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तद्विभाजिनः पूर्वापरायता हिमवन्महाहिमवन्निषधनील
रुक्मिशिखरिणो वर्षधरपर्वताः ॥ ११ ।। द्विर्धातकीखण्डे ॥ १२॥ पुष्करार्धे च ॥ १३॥ प्राङ् मानुषोत्तरान्मनुष्याः ।। १४ ।। आर्या म्लेच्छाश्च ।। १५ ॥ भरतैरावतविदेहाः कर्मभूमयोऽन्यत्र देवकुरुत्तरकुरुभ्यः ।। १६ ।। नृस्थिती परापरे त्रिपल्योपमान्तर्मुहूर्ते ।। १७ ।। तिर्यग्योनीनां च ।। १८॥
चतुर्थोऽध्यायः
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देवाश्चतुर्निकायाः ॥ १॥ तृतीयः पीतलेश्यः ।। २ ॥ दशाष्टपञ्चद्वादशविकल्पाः कल्पोपपन्नपर्यन्ताः ।। ३ ।। इन्द्रसामानिकत्रायस्त्रिंशपारिषद्यात्मरक्षलोकपालानीक
प्रकीर्णकाभियोग्यकिल्विषिकाश्चैकशः ।। ४ ।। त्रायस्त्रिंशलोकपालवा व्यन्तरज्योतिष्काः ।। ५ ।। पूर्वयोर्वीन्द्रा ।। ६ ।।। पीतान्तलेश्याः ॥ ७॥ कायप्रवीचारा आ ऐशानात् ।। ८ ।। शेषाः स्पर्शरूपशब्दमनःप्रवीचारा द्वयोर्द्वयोः ।। ९ ।। परेऽप्रवीचाराः ।। १०॥ भवनवासिनोऽसुरनागविद्युत्सुपर्णाग्निवातस्तनितोदधिद्वीप
___ दिक्कुमाराः ॥ ११ ॥ व्यन्तराः किन्नरकिंपुरुषमहोरगगान्धर्वयक्षराक्षसभूतपिशाचाः ।। १२ ।। ज्योतिष्काः सूर्याश्चन्द्रमसो ग्रहनक्षत्रप्रकीर्णतारकाश्च ।। १३ ।। मेरुप्रदक्षिणा नित्यगतयो नृलोके ।। १४ ।।
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