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________________ म 364 दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम् दशमी दशा उस धर्म की शिक्षा के लिये उपस्थित होकर निर्ग्रन्थी यदि क्षुधा आदि परिषहों से पीड़ित होकर काम-वासना की वशवर्तिनी हो जाय और स्त्री गुणों से युक्त किसी स्त्री को, जो अपने पति की केवल एक ही पत्नी हो, जिसके शरीर पर एक ही जाति के वस्त्र और आभूषण हों, जिसका पति उसकी रक्षा इस प्रकार करता हो जिस प्रकार सौराष्ट्र देश में मिट्टी के तेल के पात्र की जाती है, जो अच्छे-२ वस्त्रों की पेटी के समान भली भांति ग्रहण की गई हो तथा जो रत्नों की पिटारी के समान अपने पति की प्यारी हो और जो घर के भीतर और घर के बाहर जाते हुए अनेक दास और दासियों से घिरी हो, जिसके एक दास अथवा दासी के बुलाने पर चार या पांच बिना बुलाए हुए ही उपस्थित होकर उत्सुकता से आज्ञा-पालन की प्रतीक्षा करते हैं और विनय-पूर्वक पूछते हैं कि श्रीमती जी को कौन सा पदार्थ अच्छा लगता है / उसको देखकर निर्ग्रन्थी निदान करती है | ___ अब सूत्रकार वर्णन करते हैं कि देखने से निदान कर्म किस प्रकार हो जाता है: संति इमस्स सुचरियस्स तव-नियम-बंभचेर जाव भुंजमाणी विहरामि से तं साहुणी / ___ अस्त्यस्य सुचरितस्य, तप-नियम-ब्रह्मचर्यस्य-यावद् भुञ्जाना विहरामि, तदेतत् साधु / पदार्थान्वयः-इमस्स-इस सुचरियस्स-सदाचार का तव-तप नियम-नियम बंभचेर-ब्रह्मचर्य का यदि कोई विशेष फल संति है तो जाव-यावत् इसी प्रकार के सुखों को भुंजमाणी-भोगती हुई विहरामि-मैं भी विचरण करूं से तं साहुणी-यह आशा ठीक मूलार्थ-इस पवित्र आचार, तप, नियम और ब्रह्मचर्य का कोई विशेष फल है तो मैं भी इसी प्रकार के सुखों का अनुभव करूंगी / यही आशा ठीक है। ___टीका-इस सूत्र में बताया गया है कि जब साध्वी उक्त स्त्री को देखती है तो चित्त में आशा करने लगती है इस तप, नियम और ब्रह्मचर्य के फल-रूप इसी प्रकार के सुखों. का अनुभव करूं / यह आशा ही निदान कर्म होता है /
SR No.004500
Book TitleDasha Shrutskandh Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAatmaram Jain Dharmarth Samiti
Publication Year2001
Total Pages576
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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