SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 244
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भयावह दुर्घटना और उसके परिणाम, ब्राजील में वर्षा देनेवाले जंगलों की विनष्टि, स्वीडन में रसायनिक वर्षा द्वारा झील का विनाश, गंगा जैसी महान् नदियों के जल में प्रदूषण एवं भोपाल में रसायनिक गैस की भीषण दुर्घटना इत्यादि कुछ घटनाएँ इस खतरे को प्रकट करती हैं । जहाँ भी हमारा दृष्टि जाती हैं, हमारी पृथ्वी उपग्रह संकट से ग्रस्त नजर आती है। जीव-जन्तुओं का विनाश : जैसा मैंनें कल भी कहा था, आज पशुओं का निर्ममता से वध किया जाता है। खाद्य पदार्थ, फर, चमड़ा एवं अन्य पदार्थ प्राप्त करने के लिए यान्त्रिक कत्लखानों में बड़ी परिमाण में पशु मारे जाते हैं। मनुष्य ने पशुओं की ४३५५ प्रजातियों में से २५ प्रतिशत को, पक्षियों की ८६१५ प्रजातियों में से ११ प्रतिशत को एवं जल-जन्तुओं की कुल ३४ प्रतिशत प्रजातियों को पूर्णत: समाप्त कर दिया है। मनुष्य की क्रूरता चरम सीमा पर पहुंच चुकी है। ग्रीनपीस पत्रिका के अनुसार अफ्रीका में १९८१ में हाथियों की संख्या १५ लाख थी जो १९९० में, मात्र दस वर्षों में, शिकार के कारण घट कर ६ लाख रह गई । अक्तूबर १९९३ में Convention of International trade in Endangered Species को हाथीदांत के व्यापार पर प्रतिबंध घोषित करना पड़ा ताकि हाथियों की संख्या और अधिक नहीं घटे । गाय के माँस को 'बीफ' कहते हैं । इंग्लैंड का बीफ सबसे बढ़िया माना जाता है। यूरोप में इसकी बड़ी प्रतिष्ठा है, इसी के ऊपर इंग्लैंड की अर्थव्यवस्था निर्भर करती है। प्रकृति विरुद्ध आहार के कारण गाय पागल होने लगी तथा उनका माँस खाने वाले व्यक्ति भी पागल होने लगे । जब यह खबर यूरोप फैली तो उन्होंने ब्रिटेन से गौ माँस मंगाना बंद कर दिया। ब्रिटेन के लोगों ने उस बीमारी से ग्रस्त लाखों गायों को मार दिया। हाल ही में यूरोप के कुछ देशों में पशुओं में 'पाँव एवं मुँह की बीमारी' (Foot & Mouth Disease) फैल गई है । इसके भी भयावह परिणाम नजर आ रहे हैं । वर्षा लाने वाले जंगल : लकड़ी एवं अन्य पदार्थ प्राप्त करने के लिए बड़ी मात्रा में जंगलो को ૨૨૫ જૈનસાહિત્ય જ્ઞાનસત્ર-૨ જ્ઞાનધારા Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004539
Book TitleGyandhara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunvant Barvalia
PublisherSaurashtra Kesari Pranguru Jain Philosophical and Literary Research Centre
Publication Year
Total Pages334
LanguageGujarati, Hindi, English
ClassificationBook_Gujarati & Spiritual
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy