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और जघन्य तीनभव तथा उत्कृष्ट पन्द्रह भव करके मोक्ष
पाता है। 337 प्रश्र आठवाँ अपूर्वकरण गुणस्थानक किसे कहते है? उत्तर पूर्वोक्त रीतिसे जीव-आत्मा सातवें गुणस्थानको समाप्त
करके आठवें अपूर्वकरण गुणस्थानकमें प्रवेश करता है। अर्थात् जीवात्मा छठे गुणस्थानकसे सातवें गुणस्थानक में और सातवें से फिर छठे गुणस्थानकमें ईस तरह जातेआते झोले खाते यदि यदि सावधान न रहे तो नीचे गिर पडता है। लेकिन सावधान रहे अधिक अप्रमत्त बने तो आगे इस आठवें गुणस्थानकमें आता है। अपूर्वआत्मगुण की प्राप्ति
होने से यह अपूर्वकरण गुणस्थानक कहा गया है। 338 प्रश्र उपशम किसे कहते है? उत्तर जो मुनि महात्मा अपने उदय भावमें आई हुई कर्मप्रकृत्तियों
का विनाश नहीं करके उनकी सत्तामें दबाते हुए भी आगे के गुणस्थानकमें चढता है उसको उपशमक कहते है अर्थात्
उपशम श्रेणीवाला जीव-आत्मा उपशमक कहा जाता है। 339 प्रश्र क्षपक किसे कहते है?
जो मुनि महात्मा प्रारंभ से ही उदय भावमें आई हुई कर्म प्रकृतियों का क्रमशः क्षय-विनाश करते हुए आगे के गुणस्थानोमें प्रवेश करता है उसे क्षपक कहते है अर्थात्
क्षपक श्रेणीवाला जीवात्मा क्षपक कहा जाता है। 340 प्रश्र बारहवाँ क्षीणमोह गुणस्थानक किसे कहते है?
दशवें सूक्ष्मसंपराय नामक गुणस्थानक में क्षपक श्रेणी चढता हुआ जीवात्मा संज्वलन लाभका क्षय करते हुए मोहनीय कर्मका क्षय करता है अर्थात् क्षपक क्षेणीवन्त जीवात्मा दशवें
उत्तर
उत्तर
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