृशति लोकान्तोऽपि वान्तं शत इन्त गौतम लोकान्तोकान् स्रावि अलोकान्तोऽपि लोकान्तं स्पृशतिः - अनु० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org:
SR No.004640
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherDadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
Publication Year
Total Pages372
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy