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अमीरीकी नागरिकों ने वाशिंगटन में एक जूलुस निकाला तथा प्रस्ताव पारित किया कि अमरीकी कांग्रेस बन्दूक नियन्त्रण कानून को सख्त बनाये ताकि हिंसक घटनाओं की संख्या कम हो, वर्तमान समाचारों के अनुसार अमेरिका में प्रति वर्ष ३०,००० व्यक्ति गोलियों के शिकार होते हैं।
श्री ई-एफ. शूमेकर ने कहा कि अमेरिका, जिसके पास विश्व की मात्र ६ प्रतिशत आबादी है, विश्व के ३० प्रतिशत संसाधनों का उपयोग कर लेता है। परिणामस्वरूप विश्व की एक बहुत बड़ी आबादी गरीबी, अभाव एवं शोषण से अभिशप्त है। अतः यह सिद्ध होता है कि आर्थिक विकास मात्र मनुष्य के जीवन के स्तर को ऊँचा उठाने में समर्थ नहीं है। प्रकृति के प्रति भ्रामक धारणा :
शताब्दियों से पाश्चात्य जगत् में यह एक धारणा बनी कि मनुष्य सर्वश्रेष्ठ प्राणी है और यह सम्पूर्ण सृष्टि उसीके उपभोग के लिए बनी है। फ्रांसिस बेकोन ने ४०० वर्ष पूर्व लिखा कि यह सारी सृष्टि मनुष्य के लिए ही बनी है, अन्य प्राणियों के लिए नहीं। इस धारणा का परिणाम यह हुआ कि प्रकृति एवं उसके संसाधनों का भयंकर शोषण किया गया। विज्ञान ने भी इसी धारणा को बढ़ावा दिया और कहा कि पशु-पक्षी, पेड़-पौधों में प्राण नहीं है। यह भी बताया गया कि प्रकृति का भंडार असीम है और वह मात्र मनुष्य को सुखी करने के लिए है। वैज्ञानिक उपकरणोंकी सहायता से प्रकृति का अधिक से अधिक शोषण कर मनुष्य के जीवन को सुखी बनाया जा सकता है। इस धारणा के कारण प्रकृति का जो निर्मम शोषण हो रहा है और उसके जो भयावह परिणाम सामने आ रहे हैं, उसकी ओर कम लोगों का ध्यान गया है। ए!ल्ड टोयनबी ने सन् १९७२ में लंदन ओब्जर्वर में लिखा, “हम लोग परेशान हैं क्योंकि हमने अधिकतम भौतिक साधनों को प्राप्त करने के लिए अपनी आत्मा की भावनाओं को उपेक्षित कर दिया है, लेकिन हमारा यह प्रयास आध्यात्मिक दृष्टि से गलत ही नहीं अपितु अव्यवहारिक भी है।" हाल ही में प्रकृति एवं उसके साधनों के दुरुपयोग के भीषण परिणाम सामने आये हैं। मेक्सिको में वायुका भयंकर प्रदूषण, यूक्रेन के चेर्नोबिल परमाणु केन्द्र की
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જ્ઞાનધારા
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(જૈનસાહિત્ય જ્ઞાનસત્ર-૨
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