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जीवन में सामायिक-प्रतिक्रमण, उपवास एवं व्रतादि के पालन में भी कमजोरी आई है। साधु वर्ग में भी नियमों व आचार के पालन में काफी शिथिलता आई
आज साधुओं एवं श्रावकों के आचार के लिए एक सर्व सम्मत आचरण सहिंता (Code of Conduct) बनाने की आवश्यकता है। हमारे सभी वरिष्ठ साधुओं, साध्वियों, श्रावकों एवं श्राविकाओं को बैठकर मिलकर इसे तैयार करना चाहिये। श्रावकों के लिये जो आचार संहिता बने उसमें मुख्य रूप से निम्न नियमों का पालन रखा जाय- (१) शाकाहार का पालन - (२) रहन-सहन में सादगी (३) व्यसनमुक्त जीवन. (४) आजीविका, व्यापार एवं उद्यम में हिंसा का त्याग (५) व्यक्तिगत जीवन में प्रामाणिकता एवं नैतिकता का व्यवहार।
सबसे बड़ी बात है कि आज चारों ओर मुर्गी, अंडे, मांसाहार व मत्स्याहार का जो प्रचार हो रहा है तथा नये-नये कत्लखाने बन रहे हैं उनका सारा जैन समाज सामूहिक रूप से विरोध करें। शाकाहार वैज्ञानिक दृष्टि से स्वास्थ्य के लिए हितकारी है तथा मांसाहार से जो भयंकर बीमारियाँ फैलती है, उनका सामूहिक प्रचार करने की आवश्यकता है। यह जैन समाज के लिए सबसे बड़ी चुनौती है।
वर्तमान जैन समाज नये सन्दर्भ में समय की आवश्यकता को पहचानकर एकता व संगठन को सुदृढ़ करके अहिंसा, करुणा, प्रेम व व्यसनमुक्त जीवन की ओर आगे बढ़कर संपूर्ण विश्व में अनेकांत, सहअस्तित्व, पुरुषार्थ, कर्मवाद, समता तथा व्यक्ति स्वातंत्र्य की भावना का प्रचार करने में सबल सिद्ध होगा, यही हम आशा करते हैं।
लालघर
જ્ઞાનધારા
(જૈનસાહિત્ય જ્ઞાનસત્ર-૨)
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